पिछले दिनों 80,000 करोड़ रुपये के बाजार पूंजीकरण और 16,000 करोड़ रुपये की बिक्री वाली कंपनी पॉलिकैब का शेयर उस समय नौ फीसदी गिर गया जब यह खबर आई कि कथित कर चोरी के लिए उसके कार्यालयों में आय कर के छापे पड़े। एक दिन के लिए शेयर की कीमत में स्थिरता आई और उसके बाद दोबारा उसमें 21 फीसदी की गिरावट आई जब आय कर विभाग ने एक विस्तृत प्रेस विज्ञप्ति जारी करके कहा उसे 1,000 करोड़ रुपये की अघोषित नकद बिक्री मिली है।
विज्ञप्ति में पॉलिकैब का नाम नहीं लिया गया। इसमें यह भी कहा गया है कि 1,000 करोड़ रुपये का बेनामी नकद भुगतान फर्जी व्यय के मद में किया गया और 500 करोड़ रुपये का अघोषित लेनदेन भी सामने आया है। पॉलिकैब ने किसी गलती से इनकार किया है लेकिन उसका बाजार पूंजीकरण चंद रोज में 25 फीसदी गिर गया जबकि इसे काफी मजबूत शेयर माना जाता था और यह कई संस्थागत पोर्टफोलियो तथा म्युचुअल फंड्स के पोर्टफोलियो में शामिल था।
हालिया विधानसभा चुनावों के बाद के समय में शेयर बाजारों में उत्साह का माहौल है क्योंकि माना जा रहा है कि आगामी आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को जबरदस्त जीत मिल सकती है। कंपनियों और निवेशकों को ऐसे ही नतीजे की उम्मीद है। इसी दौरान कई बड़ी और प्रतीक्षित ब्लूचिप कंपनियों को आय कर विभाग तथा वस्तु एवं सेवा कर विभाग से कर उल्लंघन के लिए नोटिस मिला है।
पॉलिकैब का मामला दूसरों से अधिक गंभीर नजर आता है लेकिन आइए बात करते हैं ऐसी बड़ी कंपनियों की जिन्हें अलग-अलग तरह के उल्लंघन और कम भुगतान के नोटिस दिए गए। सरकार नियंत्रित भारतीय जीवन बीमा निगम को महाराष्ट्र सरकार से 1 जनवरी को 806 करोड़ रुपये का नोटिस मिला। यह नोटिस 2017-18 में कथित रूप से कम जीएसटी भुगतान के लिए मिला था।
शायद इस कदम ने अन्य राज्यों के जीएसटी अधिकारियों को भी प्रेरित किया और तमिलनाडु, उत्तराखंड तथा गुजरात आदि राज्यों ने भी करीब 667 करोड़ रुपये के ऐसे ही नोटिस जीवन बीमा निगम को जारी किए। तेलंगाना ने 116 करोड़ रुपये की मांग रखी जबकि दिसंबर में वह पहले ही 183 करोड़ रुपये का नोटिस दे चुका था।
एलआईसी इकलौती ऐसी कंपनी नहीं है। एक जनवरी से एक दर्जन से अधिक ब्लूचिप कंपनियों से कर मांग की जा चुकी है। हिंदुस्तान लीवर से पांच राज्यों में 447.5 करोड़ रुपये की कर मांग की गई है। सॉफ्टवेयर क्षेत्र की दिग्गज कंपनी एलटीआईमाइंडट्री को 206 करोड़ रुपये का नोटिस मिला। एशियन पेंट्स, आयशर मोटर्स, आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल और नेस्ले शामिल हैं। इससे पहले गेमिंग उद्योग को 1.5 लाख करोड़ रुपये की कर मांग का सामना करना पड़ा था।
बीमा उद्योग पहले ही 5,500 करोड़ रुपये की मांग का सामना कर रहा है जबकि अचल संपत्ति क्षेत्र 2,000 करोड़ रुपये से अधिक की कर मांग का। वित्त वर्ष 2018 और 2019 में गलतियों और कम भुगतान के लिए करीब 33,000 जीएसटी नोटिस जारी किए गए। नवंबर 2023 में जीएसटी इंटेलिजेंस महानिदेशालय (डीजीजीआई) ने जोमैटो और स्विगी को मांग नोटिस जारी किए और उनसे कहा कि वे क्रमश: 400 करोड़ रुपये और 350 करोड़ रुपये का कर बकाया चुकता करें।
मीडिया में आई खबरों के मुताबिक 2017-18 और 2018-19 में फाइल किए गए रिटर्न को लेकर करीब 33,000 जीएसटी नोटिस भेजे गए जबकि अकेले दिसंबर महीने में करीब 1,500 कारोबारों को 1.45 लाख करोड़ रुपये के जीएसटी नोटिस मिले। आय कर विभाग ने भी आकलन वर्ष 2012-12 और 2019-20 के बीच 3,528 करोड़ रुपये के मांग आदेश जारी किए। 20111-12 के लिए भी इन्हीं कंपनियों से 1,371 करोड़ रुपये की मांग की गई। आखिर हो क्या रहा है?
जाहिर सी बात है कि कर अधिकारी मानते हैं कि ये सभी सख्त नियमन वाली कंपनियां जिनमें सरकारी कंपनियां भी शामिल हैं, ने सरकार को कम कर चुकाया है। परंतु इतनी हड़बड़ी क्यों है? इसलिए कि 2017-18 के लिए जीएसटी के तहत कोई भी राशि वसूल करने की अंतिम तिथि 31 दिसंबर, 2023 थी।
एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि जीएसटी अधिकारियों का मानना है कि पहले की मांग पर आधारित कर वसूली के नोटिस कमजोर रहे हैं। रिपोर्ट में जीएसटी अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि ऐसे नोटिस से करीब 18,531 करोड़ रुपये की राशि वसूल की गई जबकि आंतरिक लक्ष्य 50,000 करोड़ रुपये का था।
इसलिए उन्होंने और अधिक नोटिस भेजकर कंपनियों की मुश्किलों में इजाफा कर दिया। अगर आप सोचते हैं कि सरकार के कारोबारी सुगमता का राग अलापने के बीच राजस्व अधिकारी अपने दम पर ऐसे कदम उठा सकते हैं तो यह गलत होगा। इन कदमों को अधिकारियों का पूरा समर्थन प्रतीत होता है। हाल ही में सरकार ने जीएसटी अधिकारियों को वित्त वर्ष 2019 और 2020 के सालाना रिटर्न में अनियमितता के लिए मांग नोटिस भेजने के लिए और अधिक समय दे दिया।
पिछले दिनों सरकार ने वित्त वर्ष 2019 के लिए मांग नोटिस भेजने की अवधि 30 अप्रैल, 2024 तक बढ़ा दी है जबकि वित्त वर्ष 2020 के लिए यह अवधि 31 अगस्त, 2024 तक कर दी गई है। यानी और अधिक कंपनियों को इस विवाद में अपना समय और संसाधन लगाने होंगे।
यह यकीन करना मुश्किल है कि ये ब्लूचिप कंपनियां जिनकी कर और विधिक विशेषज्ञता विश्वसनीय है और जो बाजार नियामक द्वारा अनिवार्य की गई अनुपालन की कई परतों से गुजरती हैं, वे इस पैमाने पर कर चोरी में लिप्त होंगी। वे सभी इस बात से परिचित हैं कि प्रतिष्ठा को क्षति और वितीय नुकसान कितना नुकसानदेह हो सकता है।
इसके अलावा निदेशकों की जवाबदेही भी है। एक कर विशेषज्ञ के मुताबिक जीएसटी कानून इतना शिथिल और इतनी जल्दबाजी में बनाया गयाा है कि हर अधिकारी एक नया नजरिया ले सकता है और आकलित की क्षमता से परे राशि का जुर्माना लगा सकता है।
कर को लेकर ऐसी स्थिति का सबसे बुरा पहलू यह है कि विवादों का निर्णय जल्दी नहीं होता। आय कर के उलट जीएसटी कानूनों में अदालत के बाहर निपटारे की व्यवस्था नहीं होती। अब इन नोटिसों पर सक्षम प्राधिकार के समक्ष सुनवाई होगी। अगर कंपनियां हारती हैं तो वे ऊपरी अदालतों में अपील करेंगी। मांग का आकार देखते हुए और संबंधित कानूनी प्रश्नों के हिसाब से तो इनमें से हर मामला शायद सर्वोच्च न्यायालय जाएगा। इस प्रक्रिया में वर्षों लग जाएंगे और इसमें बहुत अधिक समय और प्रयास लगते हैं।
अदालतें अभी भी सेवा कर और उत्पाद शुल्क (जीएसटी का पूर्ववर्ती) से संबंधित मामलों की सुनवाई कर रही हैं, इसलिए नए मामलों को हल करने में कम से कम तीन से पांच साल लगेंगे। इसके सबसे बड़े लाभार्थी कर विशेषज्ञ और विधि संबंधी फर्म होंगे। कारोबारी सुगमता से तो कई तरह से समझौता किया जा सकता है। कर का भय इनमें सबसे बुरा है। आखिर में अगर यह मामला हाथ से निकल गया तो बुरे की आशंका से निवेशक घबरा सकते हैं। अगर और अधिक शेयर पॉलिकैब की गति को प्राप्त हुए तो इसका बहुत बुरा प्रभाव होगा।
(लेखक मनीलाइफडॉटइन के संपादक और मनीलाइफ फाउंडेशन में ट्रस्टी हैं)