भारत ने हाल ही में पिछले दो दशकों के मुकाबले सबसे भयानक ट्रेन दुर्घटना देखी है। आधिकारिक अनुमानों के मुताबिक इस दुर्घटना में 275 लोगों की मौत हुई और 1,000 से अधिक घायल हुए। इस हादसे में तीन ट्रेनें शामिल थीं, कोरोमंडल एक्सप्रेस, जो पटरी से उतर गई और फिर दूसरी लाइन से आ रही बेंगलूरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस ट्रेन से टकराने से पहले ही पटरी पर खड़ी एक मालगाड़ी से टकरा गई।
शुरुआती रिपोर्टों में इस दुर्घटना के संभावित कारणों में सिग्नल और स्विचिंग में त्रुटि या खराबी बताई गई थी। हालांकि इसकी जांच अब केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी गई है।
इस दुखद दुर्घटना का अंत बस इतना ही नहीं था बल्कि बालासोर में ट्रेन दुर्घटना स्थल से कुछ घायल व्यक्तियों को अस्पताल ले जा रही एक बस बंगाल के मेदिनीपुर जिले में एक वैन से आमने-सामने टकरा गई। इसी बीच बिहार में भी एक निर्माणाधीन पुल के ढह जाने का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।
जांच में ही बालासोर की दुखद ट्रेन दुर्घटना, बस दुर्घटना और पुल ढहने के पीछे के कारणों का पता चलेगा। लेकिन इन हादसों का इस तथ्य से बड़ा संबंध है कि भारत में नागरिकों की सुरक्षा और गुणवत्ता का मुद्दा कभी भी बड़ी प्राथमिकता में नहीं रहा है और इस पहलू की हमेशा उपेक्षा हुई, चाहे वह किसी भी सरकार का कार्यकाल क्यों न हो।
नागरिकों की सुरक्षा में सुधार करने के साथ ही दुर्घटनाओं का विश्लेषण करने और इन दुर्घटनाओं की संख्या कम करने के तरीके खोजने के लिए बेहद कम प्रयास किए गए हैं। निश्चित रूप से समय के साथ ट्रेन दुर्घटनाएं कम हो रही हैं और गंभीर दुर्घटनाओं की संख्या में कुछ वर्षों के दौरान काफी कमी आई है।
लेकिन हमारा रेलवे नेटवर्क काफी बड़ा है और 68,043 किलोमीटर के दायरे के साथ दुनिया में चौथा सबसे बड़ा है। सालाना आधार पर इस नेटवर्क पर 3.5 अरब लोग यात्रा करते हैं और ऐसे में रेलवे दुर्घटनाओं की संख्या और इन दुर्घटनाओं के कारण मरने वाले लोगों की संख्या वास्तव में गंभीर आंकड़े में तब्दील हो जाती है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े के अनुसार, वर्ष 2010 और 2021 के बीच हर साल औसतन 23,000 लोगों की मौत रेलवे दुर्घटनाओं में हुई। वहीं सड़क दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मौतों की संख्या कहीं अधिक है। वर्ष 2021 में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की एक रिपोर्ट में उस वर्ष सड़क दुर्घटनाओं की कुल संख्या 412,432 बताई गई, जिसमें 153,972 लोगों की मौत हो गई जबकि 384,448 लोग घायल हुए।
जब पुल ढहने की बात सामने आ रही है तो कुछ साल पहले के एक शोध का जिक्र करना आवश्यक होगा जिसके मुताबिक वर्ष 1977 और 2017 के बीच 2,130 पुल ढह गए थे। अगर सड़कों और राजमार्गों की बात करें तो खराब निर्माण के कारण वे धंस गए और यह तादाद हर साल हजारों नहीं तो सैकड़ों में होगी।
इन दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मौतें और चोट लगने के चार प्राथमिक कारण हैं। इनमें गलत डिजाइन, खराब रखरखाव और होने वाली टूट-फूट, अनुचित सुरक्षा प्रोटोकॉल और नियमन के साथ-साथ मानव त्रुटि की गुंजाइश भी है और यह स्थिति कभी-कभी थकान और बोरियत की वजह से और जटिल हो जाती है।
पांचवां, सुरक्षा नियमन और मानदंडों के जानबूझकर किए जाने वाले उल्लंघन पर तो अलग से चर्चा की जानी चाहिए क्योंकि इसका संबंध सामाजिक दृष्टिकोण के साथ-साथ कानून लागू करने वाली इकाइयों से भी है। भारत ऊपर जिक्र किए गए सभी क्षेत्रों में खराब प्रदर्शन कर रहा है।
हमारे राजमार्गों और पुलों तथा अन्य बुनियादी ढांचे में दोषपूर्ण तथा खराब डिजाइन के उदाहरण बड़ी मात्रा में हैं। हर राजमार्ग, चाहे वह आधुनिक हो या पुराना हो उसमें कई अच्छी तरह से पहचानी गई खतरे वाली जगहें होती हैं और ऐसी जगहों पर अधिकांश दुर्घटनाएं मुख्य रूप से खराब डिजाइन के कारण होती हैं। इन मौत के जाल को शायद ही कभी ठीक किया जाता है, भले ही मरने वालों की संख्या क्यों न बढ़ती रहे।
जहां तक खराब रखरखाव और टूट-फूट की बात है तो यह सार्वजनिक और यहां तक कि निजी क्षेत्र द्वारा तैयार किए गए बुनियादी ढांचे में भी बेहद आम हैं और इसके कई उदाहरण हैं। कुछ महीने पहले गुजरात के मोरबी ब्रिज पर हुई त्रासदी भी इसका सिर्फ एक उदाहरण है लेकिन ऐसे कई सैकड़ों अन्य उदाहरण भी हैं।
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CNG) की 2022 की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय रेलवे ने खुद ही कई खामियों की ओर इशारा किया था जिसमें निरीक्षण में कमी, सुरक्षा के खास उद्देश्य के लिए तैयार किए गए रेलवे फंड के कम उपयोग और यहां तक कि जांच रिपोर्ट पेश करने या स्वीकार करने में विफलता शामिल है।
अनुपयुक्त सुरक्षा और गुणवत्ता से जुड़े नियम के पहलू का अनुभव हर भारतीय नागरिक को रोजाना करना पड़ता है जिसमें विकसित देश की तरह कारों का क्रैश टेस्ट नियमों को पूरा नहीं करने से लेकर गाड़ी में सीट बेल्ट लगाने के धीमे क्रियान्वयन के साथ-साथ खाद्य पदार्थों और दवा के विवरण लेबलिंग के क्रियान्वयन के साथ-साथ खराब सुरक्षा मानक तक शामिल हैं।
आखिर में मानव त्रुटि की बात करते हैं जो कभी-कभी लंबी अवधि तक काम करने और थकान के कारण संभव हो सकता है। इसकी वजहों पर गौर करने के लिए हमें सुरक्षा कार्यों के लिए पर्याप्त लोगों को काम पर नहीं रखने और उन्हें प्रशिक्षित नहीं करने जैसे पक्षों को भी देखना पड़ सकता है।
वर्ष 2022 की सीएजी रिपोर्ट ने भी कर्मचारियों की भारी कमी की ओर इशारा किया था, खासतौर पर भारतीय रेलवे की सुरक्षा श्रेणी में कर्मचारियों की कमी को लेकर। रेलवे पर सीएजी की रिपोर्ट ही इन दिक्कतों को उजागर करने वाली एकमात्र रिपोर्ट नहीं है। सुरक्षा उपायों और गुणवत्ता के मुद्दों की बात करें तो हमारे राजमार्गों, रेलवे और पुलों की समस्याओं से जुड़े एक दर्जन से अधिक शोध हैं।
सवाल यह है कि इन समस्याओं का हल क्यों नहीं निकाला गया? शायद, ऐसा इसलिए है क्योंकि उपभोक्ता और नागरिक सुरक्षा, किसी भी सरकारों के लिए कभी भी प्राथमिकता नहीं रही है। शायद यह भी है कि प्रत्येक त्रासदी के बाद भारतीय नागरिक, खराब सुरक्षा और गुणवत्तापूर्ण सेवाएं देने में नाकाम रहे उत्तरदायी अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराने के बजाय, अपनी किस्मत को दोष देते हैं।
जवाबदेही की मांग और इस उम्मीद के बावजूद कि पिछले हादसे से सबक सीखा जाएगा, अगली दुर्घटना में हमेशा यह पता चलता है कि कुछ भी नहीं सीखा गया है या सबक लिया भी गया तो उस सबक को अनदेखा किया गया है। कोई केवल उम्मीद कर सकता है कि इस बार चीजें कुछ अलग होंगी, हालांकि यह डर बना रहता है कि ऐसा नहीं होगा।