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वोडाफोन आइडिया के एजीआर बकाया पर राहत: टेलीकॉम सेक्टर के लिए वरदान या संकट?

एजीआर राहत पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को सरकार के लिए करों और शुल्कों को तार्किक बनाने की शुरुआत के रूप में देखा जाना चाहिए। बता रही हैं निवेदिता मुखर्जी

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निवेदिता मुखर्जी   
Last Updated- November 10, 2025 | 11:09 PM IST

पिछले सप्ताह की शुरुआत में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को वित्त वर्ष 2016-17 तक वोडाफोन आइडिया (वीआई) के एजीआर के मद में समूचे बकाया रकम की नए सिरे से मूल्यांकन करने की अनुमति दी थी। यह 27 अक्टूबर को जारी किए गए उस आदेश का संशोधन था जिसमें केवल 9,450 करोड़ रुपये की अतिरिक्त मांग पर ध्यान केंद्रित किया गया था। बाद के 3 नवंबर के आदेश ने संकट से घिरी दूरसंचार कंपनी के लिए राहत के दायरे को कई गुना बढ़ा दिया है। यह हमें इस सवाल की ओर ले जाता है कि केंद्र सरकार, (जिसकी वीआई में 49 फीसदी हिस्सेदारी है) अब क्या करेगी।

क्या सरकार ‘जनहित’ में इस कंपनी का एजीआर के मद में बकाया 83,400 करोड़ रुपये माफ कर देगी? क्या सरकार वित्तीय देनदारी के बदले में वीआई में अतिरिक्त हिस्सेदारी लेगी और आदित्य बिड़ला समूह और ब्रिटेन स्थित वोडाफोन के संयुक्त उद्यम वाली दूरसंचार कंपनी में बहुलांश अंशधारक बन जाएगी? इसके अलावा, सरकार भारती एयरटेल द्वारा 38,604 करोड़ रुपये के एजीआर बकाया पर राहत मांगने की याचिका से कैसे निपटेगी? अन्य प्रमुख दूरसंचार कंपनी रिलायंस जियो पर कोई एजीआर बकाया नहीं है क्योंकि इसने सितंबर 2016 में अपना संचालन शुरू किया था।

अगर सरकार दूरसंचार उद्योग में एकाधिकार की स्थिति रोकने के लिए कदम उठाती है, जिसमें वीआई को उसकी संचित देनदारियों पर राहत देना शामिल है, तो एक और सवाल बिल्कुल पूछा जा सकता है। क्या सरकारी स्वामित्व वाली दूरसंचार कंपनियां, भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) और महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड (एमटीएनएल) मिलकर दूरसंचार उद्योग को प्रतिस्पर्धी और दो कंपनियों के एकाधिकार से मुक्त बनाए रखने के लिए आवश्यक बैंडविड्थ उपलब्ध नहीं करा सकतीं?

30 सितंबर 2025 तक निजी दूरसंचार कंपनियों के पास 92 फीसदी से अधिक बाजार हिस्सेदारी थी जबकि सार्वजनिक क्षेत्र की दूरसंचार कंपनियों के पास शेष 8 फीसदी हिस्सेदारी थी। जहां तक दो कंपनियों के एकाधिकार की बात है तो विमानन जैसे अन्य उपभोक्ता-उन्मुख क्षेत्रों में भी लगभग ऐसी स्थिति देखी जा रही है। मगर यह किसी भी लिहाज से ठीक नहीं है।

एक दूरसंचार कंपनी के उपभोक्ताओं की संख्या (वीआई के मामले में लगभग 12.77 करोड़ वायरलेस/ब्रॉडबैंड ग्राहक) को अक्सर सरकार द्वारा किसी इकाई को चालू रखने के लिए उठाए गए उपायों के मुख्य कारणों में से एक के रूप में उद्धृत किया जाता है लेकिन कुछ वर्षों से मोबाइल फोन उपयोगकर्ताओं के लिए नंबर पोर्टेबिलिटी का विकल्प उपलब्ध रहा है। हालांकि, इतनी बड़ी संख्या में उपयोगकर्ताओं को एक बार में समाहित करना मुश्किल होगा।

इस बिंदु पर अगर सरकार जनहित में वीआई को राहत देती है और उसके प्रतिद्वंद्वी एयरटेल को नहीं देती है तो समान कारोबारी अवसर से जुड़े सवाल उठ सकते हैं। यहां तक कि बिना एजीआर बकाए वाली अन्य कंपनियां भी संचालन के किसी अन्य क्षेत्र में समान अवसर की मांग कर सकती हैं। मिसाल के तौर पर सैटेलाइट ब्रॉडबैंड में।

सैटेलाइट ब्रॉडबैंड का मामला लंबे समय से अटका हुआ है क्योंकि स्पेक्ट्रम आवंटन (किसे कितना मिलेगा और कैसे) अभी तक तय नहीं हो पाया है। हालांकि, हम जानते हैं कि सैटेलाइट ब्रॉडबैंड के लिए स्पेक्ट्रम वैश्विक व्यवहार के अनुरूप नीलामी के माध्यम से नहीं बल्कि प्रशासित आवंटन तंत्र के माध्यम से दिए जाएंगे। इस खंड में संभावित खिलाड़ियों के बीच विभाजन समान अवसर के सवाल पर फिर से उभर सकता है।

पुरानी दूरसंचार कंपनियों (जो अब सैटेलाइट ब्रॉडबैंड में भी प्रवेश कर रही हैं) का तर्क यह रहा है कि उन्होंने 3जी, 4जी और 5जी सेवाओं में शामिल होने के लिए काफी पैसे खर्च किए हैं जबकि नई कंपनियां जैसे स्टारलिंक (ईलॉन मस्क द्वारा प्रचारित) या प्रोजेक्ट कुइपर (जेफ बेजोस द्वारा प्रचारित) के साथ ऐसी बात नहीं है। ये कंपनियां नए सैटेलाइट ब्रॉडबैंड के माध्यम से भारतीय बाजार में प्रवेश कर रही हैं। अगर मस्क और बेजोस की कंपनियां भारत में खुदरा दूरसंचार बाजार में उतरती हैं तो समान अवसर का सवाल निश्चित रूप से उठेगा।

तकनीक के क्षेत्र में ई-कॉमर्स पहले ही समान अवसर के दो पहलू देख चुका है। भारतीय ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए इन्वेंट्री-आधारित व्यवसाय की अनुमति है जबकि विदेशी स्वामित्व वाली कंपनियां केवल मार्केटप्लेस मॉडल का पालन कर सकती हैं। दोनों स्वरूपों में व्यवसाय करने के नियम बहुत अलग हैं और इस अंतर का कोई विशिष्ट कारण या तर्क नहीं दिया गया है। बताया जाता है कि इन्वेंट्री बनाम मार्केटप्लेस पर भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते के हिस्से के रूप में चर्चा की जा रही है। सरकार द्वारा निर्यात के उद्देश्य से इन्वेंट्री-आधारित ऑनलाइन व्यवसाय में विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों को अनुमति देने की संभावना है।

कुल मिलाकर नियमों की एकरूपता को लेकर सभी क्षेत्रों में एक मानक होना चाहिए। अलग-अलग नियम, चाहे वे दूरसंचार कंपनियों, खुदरा संस्थाओं या ऑनलाइन व्यवसायों में हों, हमेशा समान अवसर के सवालों को जन्म देंगे।

एक विशेष दूरसंचार कंपनी को राहत देने के लिए सरकार को अनुमति देने वाले उच्चतम न्यायालय के हालिया आदेश को सभी हितधारकों द्वारा सही भावना से लिया जाना चाहिए। यह सरकार को किसी निजी दूरसंचार कंपनी की वित्तीय देनदारियों को बट्टे खाते में डालने का न्यायालय का निर्देश नहीं है। इसके बजाय यह सरकार के लिए करों और शुल्कों को युक्तिसंगत बनाने के लिए एक शुरुआती बिंदु हो सकता है ताकि दूरसंचार उद्योग भविष्य में बेहतर स्थिति में रहे।

First Published : November 10, 2025 | 9:31 PM IST