भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) के पूर्णकालिक सदस्य कमलेश चंद्र वार्ष्णेय ने शुक्रवार को आईपीओ की कीमतों और कुछ कॉरपोरेट व्यवस्थाओं पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने छोटे शेयरधारकों की सुरक्षा के लिए कड़े सुरक्षा उपायों के लिए कहा।
वार्ष्णेय ने एक्सीलेंस इनेबलर्स के गेटकीपर्स ऑफ गवर्नेंस कार्यक्रम में कहा, ‘ऐसे मामले देखे गए हैं जहां प्रमोटर-शेयरधारकों को बेहतर स्वैप आवंटन के लिए शायद बढ़ा-चढ़ा मूल्यांकन दिया जाता है, जो अल्पमत शेयरधारकों के लिए नुकसानदायक है। हमें इन अल्पमत शेयरधारकों से ढेरों शिकायतें मिल रही हैं कि उनके हितों से समझौता किया गया है।’
वार्ष्णेय ने कहा कि ऐसी व्यवस्थाओं में मूल्यांकन एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें विशेष दिशा-निर्देशों की आवश्यकता पर विचार किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सेबी को इस मोर्चे पर भारतीय दिवाला एवं शोधन अक्षमता बोर्ड (आईबीबीआई) के साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता हो सकती है।
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आईपीओ मूल्य निर्धारण के मुद्दे पर उन्होंने स्पष्ट किया कि सेबी मूल्यांकन में हस्तक्षेप नहीं करता है। उसने बहुत पहले ही पूंजी से जुड़े मुद्दों पर नियंत्रण छोड़ दिया है और इसे तय करने का काम निवेशकों पर डाल दिया है। उन्होंने इसे उचित बताया। वार्ष्णेय ने कहा, ‘हमारा मानना है कि जब एंकर (संस्थागत) निवेशक मूल्यांकन कर रहे हों तो सेबी को खुद को इससे दूर रखना चाहिए, जो शायद सही भी है। लेकिन इस स्थिति से समझौता किए बिना हम यह कैसे सुनिश्चित करें कि एंकर निवेशों ने उचित, प्रभावी और कुशलतापूर्वक मूल्यांकन किया है। मुझे लगता है कि हमें इस बारे में बात करने की जरूरत है।’
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सेबी के वरिष्ठ अधिकारी की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब बड़े आईपीओ (खासकर स्टार्टअप इकोसिस्टम के आईपीओ) को लेकर सोशल मीडिया पर भारी हंगामा मचा हुआ है। एक दिन पहले सेबी के अध्यक्ष तुहिन कांत पांडेय ने भी कहा था कि नियामक आईपीओ में ठोस खुलासे और पारदर्शिता सुनिश्चित करता है। लेकिन वह मूल्य निर्धारण में हस्तक्षेप नहीं करता। यह काम निवेशकों पर छोड़ दिया गया है।