सितंबर और अक्टूबर बहुपक्षीयता के त्योहारी मौसम हैं। जिन लोगों की रुचि लंबे भाषणों को समझने में है उनके लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक हाल ही में हुई है। जो लोग यह जानना चाहते हैं कि दुनिया दरअसल कहां जा रही है उनके लिए जी20 की बैठक है और जो लोग यह समझना जरूरी समझते हैं कि क्या इन महत्त्वाकांक्षाओं को हासिल किया जा सकता है उनके लिए विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की सालाना बैठकें हैं। इन सबके अलावा तमाम शिखर बैठक और छोटे समूहों के आयोजन हैं जो राष्ट्रीय स्थिति, नीतियां और साझेदारियां सुनिश्चित करते हैं।
इनमें पहली की बात करें तो संयुक्त राष्ट्र महासभा तो भारत के लिहाज से बिना किसी खास घटना के गुजर गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसा चाहते भी हैं। मौजूदा विश्व के अन्य नेताओं के उलट वह महासभा में आक्रामक या झगड़े वाली बात नहीं करते। गत वर्ष उनका भाषण भारत के विश्व को एक परिवार समझने के विचार पर केंद्रित था और इस वर्ष उन्होंने भारत के सुधारों के साथ यह बात की कि संयुक्त राष्ट्र कैसे खुद को प्रासंगिक बनाए रखे। यह स्वाभाविक राजनीतिक चयन नहीं है। मीडिया में भ्रामक सुर्खियां आईं मसलन, ‘प्रधानमंत्री ने की पाकिस्तान की आलोचना’, ‘प्रधानमंत्री ने दिया पाकिस्तान को कड़ा संदेश’ आदि। हालांकि पाकिस्तान के इमरान खान के उलट मोदी ने विश्व मंच पर ऐसी भावना का प्रदर्शन नहीं किया।
हो सकता है प्रधानमंत्री सोचते हों कि एक भारतीय नेता को विदेश में समुचित व्यवहार करना चाहिए। लेकिन आंशिक रूप से इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि विश्व स्तर पर भारत साझेदार देशों को अपनी ‘नरम शक्ति’ के कारण आकर्षक लगता है। एक ऐसा देश जिसकी अर्थव्यवस्था और सैन्य शक्तिदोनों बढ़ रहे हों लेकिन जो बहुपक्षीयता को नुकसान पहुंचाने का इरादा न रखता हो। संभव है कि अमेरिकी नेतृत्व के साथ प्रधानमंत्री की द्विपक्षीय वार्ता ने भी इस धारणा को ही पुष्ट किया होगा। इस वार्ता में अमेरिकी उपराष्ट्रपति के साथ किया गया संवाददाता सम्मेलन शामिल था जहां उन्होंने अपने भारतीय अतीत का उल्लेेख करके भारतीय प्रधानमंत्री को याद दिलाया कि भारतीयों को लोकतंत्र पसंद है।
बहरहाल, जापानी, ऑस्ट्रेलियाई और अमेरिकी नेताओं के साथ क्वाड शिखर बैठक ने ज्यादा ध्यान आकृष्ट किया होगा। ध्यान रहे कि इस वक्त क्वाड के कुछ सदस्य इस बात पर जोर दे रहे हैं कि यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक नया सुरक्षा ढांचा विकसित करने पर केंद्रित है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने कहा कि चारों देशों के नेताओं ने स्पष्ट संकेत दिए कि क्वाड सुरक्षा आधारित संगठन है। उसने ऐसा बैठक के संयुक्त वक्तव्य में उल्लिखित मुक्त, खुली और नियम आधारित व्यवस्था के हवाले से कहा। अन्य समाचार माध्यमों ने अत्यधिक उन्नत संयुक्त कवायदों की ओर इशारा किया कि कहा कि चारों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार वहां मौजूद थे।
दूसरी ओर संयुक्त वक्तव्य को पढ़ें तो यह स्पष्ट होता है कि क्वाड ने तय किया है कि वह गैर सैन्य मसलों का समाधान करेगा। संयुक्त वक्तव्य में कोविड-19 महामारी को लेकर संयुक्त प्रतिक्रिया, जलवायु परिवर्तन और अहम तथा उभरती तकनीकों का जिक्र है। भारत के विदेश सचिव ने ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका के बीच ऑकस समझौते पर प्रतिक्रिया देते हुए साफ कहा था कि दोनों समूहों की प्रकृति समान नहीं है। उन्होंने कहा कि क्वाड बहुलतावादी समूह है जिसके सदस्य साझा मूल्यों वाले सकारात्मक और सक्रिय एजेंडा के साथ बढ़ रहे हैं जबकि ऑकस तीन देशों का सुरक्षा गठजोड़ है। यह बात उस अज्ञात अमेरिकी अधिकारी के समान ही है जिसने कहा था कि यह एक अनौपचारिक संगठन है जो सुरक्षा मसलों का निराकरण नहीं करता। हिंदुस्तान टाइम्स ने एक वरिष्ठ भारतीय अधिकारी के हवाले से कहा कि ऑकस समझौते के बाद क्वाड को सुरक्षा संगठन नहीं माना जाएगा और हम यही चाहते थे।
इसकी कई वजह हो सकती हैं। एक तो यही कि महामारी के दौर में कारोबारी रिश्ते बहुत सीमित हो गए थे तब अधिकांश देशों के बीच यह भावना बढ़ी कि कौन सी बातें उनकी राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करती हैं। स्वास्थ्य सेवाओं की अहमियत बढ़ी। संयुक्त वक्तव्य में भी इस बात का उल्लेख किया गया कि भारत की कंपनी बायोलॉजिकल ई लिमिटेड द्वारा एक अरब टीकों के उत्पादन को क्वाड का समर्थन है। बीते वर्षों में सेमीकंडक्टर की भारी कमी रही जिससे स्पष्ट हुआ कि उन्नत तकनीक वाली वस्तुओं और उनके कच्चे माल की भी अहमियत है। आपका तकनीकी ढांचा कौन संभालता है यह भी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण है। संयुक्त वक्तव्य में 5जी पर सहयोग को लेकर जोर दिया गया। 100 नई एसटीईएम स्नातक छात्रवृत्ति भी घोषित की गईं। बैठक में तकनीकी डिजाइन, विकास, संचालन और इस्तेमाल को लेकर साझा सिद्धांतों की बात की गई जो आदर्श रूप से बुनियादी वित्त तथा गुणवत्ता जैसे क्षेत्रों में और अधिक साझा सिद्धांतों की पृष्ठभूमि तैयार करेंगे। संयुक्त वक्तव्य में तीसरा प्रमुख मुद्दा था जलवायु परिवर्तन का। वह भी राष्ट्रीय सुरक्षा का मसला है क्योंकि दुनिया भर में इसकी वजह से बड़ी तादाद में लोग मारे जा रहे हैं, पानी को लेकर संघर्ष बढ़ रहे हैं और सीमाओं पर दबाव बन रहा है। शायद क्वाड के भविष्य के बारे में सोचने का सही तरीका यही है कि यह सैन्य मामलों से संबंधित नहीं लेकिन व्यापक सुरक्षा से जुड़ा जरूर है। भारत ने अपनी रचनात्मक ढंग से बढ़ते देश की जो छवि बनाई है वह सुरक्षा की इस व्यापक अवधारणा से आसानी से मिल जाती है। इससे यह अवसर भी मिलता है कि फिलहाल भारत की कमजोरियां एक तरफ तह कर दी जाएं। इन कमजोरियों में रक्षा में कम निवेश क्षमता, अर्थव्यवस्था का अपेक्षित गति से न बढऩा, आवश्यक सैन्य बदलावों की अनिच्छा तथा विभिन्न गठजोड़ों में शामिल होने को लेकर भारतीय सत्ता प्रतिष्ठान का आत्मसंशय आदि शामिल हैं। यदि क्वाड एक सैन्य गठजोड़ होता तो भारत हमेशा कमजोर कड़ी रहता। वह एक व्यापक विचार बनने में कामयाब होता है तो भारत इसका इंजन बन सकता है।
