facebookmetapixel
Epstein Files: बड़े नाम गायब क्यों, जेफरी एपस्टीन की असली कहानी कब सामने आएगी?दिल्ली एयरपोर्ट पर लो-विजिबिलिटी अलर्ट, इंडिगो ने उड़ानों को लेकर जारी की चेतावनीFD Rates: दिसंबर में एफडी रेट्स 5% से 8% तक, जानें कौन दे रहा सबसे ज्यादा ब्याजट्रंप प्रशासन की कड़ी जांच के बीच गूगल कर्मचारियों को मिली यात्रा चेतावनीभारत और EU पर अमेरिका की नाराजगी, 2026 तक लटक सकता है ट्रेड डील का मामलाIndiGo यात्रियों को देगा मुआवजा, 26 दिसंबर से शुरू होगा भुगतानटेस्ला के सीईओ Elon Musk की करोड़ों की जीत, डेलावेयर कोर्ट ने बहाल किया 55 बिलियन डॉलर का पैकेजत्योहारी सीजन में दोपहिया वाहनों की बिक्री चमकी, ग्रामीण बाजार ने बढ़ाई रफ्तारGlobalLogic का एआई प्रयोग सफल, 50% पीओसी सीधे उत्पादन मेंसर्ट-इन ने चेताया: iOS और iPadOS में फंसी खतरनाक बग, डेटा और प्राइवेसी जोखिम में

सामयिक सवाल: दूरसंचार शुल्कों को दुरुस्त करने की जरूरत

वैश्विक स्तर पर 9.1 अरब में से अकेले भारत में करीब 1.2 अरब मोबाइल सबस्क्राइबर हैं। भारत में इंटरनेट सबस्क्राइबर 97 करोड़ से ज्यादा हैं।

Last Updated- June 10, 2025 | 10:44 PM IST
satellite communication

आंकड़ों के हिसाब से देखा जाए तो भारतीय दूरसंचार क्षेत्र की कहानी किसी को भी चकित कर सकती है। लेकिन, जुलाई 1995 में भारत में पहली मोबाइल कॉल किए जाने के 30 साल बाद क्या यह एक सुखद कहानी है? सबसे पहले, बात करते हैं संख्याओं की। वैश्विक स्तर पर 9.1 अरब में से अकेले भारत में करीब 1.2 अरब मोबाइल सबस्क्राइबर हैं। भारत में इंटरनेट सबस्क्राइबर 97 करोड़ से ज्यादा हैं, जबकि दुनिया भर में यह संख्या 5.56 अरब है। भारत के ब्रॉडबैंड सबस्क्राइबर 94 करोड़ से ज्यादा हैं, जबकि वैश्विक स्तर पर उनकी संख्या 5.3 अरब है।

हैंडसेट के मामले में भी आंकड़े उतने ही प्रभावशाली हैं। कुछ साल पहले तक देश में 75 फीसदी हैंडसेट आयात किए जाते थे और अब भारत1.8 लाख करोड़ रुपये के मोबाइल फोन निर्यात करने लगा है। यही नहीं भारत ने सालाना 1.8 अरब डिजिटल लेनदेन करके दुनिया को चौंका दिया है।

जैसा कि केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने हाल ही में एक साक्षात्कार में इस अखबार को बताया, भारत के दूरसंचार विकास की कहानी दुनिया के लिए ईर्ष्या का विषय बन गई है। ऐसा हो भी सकता है क्योंकि उच्च ग्राहक संख्या और प्रभावशाली डिजिटल लेनदेन वॉल्यूम के साथ-साथ यहां टैरिफ भी बहुत कम हैं। मोबाइल कॉल दरें 10 साल पहले के 50 पैसे प्रति मिनट से घटकर लगभग 0.03 पैसे प्रति मिनट रह गई हैं। और डेटा की लागत 10 साल पहले के 287 रुपये प्रति जीबी से घटकर 9 रुपये प्रति जीबी रह गई है। औसत वैश्विक डेटा लागत 2.49 डॉलर प्रति जीबी के मुकाबले भारत की डेटा लागत महज 11 सेंट है। यह भारत को डिजिटल कनेक्टिविटी के मामले में भारी लाभ देता है।

हालांकि, सबसे सस्ती डेटा राजधानी (यह खिताब भारत निकट भविष्य में प्राप्त कर सकता है) होने की अपनी समस्याएं हैं। जब दूरसंचार कंपनियों लंबे समय तक शुल्क नहीं बढ़ा पातीं, तो समस्या होती है। जब 5जी डेटा और 4जी डेटा की कीमत समान होती है, तो समस्या होती है। जब उद्योग का कर्ज खरबों डॉलर में हो जाता है, तो समस्या होती है। जब प्रमुख दूरसंचार कंपनियां अपने लंबित बकाये को सरकारी इक्विटी में बदलना चाहती हैं, तो समस्या होती है। और जब उद्योग में द्वयाधिकार (ड्यूओपोली) को रोकना बोझ बन जाता है, तो समस्या होती है।

ग्राहक संख्या और डेटा खपत में उच्च वृद्धि से परे देखें, तो भारतीय दूरसंचार कहानी तनाव को दर्शाती है। निजी दूरसंचार खिलाड़ियों की संख्या घटकर तीन रह गई है, और पिछले कुछ वर्षों से ड्यूओपोली का खतरा मंडरा रहा है। सरकार के पास निजी दूरसंचार कंपनियों में से एक – वोडाफोन आइडिया में 49 फीसदी हिस्सेदारी है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा समायोजित सकल राजस्व (एजीआर) से संबंधित बकाये में छूट की मांग वाली संयुक्त याचिका को खारिज करने के बाद कंपनी आगे की राहत के लिए सरकार के साथ बातचीत कर रही है।

हालांकि सरकार वोडाफोन आइडिया में और अधिक इक्विटी नहीं लेना चाहती है, क्योंकि यह सैद्धांतिक रूप से दूरसंचार कंपनी को सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई में बदल देगा। फिर भी कंपनी किसी प्रकार की राहत की संभावना तलाशने के लिए दूरसंचार विभाग के साथ बातचीत जारी रखे हुए है। चूंकि बैंक अब इस संकटग्रस्त दूरसंचार कंपनी को ऋण देने के लिए तैयार नहीं हैं और प्रमोटर आगे निवेश नहीं करना चाहते हैं, इसलिए सरकार की ओर से राहत का एक और दौर ड्यूओपोली को रोकने का अंतिम उपाय प्रतीत होता है।

इस बीच, एक अन्य निजी दूरसंचार कंपनी भारती एयरटेल ने भी अपने एजीआर बकाये पर राहत के लिए सरकार से संपर्क किया है। दूरसंचार विभाग ने अभी इस मामले पर कोई फैसला नहीं किया है। दूरसंचार क्षेत्र में अनिश्चितता को और बढ़ाने वाला एक कारक मौजूदा दूरसंचार कंपनियों और सैटेलाइट ब्रॉडबैंड में प्रस्तावित प्रवेशकों के बीच स्पेक्ट्रम मूल्य निर्धारण पर भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) की सिफारिशों पर टकराव है।

दूरसंचार कंपनियों का तर्क है कि ट्राई की सिफारिश बराबरी के अवसर को नकारती है। दूरसंचार कंपनियों को स्पेक्ट्रम काफी प्रतिस्पर्धी नीलामी के जरिये मिला था। लेकिन सैटेलाइट ब्रॉडबैंड प्लेयरों को प्रशासित आवंटन प्रक्रिया के माध्यम से स्पेक्ट्रम मिलेगा, और ट्राई ने स्पेक्ट्रम मूल्य के रूप में कंपनियों के एजीआर का 4 फीसदी सुझाया है।

भारत के ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में बिना कनेक्शन वाले लोगों को जोड़ने में सैटेलाइट ब्रॉडबैंड की महत्त्वपूर्ण भूमिका होने की उम्मीद है, और इसकी शुरुआत में किसी भी तरह की देरी से देश की दूरसंचार गाथा को नुकसान पहुंचेगा। भारत की मोबाइल टेलीफोनी की 30 साल की यात्रा में – उस दौर से जब मिस कॉल सबसे अच्छी चीज लगती थी, आज के ऐप के माध्यम से जीवन जीने के चलन तक – बड़ी संख्या में ग्राहकों और कम टैरिफ के बावजूद शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच डिजिटल विभाजन को आंशिक रूप से ही पाटा जा सका है। ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों का एक बड़ा हिस्सा अभी भी नो-गो डेटा जोन में आता है, जहां लास्ट-माइल कनेक्टिविटी में समस्याएं हैं। ग्राम पंचायतों और गांवों को डेटा कनेक्शन प्रदान करने वाली सरकारी परियोजना भारतनेट ने प्रगति की है, लेकिन अंतिम बिंदु तक पहुंच एक मसला बना हुआ है।

किसी भी चीज से ज्यादा, भारत की दूरसंचार कहानी में टैरिफ को दुरुस्त करने की जरूरत है। कम टैरिफ वास्तव में एक सीमा तक उपभोक्ताओं के लिए अच्छे हैं लेकिन वे उद्योग को नुकसान पहुंचाते हैं। अकेले 5जी पर दूरसंचार उद्योग ने खरबों डॉलर का निवेश किया है और उन्हें शायद ही कोई रिटर्न मिला हो। शुल्कों को युक्तिसंगत किए बिना, टेलीकॉम कंपनियां शायद वहां निवेश न करें जहां इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है यानी सेवा की गुणवत्ता में। यह पहले से ही खराब सिग्नल और कमजोर डेटा लिंक के मामले में उपभोक्ताओं को नुकसान पहुंचा रहा है।

First Published - June 10, 2025 | 10:02 PM IST

संबंधित पोस्ट