त्रिनयनी (ज़ी तेलुगू पर इसी नाम से आ रहे धारावाहिक की मुख्य किरदार) के पास भविष्य देखने की शक्ति है, जिससे वह अपने परिवार की रक्षा करती है। फुलकी (ज़ी बांग्ला के फुलकी धारावाहिक की किरदार) का सपना मुक्केबाज बनना है। भाभीजी (ऐंड टीवी पर भाभीजी घर पे हैं) छोटे शहर की हंसमुख और मजाकिया महिला हैं। ये सभी ज़ी एंटरटेनमेंट के 40 चैनलों और स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पर आ रहे शो के बेहद लोकप्रिय किरदार हैं।
इस वर्ष की शुरुआत में ज़ी ने दिलफ्लुएंसर पेश किया। इस पहल के तहत ज़ी ने विज्ञापनदाताओं को बताया कि त्रिनयनी और फुलकी जैसे टीवी सीरियल के किरदार वास्तव में इंटरनेट पर मशहूर सेलेब्रिटीज की तुलना में ज्यादा असरदार हैं। उसका तर्क था कि घरों में हर रात नजर आने के कारण इन किरदारों का छोटे शहरों के दर्शकों से एकदम अलग किस्म का रिश्ता है। मैरिको, बिरला ओपस, फिनोलेक्स और लॉरियल जैसी कंपनियों को इस दलील में दम लगता है। उनके उत्पाद अब इंस्टाग्राम पर भाभीजी और दूसरे किरदारों वाली रील में नजर आते हैं।
ज़ी को उस गोले में बैठा मानिए, जिसमें पेशेवर तरीके से बनाए कार्यक्रमों और फिल्मों के साथ मुख्यधारा का मीडिया रहता है। दूसरे गोले में इंस्टाग्राम, यूट्यूब, फेसबुक और यूजरों द्वारा बनाए गए वीडियो का ढेर रहता है। इसमें बिल्ली और कुत्ते के वीडियो से लेकर रोटी बनाना सिखाने वाले वीडियो तक सब हैं।
ये दोनों गोले जहां एक दूसरे को काटते हैं, उस हिस्से में दिलफ्लुएंसर रहते हैं। यह स्तंभ दिलफ्लुएंसरों के बारे में नहीं है। उनकी बात तो उदाहरण के लिए की जा रही है। असल में यहां उस खाने की बात हो रही है, जो मुख्यधारा की सामग्री वाले गोले और यूजरों के वीडियो वाले गोले के आपस में कटने से बनता है। साथ ही उस रफ्तार की बात भी हो रही है, जिससे ज़ी, जियोस्टार, सोनी या दूसरे मीडिया उसे बढ़ा रहे हैं। मुख्यधारा के मीडिया और तकनीकी-मीडिया दिग्गजों की जंग का नतीजा इसी से तय होगा।
यह बात समानांतर मीडिया से निकलकर आई है, जो करीब चार साल से उभर रहा है। इसमें 35 लाख से 50 लाख एन्फ्लुएंसर हैं, दो बड़े मीडिया-टेक प्लेटफॉर्म (गुगल और मेटा) हैं तथा कई डिजिटल एजेंसियां भी हैं। विज्ञापनदाताओं ने 2023 में लगभग 5,700 करोड़ रुपये या अपने डिजिटल विज्ञापन बजट का करीब 10 प्रतिशत हिस्सा इन एनफ्लुएंसरों पर खर्च कर दिया। यह खर्च हर साल दो अंकों में बढ़ता जा रहा है।
भारतीय विज्ञापन मानक परिषद ने एन्फ्लुएंसर की स्पष्ट परिभाषा दी है। उसके मुताबिक ‘एन्फ्लूएंसर वह शख्स होता है, जिसकी पैठ दर्शकों के बड़े वर्ग के बीच होती है और जो अपनी जानकारी, रुतबे या दर्शकों के साथ रिश्ते की वजह से उनके खरीदारी के फैसले को प्रभावित कर सकता है या किसी भी उत्पाद, सेवा, ब्रांड या अनुभव के बारे में उनके विचार बदल सकता है।’ विराज घेलानी को अपनी नानी के साथ गुजराती में बात करते हुए याद कीजिए। बातों-बातों में वह आसानी से किसी ब्रांड की बात कर जाते हैं। असल में अब एन्फ्लुएंसर ही मीडिया बन गया है।
‘यूजर द्वारा तैयार की गई सामग्री’ की दुनिया में दो सबसे बड़ी मीडिया कंपनियों का दबदबा है – 306 अरब डॉलर हैसियत वाली गूगल और 135 अरब डॉलर की मेटा। भारत के लिए भी यह उतना ही सच है। इंस्टाग्राम, व्हाट्सऐप और फेसबुक के जरिये मेटा तथा यूट्यूब के जरिये गूगल उन 52.3 करोड़ भारतीयों तक पहुंचती हैं, जो ऑनलाइन ब्राउजिंग करते हैं।
कॉमस्कोर की रिपोर्ट के मुताबिक सोशल मीडिया की पैठ (92.6 फीसदी) के मामले में भारत दुनिया में सबसे आगे है। भारत के लोग इंस्टाग्राम, यूट्यूब, फेसबुक और दूसरे ऐप्स पर हर महीने करीब 22 घंटे ब्राउजिंग करते हैं। वे जो कुछ देखते हैं, उनमें सबसे ज्यादा 39 फीसदी समय मीडिया तथा मनोरंजन की सामग्री को देते हैं। एन्फ्लुएंसरों की बनाई सामग्री 27 फीसदी के साथ दूसरे स्थान पर है। ये आंकड़े एंगेजमेंट के आधार पर दिए गए हैं, पहुंच के आधार पर नहीं। सामग्री को जितने ज्यादा लाइक्स, रीपोस्ट, कमेंट्स और शेयर मिलते हैं, उसका एंगेजमेंट उतना ही ज्यादा माना जाता है और एंगेजमेंट ही वह पैमाना है, जो इस दुनिया में कमाई लाता है।
इसके बाद मुख्यधारा के मीडिया की दुनिया है। इसमें टेलीविजन तमाम भाषाओं के कार्यक्रमों के साथ 90 करोड़ दर्शकों तक पहुंचता है। संगीत और टीवी से लेकर स्ट्रीमिंग और थिएटर तक मनोरंजन के हरेक पहलू में फिल्में शामिल हैं। पेशेवर तरीके से बनी और छांटी गई फिल्मों, शो तथा सीरीज में ज़ी और स्टार को महारत हासिल हैं मगर उन्हें लिखने और बनाने में सालों लग जाते हैं। उनकी ताकत अल्गोरिद्म के साथ (जैसे नेटफ्लिक्स और सोनीलिव करते हैं) या उसके बगैर ही (जैसे ज़ी के लीनियर चैनल करते हैं) के साथ दर्शकों को रोजाना अपनी ओर खींचने में है। टीवी दर्शकों की इस भीड़ तक पहुंचने के लिए विज्ञापनकर्ता स्ट्रीमिंग वीडियो के मुकाबले दो-तीन गुना ज्यादा दर पर भी विज्ञापन देने को तैयार करहते हैं। ज्यादातर बड़ी स्ट्रीमिंग ऐप्स मीडिया फर्मों से ही आई हैं जैसे डिज़्नी+हॉटस्टार, सोनीलिव और ज़ी5।
बहरहाल दुनिया में कहीं भी कोई भी मीडिया कंपनी टीवी की पहुंच और ऑनलाइन वीडियो का संगम कारगर तरीके से नहीं कर पाई है। वेन डायाग्राम या दो गोले एक दूसरे से कटने पर बना खाना काम आता है। यहां दरअसर उस फॉर्मैट के इस्तेमाल की बात है, जिसका इस्तेमाल कर तकनीकी दिग्गजों ने सामग्री की खपत को बदल दिया है। इसमें शॉर्ट्स और एन्फ्लुएंसर शामिल हैं और मुख्यधारा का रचनात्मक करिश्मा भी है। इंस्टाग्राम, व्हाट्सऐप, फेसबुक और एक्स पर पेशेवरों के हाथों से तैयार शॉर्ट्स, वीडियो या टेक्स्ट अथवा आम मीडिया फिल्में बेहतर कर रही हैं। अपना फोन स्क्रॉल करने वाले दर्शक ज्यादातर समय सोनी के कपिल शर्मा शो, बीबीसी के ग्राहम नॉर्टन शो, शाहरुख खान की जवान, सीबीएस के द बिग बैंग थ्योरी से निकाले छोटे-छोटे क्लिप्स देखने में ही बिता देते हैं।
कॉमस्कोर के हिसाब से सितंबर 2024 में भारत में सलमान खान, सारा अली खान और राम चरण इंस्टाग्राम, एक्स तथा फेसबुर पर शीर्ष एन्फ्लुएंसर रहे। भुवन बम या कुशा कपिला जैसे एन्फ्लुएंसरों को तमाम ब्रांड दूसरी या तीसरी जमात में रखते हैं। पहली जमात में हमेशा वे सेलेब्रिटी आते हैं, जिनका रुतबा इंटरनेट से बाहर मुख्यधारा के मीडिया के जरिये बना है। डांसर और टीवी शख्सियत शक्ति मोहन एन्फ्लुएंसर भी हैं, जो एक पैर पर तेजी से घूमकर दिखाती हैं कि पेपे जीन्स कितनी लचीली हैं। लेकिन इस ब्रांड की ग्लोबल एंबेसडर कृति सैनन हैं, जो मिमी और बरेली की बर्फी जैसी फिल्मों में नजर आने वाली लोकप्रिय तारिका हैं।
दिलफ्लुएंसर और ऐसी ही दूसरी पहलें मुख्यधारा के मीडिया की ताकत को गूगल और मेटा तक ले जाती हैं। मुख्यधारा के मीडिया को किरदार तथा कहानियों की समझ है और वह छोटे-बड़े हर शहर के दर्शकों पर पकड़ भी रखता है। सोशल मीजिया और एन्फ्लुएंसरों की बढ़ती तादाद का फायद केवल दो फिल्मों को ही मिला है। अब इसे बढ़ाने की जरूरत है।