वर्ष 1990 की शुरुआत में अहमदाबाद के एक बड़े और सफल गुजराती कारोबारी समुद्र किनारे बसे मछुआरों के गांव मुंद्रा में टहल रहे थे। नमक मिश्रित दलदली भूमि से घिरी कच्छ की खाड़ी में उफान मारती लहरों पर छोटी नावें ऊपर-नीचे होती गुजर रही थीं।
यह बंजर समुद्री किनारा किसी भी कारोबारी के लिए ऐसा आकर्षण नहीं था जो वह अपना कारोबारी भविष्य यहां तलाशने के बारे में दोबारा सोचे। लेकिन, गौतम अदाणी कुछ अलग सोच के कारोबारी थे। उनकी आंतरिक दृष्टि ने यहां भविष्य में विशाल क्रेनों की आवाजाही और विश्व का सबसे बड़ा कार्गो शिप विकसित होता देख लिया।
उदारीकरण की ओर बढ़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था के उस दौर में इस युवा उद्यमी ने फौरन मौके को लपक लिया और यहां विश्वस्तरीय पोर्ट बनाने के अपने ख्वाब को पूरा करने में जुट गए। उन्होंने हर बाधा को धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए पार कर लिया। अब 2023 में मुंद्रा पोर्ट 25 साल का हो गया है। साल दर साल यह तेजी से विकसित होता गया और आज 2.60 करोड़ टन क्षमता के साथ विश्व के सबसे बड़े पोर्ट के रूप में उभरा है।
वर्ष 2022-23 में इस पोर्ट पर भारत के लगभग 11 फीसदी समुद्री कार्गों की आवाजाही रही। इस समय यह देश के 33 प्रतिशत कंटेनर परिवहन का गेटवे कहा जा सकता है। आज राज्य और राष्ट्रीय राजस्व में इस पोर्ट की 2.25 लाख करोड़ रुपये से अधिक हिस्सेदारी है। इसने 75 करोड़ से अधिक श्रम दिवसों का रोजगार उत्पन्न किया है। अदाणी फाउंडेशन के अंतर्गत सामाजिक पहल के जरिये भी मुंद्रा पोर्ट के आसपास के 61 गांवों में रहने वाले लाखों लोगों की जिंदगी में बदलाव आया है।
ऐसे में जब विशेषतौर पर भारत के अविश्वसनीय बुनियादी ढांचागत क्षेत्र में उद्यमशीलता का शानदार जश्न मनाया जाना चाहिए, वे निर्णय और पहल परस्पर विचार के मुद्दे हैं, जिन्होंने इन अभूतपूर्व उपलब्धियों को हकीकत बनाया। इसके प्रेरक कारक संभवत: नीचे दी गई नौ रणनीतियों के समवर्ती प्रभाव में निहित हैं:
विनियामक मौके को भुनाना: नौवें दशक के मध्य तक सरकार ने भारत के पत्तनों को निजी निवेश के लिए खोलने का निर्णय ले लिया था, जिसके चलते राज्यों के एकाधिकार का लंबा और तनावपूर्ण दौर खत्म हो गया। भारतीय उद्योगपति इसी तरह बिजली, दूरसंचार, हवाई अड्डे और बैंकिंग जैसे दूसरे क्षेत्रों में उदारीकरण के कदमों का लाभ उठा रहे थे।
वर्ष 1998 में मुंद्रा पोर्ट को गुजरात मैरीटाइम बोर्ड से संचालन की स्वीकृति मिल गई और इस प्रकार यह भारत के आर्थिक इतिहास का पहला निजी पोर्ट बन गया।
लक्ष्य के प्रति उत्साह : कॉरपोरेट क्षेत्र में संस्कृति पर विशेष जोर दिया जाता है। उसके बाद प्रबंधन टीम को पूरे समर्पण और जुनून के साथ काम करने की छूट दी जाती है, जैसा कि मलय महादेविया के नेतृत्व के मामले में उदाहरण दिया जाता है। आज के दिन तक वही जुनून दिखता है।
साहसी निर्णय: शुरुआती वर्षों में ऐसी आशंकाएं उभर रही थीं कि सफल सरकारी स्वामित्व वाले कांडला पोर्ट के मुकाबले क्या मुंद्रा पोर्ट अपने दम पर कामयाब हो सकता है। ऐसे में उसे साहस के साथ अपनी तगड़ी उपिस्थति दर्ज कराने की जरूरत थी और उसने ऐसा ही किया भी। सभी मौसमों में विश्वभर के विशाल कार्गो जहाजों को संभालने में सक्षम इस पोर्ट पर शीघ्र ही अंतरराष्ट्रीय मालवाहक जहाजों का आना-जाना शुरू हो गया। शुरुआत में ही टग, ड्रेजर, क्रेन और निकासी क्षमताओं जैसे श्रेष्ठ बुनियादी ढांचे ने इस पोर्ट की प्रतिबद्ध संचालन की छवि गढ़ने में मदद की।
विविधतापूर्ण कार्गो बेस: कोयले, लौह अयस्क या पेट्रोलियम आदि कुछ ही वस्तुओं पर निर्भर अपने समकक्ष कुछ पूर्वी पत्तनों से उलट मुंद्रा पोर्ट पर बहु कार्गो सुविधाएं विकसित की गईं। आज यह उर्वरक, कृषि उत्पाद, खनिज, स्टील और कोयला जैसी सभी वस्तुओं के परिवहन को सफलतापूर्वक अंजाम दे रहा है। यह पोर्ट कच्चे तेल के विशाल वैगनों को उतारने-चढ़ाने में सक्षम है।
यहां इसकी पाइपलाइन का नेटवर्क और भंडारण सुविधाएं वनस्पति तेल और रसायन समेत सभी प्रकार के तरल कार्गो को संभाल सकता है। यहां पर वाहन निर्यात के लिए रोल ऑन-रोल ऑफ सुविधा भी स्थापित की गई है। ये सभी सुविधाएं इसे देश का सबसे बड़ा कंटेनर ट्रैफिक संभालने वाला पोर्ट बनाती हैं।
परिचालन दक्षता और श्रेष्ठ सेवा: शिपिंग लाइनें, फ्रेट फॉरवर्डर और कार्गो एजेंट मुद्रा पोर्ट की लक्षित मार्केटिंग, कस्टम मूल्य निर्धारण अनुबंध, ग्राहकों से संपर्क की आक्रमक रणनीति और लॉजिस्टिक क्षेत्र में सक्रिय सभी एजेंसियों के साथ मजबूत नेटवर्क के बारे में बात करते हैं। इसकी तेज कार्गो निकासी व्यवस्था और न्यूनतम वापसी समय जैसी कार्यप्रणाली को काफी सराहा जाता है। यही नहीं, पायलटिंग, बर्थेज और बंकरिंग जैसी विभिन्न गतिविधियों के लिए सुचारु सिंगल-विंडो व्यवस्था के बारे में भी सकारात्मक धारणा है। मुंद्रा पोर्ट की इस सेवा को सभी प्रतिस्पर्धी बंदरगाहों की तुलना में स्पष्ट रूप से बेहतर माना जाता है।
विकास का जमींदारी मॉडल: बुनियादी क्षेत्र के छात्र प्राय: मुंद्रा पोर्ट उल्लेखनीय के विकास के जमींदारी मॉडल का हवाला देते हैं। यह पोर्ट के मामले में अग्रणी निवेश की ओर संदर्भित करता है, जो बाद में ढांचागत निवेश को बढ़ाता है। मुंद्रा पोर्ट के मामले में यह मॉडल भारत के दो सबसे बड़े कोयला आधारित ऊर्जा संयंत्रों, एक विशेष आर्थिक जोन (एसईजेड) और विनिर्माण, उपयोगिता और सामाजिक बुनियादी ढांचे की श्रृखंला के विकास में स्पष्ट दिखा है।
साझेदारी: शुरुआती दिनों से ही डीपी वर्ल्ड ऐंड एमएससी जैसे प्रमुख कंटेनर मूवर्स के साथ मिलकर टर्मिनल और इंडियन आयल के साथ विशाल पेट्रोलियम भंडारण टैंकों के संचालन जैसी सफल साझेदारी ने मुंद्रा पोर्ट के विकास में प्रमुख भूमिका निभाई है। उपभोक्ता वस्तुओं के शीघ्र परिवहन के लिए संयुक्त उद्यम में बनी कंपनी अदाणी विल्मर की वजह से ही यह पोर्ट खाद्य तेलों की विशाल खेप को संभालने योग्य बना।
तेज परिवहन संपर्क : सड़क और रेल के जरिये निकासी ढांचा बहुत ही तेज गति से विकसित किया गया। इसके अलए राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) और राज्य के सड़क विभाग को सड़कें बनाने और चौड़ीकरण के लिए मनाया किया गया। वर्ष 2001 में पोर्ट ने निजी तौर पर अपना मुंद्रा-आदिपुर रेलवे लिंक चालू किया और 2002 में इसे भारतीय रेलवे संचालन व्यवस्था से जोड़ दिया गया। मुंद्रा पोर्ट के पास इस समय 117 किलोमीटर निजी रेल लाइन का नेटवर्क है। दूरदराज के इलाकों से होकर गुजरने वाली तीन पाइपलाइन इस पोर्ट को देश के आंतरिक उत्तरी हिस्से से जोड़ती हैं।
संयुक्त परिचालन सहयोग : जब मुंद्रा पोर्ट को विकसित किया गया, तो प्रबंधन ने दूरदृष्टि दिखाते हुए माल परिचालन प्रबंधन जैसे सहयोगी कारोबार पर भी भारी निवेश किया। निजी कंटेनर ट्रेन, वैगन रैक और कंटेनर माल स्टेशन का नेटवर्क एवं देश के प्रमुख आर्थिक मोर्चों पर वेयरहाउस निर्माण जैसे मुख्य कारक इस रणनीति का महत्त्वपूर्ण हिस्सा थे।
अदाणी समूह मुंद्रा पोर्ट के विकास और विस्तार पर अभी चार खरब रुपये और निवेश करने की रणनीति पर काम कर रहा है। तांबा अयस्क एवं ग्रीन हाइड्रोजन को संभालने के लिए नए टर्मिनल विकसित करना अगला लक्ष्य है। आंतरिक हिस्सों में विशाल विनिर्माण एवं सेवा इकाइयां विकसित की जाएंगी, जिन पर कुछ बड़े घरेलू और विदेशी निवेशक पैसा लगाएंगे।
यही नहीं, डिजिटलीकरण, ऑटोमेशन यानी स्वचालित तंत्र और हरित जैसी आधुनिक पहल भी इसकी भविष्य की योजनाओं में शामिल हैं। ढाई दशक पहले मछुआरों का छोटा सा गांव आज भारत का सबसे बड़ा तटीय आर्थिक जोन बनने की दिशा में बढ़ रहा है।
(लेखक बुनियादी ढांचा विशेषज्ञ हैं। वह द इन्फ्राविजन फाउंडेशन के संस्थापक एवं प्रबंध ट्रस्टी भी हैं)