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वित्तीय बाजारों में आतंकियों के लिए मुनाफे की स्थिति!

क्या यह संभव है कि आतंकवादी और अलग-अलग तरह के आक्रांता पूर्व जानकारी के आधार पर वित्तीय बाजारों से मुनाफा कमा सकें? इस विषय में अपनी बात रख रहे हैं अजय शाह

Last Updated- December 13, 2023 | 8:25 AM IST
Profitable situation for terrorists in financial markets!

दो अगस्त, 1990 को जब सद्दाम हुसैन ने कुवैत पर आक्रमण किया था तब कच्चे तेल की कीमत बहुत कम समय में करीब 40 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 90 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई थी। उस समय ऐसी अफवाहें थीं कि इराकी सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े कुछ लोगों ने समय से पहले ही कच्चे तेल के डेरिवेटिव में फायदा उठाने की तैयारी कर ली थी। इस पर एक जांच शुरू हुई लेकिन इस दावे के समर्थन में कोई प्रमाण नहीं हासिल हो सका।

अभी अमेरिका में विधि के दो प्रोफेसरों ने एक बेहतरीन प्रपत्र लिखा, ‘ट्रेडिंग ऑन टेरर?’ इस पर्चे में उन्होंने सुझाव दिया है कि 7 अक्टूबर को हमास के हमले के पहले इजरायल के शेयरों में असामान्य गतिविधि देखी गई। अनुमान लगाया गया कि इसके जरिये कुछ लोगों (संभवत: हमास के) ने मुनाफा कमाया क्योंकि हमले के बाद वित्तीय बाजारों में उथलपुथल की स्थिति बनी। इस दौरान आकलन में कुछ गड़बड़ियां भी हुईं और कोई बड़ा मुनाफा नहीं कमाया जा सका।

डेरिवेटिव एक्सचेंजों के आंकड़ों के अकादमिक जगत तक पहुंचने के साथ ही कई आक्रमणों और आतंकी घटनाओं का अध्ययन किया गया ताकि सनसनीखेज रिपोर्ट लिखी जा सकें लेकिन ऐसे भेदिया कारोबार की घटनाएं लिखित में दर्ज नहीं हैं। इस बात पर थोड़ा ठहरकर विचार करते हैं। अगर आप बुरे कारक हों तो किसी चौंकाने वाली सैन्य या आतंकी घटना के पहले डेरिवेटिव बाजार से लाभ हासिल करने को छिपाना बेहतर है?

इस रणनीति में दो दिक्कतें हैं। अगर आप राज्य के कारक हैं। उदाहरण के लिए सद्दाम हुसैन का कुवैत पर आक्रमण करना, व्लादीमिर पुतिन का यूक्रेन पर आक्रमण करना या शायद शी चिनफिंग किसी बड़े हमले का ख्वाहिशमंद होना तो ऐसी स्थिति में बहुत बड़े पैमाने पर संसाधनों की आवश्यकता होती है।

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यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की सीधी सैन्य लागत 100 अरब डॉलर सालाना से अधिक बैठी है। इसका विपरीत आर्थिक प्रभाव तो और भी अधिक है। मसलन तेल निर्यात राजस्व में कमी होना आदि। कीमतों में 20 फीसदी परिवर्तन के साथ 100 अरब डॉलर का मुनाफा वापस पाने के लिए पांच लाख करोड़ डॉलर मूल्य की प्रतिभूतियां रखनी होंगी। सबसे गहरे और तरल डेरिवेटिव बाजार ऐसी स्थितियों का समर्थन नहीं करते।

ऐसे में इस प्रकार का भेदिया कारोबार किसी राज्य के कारक के लिए रुचिकर नहीं होगा। जहां तक गैर सरकारी या गैर राज्य कारकों की बात है तो हमास जैसे आतंकी समूह के लिए 5 करोड़ डॉलर की राशि बहुत ठोस है। पुतिन सरकार ने ऐसे कई व्यक्तियों को रोक रखा है जो ऐसे कारोबार से 5 करोड़ डॉलर की राशि जुटाकर रूस से भाग सकते हैं। क्या डेरिवेटिव बाजार में शॉर्ट सेलिंग के साथ भेदिया कारोबार का इस्तेमाल इस प्रकार आतंकवादियों या आक्रमण की स्थिति में सरकारों की ओर से किया जा सकता है? अगर यह सही है तो क्या वित्तीय बाजारों की सूचनाओं में आतंकी हमलों या आक्रमणों के बारे में शुरुआती संकेत मिल सकते हैं?

ऊपर हमने ‘भेदिया कारोबार’, ‘शॉर्ट सेलिंग’, ‘डेरिवेटिव बाजार’, ‘आतंकवादी’ और ‘सरकारों में शामिल ऐसे लोग जो दूसरे देश पर आक्रमण कर सकते हों।’ भारत में ऐसे शब्द सरकार की ओर से गंभीर कार्रवाई को बढ़ावा दे सकते हैं। हालांकि संक्षेप में कहें तो एक्सचेंजों की सीमित क्षमता को देखते हुए यह परिदृश्य बहुत दूर की कौड़ी है। जिन लोगों को वित्तीय मामलों की जानकारी नहीं है वे ही ऐसे दावों पर यकीन कर सकते हैं कि वित्तीय बाजारों से धनराशि रहस्यमय तरीके से गायब हो गई।

परंतु डेरिवेटिव बाजार की बात करें तो एक व्यक्ति का मुनाफा दूसरे का घाटा होता है। एक्सचेंज में तयशुदा सदस्य होते हैं। अगर कुछ लोग भारी लाभ कमाएंगे तो फंड बड़ी तादाद में कुछ लोगों के पास जाएगा। हर प्रकार के मुनाफे और घाटे को एक्सचेंज की प्रणाली में दर्ज किया जाता है और सारी राशि बैंकिंग तंत्र के जरिये इधर-उधर होती है। कुछ भी छिपाया नहीं जा सकता है।

बंबई पर किसी आतंकी हमले पर विचार कीजिए। भेदिया कारोबारियों को इससे लाभ कमाना हो तो निम्न चीजें होंगी: (अ) घटना के पहले निफ्टी डेरिवेटिव में एक खास तरह का अस्वाभाविक जमावड़ा नजर आएगा, (ब) हमले के बाद जब निफ्टी में गिरावट आएगी तो कुछ खास कारोबारियों को असामान्य भुगतान होगा जो कुछ चुनिंदा प्रतिभूति कंपनियों के जरिये कारोबार करते हैं। वित्तीय बाजारों में जो कुछ होता है उससे संबंधित तथ्य सूचना तंत्र में रहते हैं।

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ऐसे में यदि कुछ भी असामान्य होता है तो वह एक्सचेंज के कर्मचारियों की निगरानी से बच नहीं पाएगा। भेदिया कारोबार किसी भी स्तर पर हो वह आतताइयों के लिए खतरनाक हो सकता है क्योंकि इसे आंकड़ों में आसानी से चिह्नित किया जा सकता है। घटना के बाद निगरानी टीम के लिए यह देखना आसान होता है कि किसे भुगतान किया गया। कोई भी भेदिया गतिविधि आसानी से पकड़ी जा सकती है। क्या आतंकवादी और सरकार के भीतरी लोग अवसर का लाभ उठाकर ऐसे कारोबार कर सकते हैं ताकि एक्सचेंज की ढिलाई का फायदा उठाकर मुनाफा कमा सकें।

दिक्कत यह है कि ऐसा लाभ कमाने के लिए शुरुआत में ही बहुत अधिक आर्थिक संसाधनों की आवश्यकता होगी। वायदा कारोबार के लिए मार्जिन की आवश्यकता होती है और लिवाली विकल्प के लिए भुगतान करना होता है। कुल मिलाकर हर परिस्थिति में संसाधनों की जरूरत होगी जो किसी आतंकवादी समूह या सरकारी लोगों के लिए आसान काम नहीं है। इसके एक्सचेंज कर्मचारियों के द्वारा पकड़े जाने का जोखिम भी बहुत अधिक है।

उपरोक्त बातों का लब्बोलुआब यह है कि वित्तीय बाजारों में कारोबार करके भारी भरकम मुनाफा कमाने के दावे वास्तव में एक किस्म के षडयंत्र सिद्धांत का हिस्सा हैं जो ऐसे लोगों के लिए किए जाते हैं जिनको बाजार की कार्य प्रणाली की समझ नहीं है। सन 1997 के बेस्ट सेलर उपन्यास ड्रैगन स्ट्राइक में हंफ्री हॉकस्ले और सिमॉन होलर्बटन लिखते हैं कि जब चीन के सैन्य अधिकारियों ने दक्षिण चीन सागर में युद्ध छेड़ने का निर्णय लिया तो उन्होंने वायदा बाजारों पर भी हमला करने का निर्णय लिया।

गोलीबारी शुरू होने के ठीक पहले उन्होंने डॉलर और तेल पर लॉन्ग पोजीशन ली और येन पर शॉर्ट पोजीशन ली। लॉन्ग पोजीशन से तात्पर्य है कि उनके पास शेयर मौजूद थे जबकि शॉर्ट पोजीशन का मतलब है कि उनके ऊपर उस शेयर का बकाया है लेकिन वे अब तक उन शेयरों के मालिक नहीं हैं। इसका नेटफ्लिक्स रूपांतरण बताता है कि हम आसानी से ऐसे दृश्यों की कल्पना कर सकते हैं लेकिन वास्तव में यह एक यथार्थवादी रणनीति नहीं होती।

(लेखक एक्सकेडीआर फोरम में शोधकर्ता हैं)

First Published - December 12, 2023 | 9:25 PM IST

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