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मीडिया मंत्र: Sony-Zee मर्जर और मीडिया की नई वास्तविकता

Sony-Zee मर्जर के बाद अस्तित्व में आई 14,851 करोड़ रुपये हैसियत वाली कंपनी भारत में गूगल, मेटा और डिज्नी-स्टार के बाद चौथी सबसे बड़ी कंपनी बन जाएगी।

Last Updated- August 22, 2023 | 9:13 PM IST
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इस साल सितंबर के अंत तक भारत में मीडिया खंड में एक नई कंपनी का उदय होगा। सोनी-ज़ी विलय के बाद अस्तित्व में आई 14,851 करोड़ रुपये हैसियत वाली कंपनी भारत में गूगल, मेटा और डिज्नी-स्टार के बाद चौथी सबसे बड़ी कंपनी बन जाएगी। इस नई कंपनी का नाम क्या होगा इस बार अभी कोई निर्णय नहीं लिया गया है। राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) ने पिछले सप्ताह एक आदेश जारी कर दोनों कंपनियों के बीच विलय को मंजूरी दे दी। भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) और दो प्रमुख स्टॉक एक्सचेंज भी सोनी-ज़ी विलय पर हामी भर चुके हैं।

एनसीएलटी ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा है कि ज़ी के प्रबंध निदेशक पुनीत गोयनका के खिलाफ भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के आदेश का इस मामले पर कोई असर नहीं होना चाहिए। ‘विलय की योजना को ज़ी के 99.997 प्रतिशत शेयरधारकों की वाजिब मंजूरी मिल चुकी थी।’

कैलिफोर्निया की कल्वर सिटी में स्थापित सोनी कॉर्प की 86 अरब डॉलर की मनोरंजन क्षेत्र की कंपनी ने मुंबई स्थित ज़ी एंटरटेनमेंट के साथ दिसंबर 2021 में विलय की घोषणा की थी। मगर इस विलय के बाद भारत के मनोरंजन क्षेत्र में होने वाले बदलाव से अधिक विलय को लेकर पेश आ रहे झमेलों को लेकर अधिक चर्चा हुई।

सोनी और ज़ी के लगभग 80 चैनल हैं और टेलीविजन पर कार्यक्रम देखने वाले कुल दर्शकों में उनकी हिस्सेदारी 27 प्रतिशत है। इसे देखते हुई इन दोनों के विलय के उपरांत अस्तित्व में आई नई कंपनी भारत में 2.1 लाख करोड़ डॉलर के मीडिया एवं मनोरंजन कारोबार-प्रसारण में एक दिग्गज कंपनी बन जाएगी। फिक्की-ईवाई रिपोर्ट के अनुसार 2022 में प्रसारकों (ब्रॉडकास्टर) ने विज्ञापन एवं अन्य स्रोतों से 70,000 करोड़ रुपये अर्जित किए थे।

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ज़ी की हिंदी, मराठी, तमिल, तेलुगू एवं अन्य भारतीय भाषाई क्षेत्रों में उपस्थिति है और इसके साथ ही 170 देशों में इसके 41 चैनल भी प्रसारित हो रहे हैं। मगर खेल एवं बच्चों के कार्यक्रमों के लिए इसके पास सामग्री का अभाव है। इन खंडों में सोनी की मजबूत स्थिति है और इसके 26 चैनल हैं और शहरी क्षेत्र में इन्हें देखने वाले अच्छे-खासे लोग हैं। दोनों कंपनियां फिल्म कारोबार (पीकू, गदर, राज़ी आदि), स्ट्रीमिंग सर्विसेस (ज़ी5, सोनीलिव) में मजबूत स्थिति में हैं और ‘स्कैम 1992’, ‘रॉकेट बॉयज’ और ‘सिर्फ एक बंद काफी है’ जैसे शो इन्होंने तैयार किए हैं।

इनका कैसे विलय होता है, यह एक सवाल जरूर है। एक दूसरा प्रश्न यह है कि नई कंपनी का नेतृत्व कौन करेगा, क्योंकि हाल ही में सेबी के आदेश के बाद गोयनका कम से कम आठ महीनों के लिए परिदृश्य से गायब रहेंगे? पहले नई कंपनी की कमान गोयनका को देने पर सभी राजी थे।

नई कंपनी का गठन वैश्विक मीडिया पटल (भारतीय मीडिया एवं मनोरंजन बाजार में) एक नया बदलाव है। इस कहानी की शुरुआत 10 वर्ष पहले हुई थी जब नेटफ्लिक्स ने अपनी पहली ‘ओरिजनल’ (मूल) सामग्री ‘हाउस ऑफ कार्ड्स’ का निर्माण एवं प्रसारण शुरू किया था। 32 अरब डॉलर राजस्व और 23.2 करोड़ से अधिक उपभोक्ताओं के साथ नेटफ्लिक्स अब स्ट्रीमिंग कारोबार के लिए दूसरी ओटीटी कंपनियों के लिए मानक बन गई है।

नेटफ्लिक्स के आगाज के बाद पिछले एक दशक में दो बातें स्पष्ट हो चुकी हैं। उपभोक्ताओं के लिए नेटफ्लिक्स मजेदार है मगर इसे स्टूडियो कारोबार एवं सामग्री तैयार करने वालों के लिए आय के स्रोत के रूप में बने रहने के लिए कारोबार का दायरा बढ़ाने के साथ ही अधिक राजस्व भी अर्जित करना होगा।

जो कार्यक्रम या सामग्री हम देख रहे होते हैं वे प्रायः निवेशक या किसी मुनाफे में चलने वाले कारोबार से सब्सिडी के दम हम तक पहुंच पाते हैं। स्ट्रीमिंग कारोबार टेलीविजन एवं फिल्म स्टूडियो को उसी राह पर ले जा रहा है जिस पर इंटरनेट आधारित प्रकाशन (पब्लिशिंग) एवं संगीत (म्यूजिक) लेकर गए थे। ये लोग ओटीटी प्लेटफॉर्म पर उपभोक्ताओं को खींचने के लिए अच्छी कहानियां, कार्यक्रम एवं फिल्म उपलब्ध करा रहे हैं। इसका नतीजा यह हुआ है कि स्टूडियो, प्रोडक्शन हाउस और ब्रॉडकास्टर का राजस्व या दर्शकों पर कोई नियंत्रण नहीं रह गया है।

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दुनिया भर के प्रकाशकों के हाथ अब मामूली राजस्व ही रह गया है, वहीं गूगल और मेटा ने बाजारों के हिसाब से डिजिटल विज्ञापन में 50 से 70 प्रतिशत हिस्सा समेट लिया है। स्पॉटीफाई, ऐपल म्यूजिक और एमेजॉन म्यूजिक म्यूजिक सब​स्क्रिप्शन खंड में राजस्व में 60 प्रतिशत से अधिक हिस्सा झटक ले रही हैं। इन इकाइयों का दावा है कि वे राजस्व अकेले नहीं रखती हैं बल्कि इसे साझा करते हैं। मगर प्रकाशक एवं म्यूजिक क्रिएटर उतनी कमाई नहीं कर पा रहे हैं जितनी वे ओटीटी आने से पहले करते थे। तो सवाल उठता है कि सारी रकम कहां जा रही है? अमेरिका में चल रहे राइटर्स गिल्ड ऑफ अमेरिकन के हड़ताल में यह असंतोष का प्रमुख कारण है।

स्ट्रीमिंग, सोशल मीडिया, शॉर्ट वीडियो और दर्जनों अन्य ऑनलाइन माध्यम उपलब्ध होने के साथ इंटरनेट की सर्वत्र पहुंच ने हमारे जीवन को एक नया मोड़ दे दिया है। चैटिंग, लोगों से मिलना, गेम खेलना, वीडियो देखना, संगीत सुनना, पढ़ना, प्रार्थना आदि में भाग लेना सभी कुछ ऑनलाइन हो रहे हैं। ऐसी काफी कम चीजें हैं जो ऑनलाइन नहीं हो पा रही हैं। जैसा कि मार्शल मैकलुहान का कहना है, अगर सभी मीडिया किसी मानव संकाय का विस्तारित हिस्सा हैं तो ऑनलाइन दुनिया अब हमारी यादों, हमारे मानसिक स्तर, हमारी स्वयं की छवि और स्वयं हमारा विस्तारित पड़ाव बन चुकी है।

हमारे जीवन के इन सभी पहलुओं से कोई न कोई प्लेटफॉर्म पैसा कमा रहा है। इस संदर्भ में मेटा (इंस्टाग्राम, फेसबुक और व्हाट्सऐप), गूगल (यूट्यूब), नेटफ्लिक्स (वीडियो), स्पॉटीफाई (ऑडियो), टिकटॉक (वीडियो) आदि के नाम लिए जा सकते हैं। ये ‘बड़ी तकनीकी’ कंपनियां उन दर्शकों को अपनी ओर खींच चुकी हैं जो कभी पहले स्टूडियो, प्रकाशकों और प्रसारकों के साथ जुड़े थे। पुराने जमाने के वितरकों की तुलना में इन बड़ी तकनीकी कंपनियों के पास तकनीक के साथ पूंजी भी भरपूर है। स्टूडियो कभी इनकी बराबरी करने की सोच भी नहीं सकते हैं।

जरा इन आंकड़ों पर विचार कीजिए। गूगल का राजस्व 2.80 अरब डॉलर और ऐपल का 395 अरब डॉलर है। तुलनात्मक रूप से सबसे बड़ी परंपरागत मीडिया कंपनी कॉमकास्ट का राजस्व 2022 में 121 अरब डॉलर के साथ इन दोनों के आधे से भी कम रहा। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि पूरी दुनिया में उनकी पहुंच हैं। अगर उनके सर्च इंजन पर आपके गाने, फिल्म या शॉर्ट वीडियो नहीं दिखते हैं तो आपके पास उन्हें लोगों तक पहुंचाने का दूसरा कोई जरिया नहीं रह जाता है। इस नए बाजार में बड़ी तकनीकी कंपनियों का दर्शक, वितरण, पूंजी और तकनीक सभी पर नियंत्रण है, ऐसे में प्रकाशक, प्रसारक या स्टूडियो क्या कर सकते हैं?

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फिलहाल तो वे अपना कारोबार संगठित कर उसे बढ़ा सकते हैं। 2017 में रूपर्ट मर्डोक ने फॉक्स की मनोरंजन परिसंपत्तियां डिज्नी को बेचने के लिए पहला कदम उठाया तब से हरेक बड़ी मीडिया कंपनी यही कर रही है। तब से पूरी दुनिया और भारत भर में विलय एवं बिक्री का सिलसिला चल रहा है। फॉक्स-डिज्नी सौदे का नतीजा यह हुआ है कि स्टार डिज्नी का हिस्सा हो गया है।

वायकॉम 18 आंशिक रूप से भारत से निकल चुका है और कंपनी रिलायंस और अन्य दूसरे निवेशकों के नियंत्रण में है। पीवीआर सिनेमा का आईनॉक्स के साथ विलय हो गया है। सोनी-ज़ी भी इसी बदलाव का हिस्सा है। सबसे बड़ी दूरसंचार कंपनियों में एक के नियंत्रण वाली जियो सिनेमा अपना आकार एवं कारोबार बढ़ाने के लिए लगभग हरेक कार्यक्रम, फिल्म में रकम झोंक रही है। इस पूरे ताने-बाने में आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के आने के बाद मीडिया एवं मनोरंजन उद्योग का स्वरूप और तेजी से बदलेगा।

First Published - August 22, 2023 | 9:13 PM IST

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