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गुणवत्ता वाली मानसिकता के अभाव की वजह?

भारतीय नियामक आमतौर पर वैश्विक चलन और मानदंडों के आधार पर अपने नियमन की रूपरेखा तैयार करते हैं।

Last Updated- May 15, 2024 | 10:29 PM IST
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दवा उद्योग (Pharmaceutical Industry) कई वर्षों तक खराब वजहों से चर्चा में रहा और अब भारतीय दवा नियामक ने कदम उठाने का फैसला किया है।

दवा उद्योग नकली और घटिया गुणवत्ता वाली दवाओं (NSQ) के घरेलू बाजार में खुलेआम बेचे जाने से लेकर भारतीय कंपनियों द्वारा निर्यात की गई दवाओं से कई देशों में सैकड़ों लोगों की मौत के चलते सुर्खियों में रहा।

वर्ष 2023 के अंत में सरकार और दवा नियामक, भारतीय औषधि महानियंत्रक (DCGI) ने यह आदेश दिया कि सभी दवा निर्माताओं को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की बेहतर विनिर्माण प्रक्रिया (जीएमपी) के मानकों का पालन करना होगा, चाहे उनका दायरा कैसा भी हो। दवा निर्माताओं को इस साल के अंत तक डब्ल्यूएचओ जीएमपी प्रमाणन हासिल करने की आवश्यकता होगी।

इस बदलाव से पहले केवल अमेरिका या यूरोपीय देशों को भेजी जाने वाली भारतीय दवाओं के लिए यह सुनिश्चित करना जरूरी था कि वे विकसित देशों के गुणवत्ता मानकों पर खरा उतरती हैं।

यूएस फूड ऐंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (US FDA) भी उन भारतीय दवा निर्माताओं के दवा कारखाने का निरीक्षण करता था जो अपनी दवाओं का निर्यात अमेरिका में करना चाहते थे। इस प्रमाणन के बिना भारत के दवा निर्माता अमेरिका में दवा नहीं बेच सकते थे।

इस बीच, भारत का एक अन्य विनिर्माण क्षेत्र भी कुछ गलत वजहों से सुर्खियों में है। दरअसल सिंगापुर और हॉन्ग कॉन्ग ने हाल ही में एमडीएच और एवरेस्ट जैसे दो प्रमुख भारतीय मसाला ब्रांडों पर प्रतिबंध लगाते हुए कहा कि उनके मसाले में कार्सिनोजेन, एथिलीन ऑक्साइड (ईटीओ) की मात्रा स्वीकार्य स्तर से कहीं अधिक है।

इस क्षेत्र के नियामक, भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने तेजी से काम किया लेकिन इसकी कार्रवाईयों ने कई पेचीदा सवाल खड़े कर दिए। एफएसएसएआई ने देश में बनाए जाने वाले सभी मसालों के परीक्षण के आदेश दे दिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे इसके मानकों का पालन करते हैं।

साथ ही मसाला बोर्ड को यह सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए कि निर्यात वाले सभी मसालों के लिए ईटीओ के स्तर का परीक्षण किया जाए। यह अच्छी बात थी।

हालांकि, जल्द ही बिज़नेस स्टैंडर्ड सहित कई समाचार पत्रों में बताया गया कि सिंगापुर और हॉन्ग कॉन्ग द्वारा एमडीएच और एवरेस्ट में ईटीओ के स्तर को लेकर चिंता जताए जाने से पहले एफएसएसएआई ने जड़ी बूटियों और मसालों में कीटनाशकों के अनुमति वाले मानकों में दस गुना की छूट दी थी।

एफएसएसएआई ने अपने बचाव में कहा कि उसने विशेषज्ञों से सलाह लेने के बाद ही कीटनाशक की सीमा बढ़ाई। इसके अलावा, रिपोर्टों से पता चलता है कि नियामक भारत में बेचे जा रहे मसालों की ईटीओ सीमा के बारे में चिंतित हो यह जरूरी नहीं है बल्कि यह निर्यात किए जाने वाले मसालों के मामले में संभव हो सकता है।

तीसरे उद्योग में, वाहन उद्योग की बात की जा सकते हैं जिसमें भारत ने आखिरकार वैश्विक कार मूल्यांकन योजना के आधार पर भारत न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (भारत एनसीएपी) को लागू करने की दिशा में कदम उठाया। नई कारों का परीक्षण दुर्घटना की स्थिति में उनकी गुणवत्ता और सुरक्षा का आकलन करने के लिए किया जाएगा। ऐसा होने से पहले, भारतीय कार ग्राहकों को इस बात का उतना अंदाजा नहीं था कि उनकी कारें संरचनात्मक रूप से कितनी सुरक्षित हैं।

पिछले तीन दशकों में लगातार सरकारों के प्रयासों और योजनाओं के बावजूद, भारत के वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने में नाकाम रहने के कई कारण बताए गए हैं। लॉजिस्टिक्स और बिजली लागत अधिक रहने, श्रम उत्पादकता कम होने और स्थानीय नियमन से जुड़े मुद्दों पर अक्सर चर्चा की जाती है लेकिन कई भारतीय उत्पादों की निम्न गुणवत्ता मानक पर आमतौर पर ध्यान नहीं जाता है।

केंद्र सरकारों, राज्य सरकारों के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों के नियामकों ने भारत में बने और बेचे जा रहे सामान की गुणवत्ता पर या यहां तक कि लातिन अमेरिका, अफ्रीका या एशिया के कम विकसित देशों को निर्यात किए जा रहे सामानों पर भी अक्सर बहुत कम ध्यान दिया है।

ऐसा नहीं है कि भारतीय निर्माता उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद नहीं बना सकते हैं। किसी भी क्षेत्र की कोई भी विनिर्माण इकाई जो अमेरिका, यूरोप, जापान, दक्षिण कोरिया आदि में निर्यात करती है, वह इन बाजारों के उच्च गुणवत्ता मानकों को पूरा करेगी। वे जिन सामान का निर्यात करते हैं उनकी गुणवत्ता, घरेलू बाजार में बेचे जाने वाले सामानों की तुलना में काफी बेहतर होती है। ऐसा भी नहीं है कि भारत की नियमन प्रणाली हमेशा ढीली ही होती है लेकिन कई क्षेत्रों में ऐसा ही तस्वीर है।

भारतीय नियामक आमतौर पर वैश्विक चलन और मानदंडों के आधार पर अपने नियमन की रूपरेखा तैयार करते हैं। हालांकि दवाओं या खाद्य पदार्थों से जुड़े कुछ भारतीय मानक, विकसित देशों के मानक जितने सख्त नहीं होते हैं लेकिन कुछ अन्य मानक उनकी तुलना में सख्त होते हैं।

असल समस्या, अक्सर संस्थागत क्षमता से जुड़ी होती है। ऐसे में सभी दवा कंपनियों को डब्ल्यूएचओ जीएमपी का पालन करने के लिए आदेश दिया जाना ज्यादा मददगार नहीं होता है। खासतौर पर तब जब आप यह सुनिश्चित नहीं कर सकते कि कंपनियां वास्तव में केवल प्रमाणन के वक्त पर नहीं बल्कि नियमित रूप से मानकों का पालन कर रही हैं।

इसी तरह, सिर्फ निर्यात वाले मसालों पर ही ईटीओ और कीटनाशकों जैसे अन्य दूषित तत्त्वों के लिए कड़ी जांच का कोई मतलब नहीं है जब घरेलू ग्राहकों को इसी तरह के उत्पादों का उपभोग करने दिया जाता है जो घटिया या दूषित होते हैं।

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के पास पूंजी और संसाधनों की कमी जैसे तर्क वास्तव में नीति निर्माताओं और नियामकों की निष्क्रियता और सोच-विचार में कमी का नतीजा है।

पर्याप्त स्तर पर प्रयोगशाला परीक्षण सुविधाएं स्थापित करना, पर्याप्त योग्य निरीक्षकों को काम पर रखना और छोटे उद्यमों को बेहतर गुणवत्ता वाला बनाने में मदद करना दरअसल सरकार और नियामकों का ही काम है।

यह तर्क भी ठीक नहीं है कि गुणवत्ता मानकों को पूरा करने से लागत बढ़ जाएगी। बिजली लागत और सरकारी करों को कम करके लागत प्रतिस्पर्धा लॉजिस्टिक्स में सुधार किया जा सकता है और इसके लिए गुणवत्ता मानकों से समझौता करने की भी जरूरत नहीं है।

सरकार द्वारा लगाए जाने वाले करों के कारण भारत में अधिकांश कारों की कीमत, विकसित बाजारों की तुलना में अधिक होती है। विदेशी बाजारों के ग्राहकों की तुलना में घरेलू उपभोक्ताओं को गुणवत्ता के मामले में नुकसान उठाना पड़ता है, भले ही समान विनिर्माण संयंत्र में दोनों बाजारों के लिए वाहन बनाए जा रहे हों।

हर वह देश जो एक बड़ी विनिर्माण शक्ति बना है, उसने अपने उत्पादों के गुणवत्ता मानक के स्तर को बढ़ाया है और यह सुनिश्चित किया है कि घरेलू ग्राहकों को गुणवत्ता के मामले में नुकसान न उठाना पड़े।

भारतीय नीति निर्माताओं को इसे समझने की जरूरत है। इसी तरह, कॉरपोरेट जगत को भी यह समझने की जरूरत है कि गुणवत्ता से जुड़ी मानसिकता को अपनाए बिना वे वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी बनने की आकांक्षा कभी नहीं कर सकते हैं।

(लेखक बिज़नेस टुडे और बिज़नेस वर्ल्ड के पूर्व संपादक और संपादकीय परामर्श संस्था प्रोजैक व्यू के संस्थापक हैं)

First Published - May 15, 2024 | 9:55 PM IST

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