गंगा दूसरी नदियों की तरह महज एक नदी न होकर हमारे देश की सभ्यता, संस्कृति और आस्था के प्रतीक के रूप में देखी जाती है। अगर हम गौर करें तो यह भारतीय जीवनशैली की परिचायक भी लगती है। गंगा को माता या देवी जैसा सम्मान उसमें आस्था रखने वालों ने दिया है। उस गहरे विश्वास को शब्दों या तस्वीरों के जरिए बयां करना बेशक एक नायाब कोशिश हो सकती है। हाल ही में प्रकाशित किताब ‘गंगा-ए डिविनइटी इन फ्लो’ में गंगा के इसी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहलू को लोगों की आस्था से जोड़कर देखने की कोशिश की गई है। यह किताब अपने जीवंत तस्वीरों से गंगा के खुशनुमा सफर का अहसास दिलाती है। गोमुख से गंगासागर तक की यात्रा के दौरान खींची गई 400 से ज्यादा तस्वीरें इस किताब में इस्तेमाल की गई हैं। यह किताब इस मायने अनूठी दिखती है कि इसमें विषय को दार्शनिक अंदाज में अलग दृष्टिकोण देने की कोशिश की गई है। यह केवल गंगा यात्रा के महत्वपूर्ण पड़ावों जैसे ऋषिकेश, हरिद्वार, और बनारस तक पहुंचना नहीं है बल्कि इसके भौगोलिक पक्ष और इसके जल प्रदूषण की समस्याओं की ओर सबका ध्यान दिलाना भी है।
इस किताब के लेखक विजय सिंघल और अतुल भारद्वाज ने 3 साल के प्रयास से 2510 किमी. लंबी इस नदी के उद्गम स्थल गंगोत्री ग्लेशियर से गंगा सागर (जहां वह बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है) तक की यात्रा को जीवंत तस्वीरों के जरिए बयां किया है। इस दैविक नदी के किनारे बसे शहरों और वहां के करोड़ो लोगों की जिंदगी से भी रूबरू कराने की कोशिश की गई है। गंगा को जीवन के प्रतीक और ज्ञान के स्त्रोत के तौर पर पेश करके उसके सौंदर्य क ो बेहद खूबसूरत अंदाज में दिखाया गया है।
दर्शन में कई किताबें लिख चुके विजय सिंघल ने गंगा की पवित्रता को सूक्ष्म स्तर से संसारिक स्तर पर परिभाषित करने का प्रयास किया है। गंगा पर उनकी किताब उनके प्रकृति प्रेमी होने और प्रकृति के विभिन्न रूपों की तह तक पड़ताल करने की ख्वाहिश को ही जाहिर करती है।सिंघल बतौर मेकेनिकल इंजीनियर प्रशिक्षण ले चुके हैं और फिलहाल वह भारतीय राजस्व सेवा में हैं। ‘बिहाइंड साइकोलॉजी-सर्चिंग फॉर द रूट’,’साइकी ऑफ कॉमन मैन’,’इटरनल इकोज’,’डिवाइन व्हिसपर’ जैसी किताबें वह पहले लिख चुके हैं।
अतुल भारद्वाज दिल्ली के ही पत्रकार रहे हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ फोटोग्राफी का शौक चढ़ा और अब यह उनका जुनून है। इस किताब में उनकी फोटोग्राफी की जो खास बात नजर आती है वह कभी किसी दार्शनिक का अंदाज लगता है तो कभी किसी संगीत की सुरीली सी धुन। अतुल ने गंगा के सफर और प्रवाह के सौंदर्य को खूबसूरती से उभारा है।
इस किताब को खास लोगों के लिए लिखा गया है ताकि गंगा के सभी आयामों और उसके प्रदूषित होने के संकट पर लोग अपनी राय बना सकें। इस किताब का मूल्य 3000 रुपये है।
