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GST के बाद राज्यों में राजस्व असमानता, एकीकरण की धीमी प्रगति और अलग-अलग रुझान

अनुमानों के बावजूद कोविड की अवधि के बाद जीएसटी के अधीन राज्यस्तरीय एकीकरण में मामूली वृद्धि ही देखने को मिली। बता रही हैं आर कविता राव

Last Updated- October 03, 2024 | 8:57 PM IST
Revenue inequality, slow progress of integration and divergent trends across states after GST GST के बाद राज्यों में राजस्व असमानता, एकीकरण की धीमी प्रगति और अलग-अलग रुझान

राजस्व के मामले में विभिन्न राज्यों के प्रदर्शन में अंतर पर अक्सर बहस चलती रहती है। उत्पादन करने वाले राज्य को कर दिलाने वाली पुरानी मूल्यवर्द्धित कर (वैट) व्यवस्था से हम वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) व्यवस्था तक आ गए, जहां कर वह राज्य वसूलता है, जहां माल बिकता है। पुरानी व्यवस्था में दो राज्यों के बीच लेनदेन पर निर्यातक राज्य कर लगाता था मगर अब कर राजस्व उस राज्य को मिलता है, जहां माल या सेवा पहुंचती है।

कर व्यवस्था में इस बदलाव के लिए तर्क दिया गया था कि उत्पादक राज्य के बजाय खपत करने वाले राज्य को राजस्व मिलेगा। इसके अलावा जीएसटी पेश करने के साथ ही राज्यों के एकीकरण और दो राज्यों के बीच व्यापार की मात्रा बढ़ने की उम्मीद की गई थी।

आर्थिक गतिविधियों के इस पहलू पर जीएसटी के प्रभाव को समझने के लिए हम देख सकते हैं कि राज्यों के कुल राजस्व संग्रह में एकीकृत जीएसटी (आईजीएसटी) के निपटान की हिस्सेदारी कितनी बदली है। आईजीएसटी वह कर है जो राज्यों के बीच लेनदेन पर लगाया जाता है। इसे केंद्र सरकार वसूलती है और निर्यात करने वाले राज्य को पूरा इनपुट टैक्स क्रेडिट दिया जाता है। इसका अर्थ यह है कि निर्यातक राज्यों को इस लेनदेन से कोई राजस्व नहीं मिलता।

इसके उलट जो राज्य वस्तु या सेवा का आयात करता है, वहां हुई बिक्री के बदले आयातक इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा कर सकता है। इस तरह राजस्व आयात करने वाले राज्य के पास पहुंच जाता है। आईजीएसटी में से राज्यों के दावे आईजीएसटी निपटान प्रणाली के जरिये निपटाए जाते हैं। इस तरह आईजीएसटी निपटान को अन्य राज्यों या दूसरे देशों से आयात की जा रही वस्तुओं और सेवाओं पर कर माना जा सकता है।

जीएसटी परिषद प्रत्येक राज्य द्वारा जुटाए गए राजस्व की जानकारी देती है। इसमें केंद्रीय जीएसटी, राज्य जीएसटी यानी एसजीएसटी और आईजीएसटी शामिल होते हैं। साथ ही यह भी बताया जाता है कि आईजीएसटी निपटान के जरिये हरेक राज्य को कितनी रकम मिली। मोटे तौर पर हरेक राज्य को दो तरह की धनराशि का जोड़ मिलेगा।

पहले तो राज्य में वसूला जाने वाला एसजीएसटी होगा और फिर आईजीएसटी निपटान से मिली रकम होगी, जो आयातित वस्तुओं और सेवाओं से मिलने वाला राजस्व होती है। कुल राजस्व संग्रह (एसजीएसटी और आईजीएसटी का जोड़) और आईजीएसटी निपटान के अनुपात से पता चलना चाहिए कि राज्यों के बीच व्यापार पर कितनी निर्भरता है या देश के अन्य हिस्सों के साथ उस राज्य का कितना एकीकरण हो गया है।

सभी राज्यों को एक साथ मिलाकर देखें तो यह अनुपात पहले 45.9 फीसदी से गिरकर 27 फीसदी तक गया और फिर बढ़कर 48 फीसदी हो गया। कोविड के बाद के तीन सालों में यह अनुपात करीब-करीब एक जैसा ही रहा है। चूंकि बाजार की तस्वीर समय के साथ बदलती रहती है, इसलिए सभी राज्यों के लिए दिया गया यह आंकड़ा बताता है कि एकीकरण में मामूली वृद्धि ही हो सकी है।

किंतु अलग-अलग राज्यों के लिए यह कहानी अलग-अलग हो सकती है। दो तरह के अंतर देखे जा सकते हैं। पहला, एकीकरण की सीमा, जिसे कुल निपटान और आईजीएसटी निपटान के अनुपात द्वारा नापा जाता है और जो हर राज्य के लिए अलग होती है। 2018-19 में उत्तराखंड में यह अनुपात 20.4 फीसदी था मगर नागालैंड में यह 79.4 फीसदी रहा। 2019-20 में उत्तराखंड के लिए यह आंकड़ा 20.3 फीसदी था और नागालैंड के लिए 70 फीसदी रहा। 2023-24 में और बदलाव आया। इस बार सबसे कम 29.2 फीसदी अनुपात झारखंड का था और 72 फीसदी के साथ मिजोरम सबसे ऊपर पहुंच गया था।

दूसरा अंतर एकीकरण में बदलाव का था, जो विभिन्न राज्यों में अलग-अलग रहा। 19 राज्यों में एकीकरण में बढ़ा मगर बाकी राज्यों में अनुपात में गिरावट नजर आई। कुछ राज्यों के लिए एकीकरण की प्रक्रिया तेज रही है, जिससे उनके लिए अनुपात में तेज इजाफा दिखा। जिन राज्यों में 5 फीसदी से अधिक इजाफा हुआ, वे हैं-उत्तराखंड, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, राजस्थान और गुजरात।

दूसरी ओर नागालैंड, झारखंड, ओडिशा और केरल में तेज गिरावट आई, जो करीब-करीब इतनी ही रही। इन अलग-अलग रुझानों पर ध्यान देने की जरूरत है। नागालैंड के लिए अनुपात में कमी का अनुमान था क्योंकि शुरुआत में उसका अनुपात बहुत अधिक था। लेकिन अन्य तीन राज्यों के लिए अनुपात में गिरावट शायद बताती है कि इन राज्यों में आर्थिक गतिविधियों की प्रकृति और पैमाना बढ़ गया है। इस बदलाव की गहरी पड़ताल करना जरूरी है।

विभिन्न राज्यों के रुझान अलग-अलग होने के अलावा एक और बात ध्यान खींचती है और वह है राज्यों के अटपटे समूह बनना। 2023-24 के आंकड़ों को देखें तो महाराष्ट्र, गुजरात और तमिलनाडु का अनुपात 40 फीसदी या उससे कम है। महाराष्ट्र का अनुपात 34.2, गुजरात का 37.7 और तमिलनाडु का 40.1 है। इन राज्यों के औद्योगिक क्षेत्रों और सेवा क्षेत्र में खासी विविधता है, जिसे देखते हुए कहा जा सकता है कि उनकी स्थानीय अर्थव्यवस्था शायद ज्यादा मजबूत है। हरियाणा 44.4 फीसदी अनुपात के साथ इनके ठीक पीछे है। हमें इस समूह में छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा और उत्तराखंड भी मिलते हैं, जिनका अनुपात 41.6 फीसदी, 29.3 फीसदी, 35.6 फीसदी और 36.6 फीसदी है।

बाद वाले राज्यों का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद कम है, उनका मासिक प्रति व्यक्ति खपत व्यय कम है और वहां अनाजों की खपत अपेक्षाकृत अधिक है। परंतु ऐसी खासियतों वाले ये अकेले राज्य नहीं हैं। इन राज्यों में एक और खासियत मिलती है – इन सभी में प्रचुर मात्रा में संसाधन तथा खनिज पाए जाते हैं।

कुछ खनिजों खास तौर पर बिजली उत्पादन के लिए इस्तेमाल होने वाले इनपुट टैक्स क्रेडिट की सीमा तय की गई है, जिसके कारण स्थानीय राजस्व में विसंगति दिख सकती है। किंतु ये अकेले राज्य नहीं हैं, जहां ऐसा दिखता है। क्या ये राज्य किसी ढांचागत बदलाव से गुजर रहे हैं? इस पहेली पर थोड़ा और विचार करने की जरूरत है।

(लेखिका नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनैंस ऐंड पॉलिसी, नई दिल्ली की निदेशक हैं)

First Published - October 3, 2024 | 8:57 PM IST

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