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Editorial: कौशल विकास में निजी-सरकारी तालमेल और निगरानी की चुनौती

नएसडीसी का आरंभिक उद्देश्य कौशल विकास कार्यक्रम चलाने वाले संस्थानों को वित्तीय समर्थन उपलब्ध करने वाली एक इकाई के रूप में काम करना था

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- September 23, 2025 | 11:57 PM IST

राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (एनएसडीसी) में उत्पन्न संकट भूमिकाओं के बीच तालमेल के अभाव एवं पर्याप्त निगरानी के बिना किसी निजी-सार्वजनिक साझेदारी (पीपीपी) प्रारूप पर आधारित संस्थान शुरू करने से जुड़े जोखिमों को रेखांकित करता है। एनएसडीसी में यह संकट पिछले एक वर्ष से चल रहा है। इस वर्ष मई में इसके मुख्य कार्य अधिकारी (सीईओ) को पद से हटा दिया गया। उन पर वित्तीय अनियमितताओं के आरोप थे और उनके खिलाफ अन्य शिकायतें भी आई थीं।

खबरों में कहा गया कि ऋणों के आवंटन एवं उनकी वसूली में जरूरी सावधानियां एवं पारदर्शिता नहीं बरती गई थीं। खबरों के अनुसार कई अस्तित्वहीन केंद्रों या बार-बार ऋण चूक करने वाले लोगों को भी ऋण आवंटित किए गए थे। ये विवाद ऐसे समय में सामने आए जब भारतीय श्रमबल में हुनर की कमी दूर करने और इस खाई को पाटने की तत्काल जरूरत महसूस की जा रही थी। भारतीय श्रम बल में हुनर की कमी की शिकायत कंपनी जगत लंबे समय से कर रहा है।

एनएसडीसी का विचार अपने आप में निर्विवाद था। वर्ष 2008 में पीपीपी तर्ज पर गैर-लाभकारी संस्थान के रूप में इसकी स्थापना हुई थी जिसमें सरकार की 51 फीसदी हिस्सेदारी थी जबकि निजी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले नैसकॉम, भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) और भारतीय उद्योग एवं वाणिज्य महासंघ (फिक्की) की 49 फीसदी हिस्सेदारी थी। एनएसडीसी का आरंभिक उद्देश्य कौशल विकास कार्यक्रम चलाने वाले संस्थानों को वित्तीय समर्थन उपलब्ध करने वाली एक इकाई के रूप में काम करना था। उस समय पीपीपी की संकल्पना काफी चलन में थी।

निजी क्षेत्र की भागादारी का प्रावधान करने का मुख्य मकसद एनएसडीसी के अंतर्गत प्रशिक्षित लोगों के लिए एक स्तर तक रोजगार सुनिश्चित करना था। यह कहना उचित ही होगा कि निजी क्षेत्र के कई बड़े दिग्गजों की निगरानी के बावजूद एनएसडीसी को साधारण सफलता ही हाथ लगी। यह संभवतः सरकारी और निजी क्षेत्र की प्रक्रियाओं में तालमेल के अभाव का नतीजा था। उस समय रोजगार बाजार में सुस्ती भी एक और वजह थी। वर्ष 2015 तक एनएसडीसी के कार्यों के विस्तार से नई चुनौतियां खड़ी हो गईं।

स्किल इंडिया मिशन की शुरुआत के साथ एनएसडीसी विभिन्न प्रकार के हुनर के लिए प्रमुख कार्यान्वयन एजेंसी बन गई। मगर इस कार्य को यथोचित ढंग से निपटाने के लिए कई प्रकार के प्रबंधकीय क्षमताओं की आवश्यकता थी। स्किल इंडिया मिशन के अंतर्गत चार प्रमुख योजनाएं हैं जिनके तहत कई संस्थान आते हैं। उदाहरण के लिए हुनर बढ़ाने और पुनर्कौशलीकरण के लिए प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) शुरू की गई, जो 2,500 से अधिक केंद्रों में चलाए जा रहे हैं।

इसके अलावा राष्ट्रीय प्रशिक्षुता संवर्द्धन योजना भी लाई गई जो आंशिक रूप से नियोक्ताओं को बुनियादी प्रशिक्षण देने के लिए वित्तीय मदद देती है। इस योजना से करीब 49,000 से नियोक्ता जुड़े हैं। इनके अलावा शिल्पकार प्रशिक्षण योजना आदि हैं जो औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों द्वारा चलाए जा रही हैं। एक विदेशी शाखा विदेश में भी कर्मचारियों को रोजगार दिलाने में मदद करती है जैसा कि हाल में इजरायल के लिए निर्माण कामगारों के मामले में किया गया।

किसी अलाभकारी संस्था में कार्यरत 200 लोगों के लिए इतनी सारी जिम्मेदारियां काफी अधिक हैं खासकर तब जब प्रत्येक योजना के लिए संस्थानों में गहरी समझ की जरूरत है। इसे देखते हुए अगर रोजगार दिलाने का एनएसडीसी का रिकॉर्ड साधारण रहा है तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। प्रशिक्षण की गुणवत्ता पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। इस पूरे मामले की गंभीरता को देखते हुए कौशल विकास प्रदान करने वाले ढांचे के संपूर्ण पुनर्गठन की जरूरत है।

इसमें एनएसडीसी की भूमिका की दोबारा समीक्षा किए जाने की भी जरूरत है। एक अधिक ठोस पीपीपी ढांचे वाली राष्ट्रीय प्रशिक्षुता प्रोत्साहन योजना हो सकती है जो निजी प्रतिष्ठानों में नौकरी के साथ-साथ कर्मचारियों को प्रशिक्षण भी दिलाए। एनएसडीसी के उदाहरण से पता चलता है कि सरकारी कार्य में निजी क्षेत्र को सीधे तौर पर शामिल करने के भारत में यदा-कदा ही क्रांतिकारी बदलाव सामने आए हैं।

First Published : September 23, 2025 | 11:02 PM IST