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चीन को पछाड़ भारत बना सबसे बड़ा उभरता बाजार मगर तकनीक और ऊर्जा में सीखने होंगे सबक

भारत दुनिया में सबसे बड़ा उभरता बाजार बन गया है मगर हमें चीन की उपलब्धियों को भी भूलना नहीं चाहिए। बता रहे हैं आकाश प्रकाश

Last Updated- October 02, 2024 | 9:35 PM IST
India overtakes China to become the largest emerging market, need to learn from China's lead in technology and energy चीन को पछाड़ भारत बना सबसे बड़ा उभरता बाजार, तकनीक और ऊर्जा में चीन की बढ़त से सीखने की जरूरत
Illustration: Binay Sinha

मॉर्गन स्टैनली के मुताबिक अगस्त के अंत में भारत उभरते बाजारों की दुनिया में चीन को पछाड़कर सबसे बड़ा बाजार बन गया। यह तथ्य एमएससीआई ऑल कंट्रीज वर्ल्ड आईएमआई (निवेश योग्य लार्ज, मिड एवं स्मॉल कैप) सूचकांक में भारत के भार पर आधारित है। जल्द ही यह एमएससीआई के उभरते बाजार सूचकांक में भी नजर आने लगेगा।

एमएससीआई ऑल कंट्रीज वर्ल्ड सूचकांक दुनिया भर के शेयर बाजारों के प्रदर्शन को मापने का प्राथमिक उपाय है। आज भारत इस वैश्विक सूचकांक पर फ्रांस के साथ पांचवां सबसे बड़ा बाजार है और दोनों का भार 2.35 फीसदी है। अमेरिका 65 फीसदी भार के साथ सबसे ऊपर है। उसके बाद जापान, यूनाइटेड किंगडम और कनाडा हैं।

भारत के प्रदर्शन को देखते हुए यह उम्मीद बेमानी नहीं है कि जल्द ही हम शीर्ष चार बाजारों में शामिल होंगे। अगर हम शीर्ष चार बाजारों में शामिल होते हैं तो वैश्विक निवेशक भी हमारी अनदेखी नहीं कर पाएंगे और भारत में विदेशी मुद्रा की आवक लगातार बढ़ने लगेगी।

उभरते बाजारों की परिसंपत्ति के सामने चुनौतियां हैं और अब इस परिसंपत्ति वर्ग की बनावट पर ही सवाल उठाए जा रहे हैं। उभरते बाजारों के निवेशकों के निवेश में नाटकीय गिरावट नहीं है मगर वैश्विक निवेशकों के साथ ऐसा बहुत है। आखिर कितने वैश्विक निवेशकों ने भारत में बड़ा निवेश किया है? शायद बाजार में गिरावट आने तक विदेशी निवेश की आवक नहीं बढ़ेगी मगर अंत में भारत में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) की मात्रा अब तक के सभी आंकड़ों और अनुमानों के पार चली जाएगी।

भारत और चीन का एक दूसरे के बरअक्स प्रदर्शन भी देखने के काबिल है। सितंबर 2020 में इसी सूचकांक पर चीन का भार 5 फीसदी था और भारत 1 फीसदी पर अटका हुआ था। भारत के लिए हालात 2021 में बदले। अगर अमेरिकी डॉलर में एमएससीआई भारत और एमएससीअई चीन के चार्ट पर नजर डालें तो 2011 से उनका प्रदर्शन उतार-चढ़ाव से गुजरता रहा मगर 2021 के मध्य तक वह कमोबेश एक जैसा ही रहा। उसके बाद भारत ने फर्राटा भर लिया। 2021 के मध्य में भारत और चीन का अनुपात 1 था, जो अब 2.7 हो गया है। मुझे वे दिन याद आते हैं जब भारत का भर थाईलैंड और मलेशिया से भी कम था। दिन बदलते वाकई देर नहीं लगती!

आज चीन को खारिज करना आसान है और हर कोई ऐसा कर भी रहा है। मगर हमें उसकी उपलब्धियों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। यह सही है कि चीन में बैलेंस शीट की मंदी है, प्रॉपर्टी बाजार का भट्ठा बैठ गया है और उपभोक्ताओं का हौसला डगमगा गया है।

देश को कर्ज कम करना होगा और वृद्धि धीमी हो जाएगी। खपत धीमी हो गई है और कई लोगों को लग रहा है चीन भी जापान की तरह हो जाएगा यानी उसे पूरी तरह उबरने में कई दशक लग जाएंगे। चीन सही मायनों में जनांकिकी यानी आबादी की बुनावट से परेशान है और भूराजनीतिक तौर पर भी फंसा हुआ है।

इसके बाद भी हमें मानना होगा कि चीन ने उच्च मूल्यवर्धन वाले उद्योगों में प्रगति की है और अहम तकनीकों के मामले में आत्मनिर्भर हुआ है। दुनिया की अगुआई करने, आत्मनिर्भर बनने और अहम तकनीकों में दबदबा बनाने के मकसद से बनाई गई मेड इन चाइना 2025 नीति मोटे तौर पर कामयाब रही है। भारत चीन से बहुत कुछ सीख सकता है। बड़े पैमाने पर काम और उभरते उद्योगों में अग्रणी कंपनियां तैयार करने का उसका हुनर सीखने के लायक है।

आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) और ऊर्जा में बदलाव आने वाले दशकों में अर्थव्यवस्थाओं और कारोबारों की सूरत बदल देंगे। इनमें लाखों-करोड़ डॉलर का निवेश होगा। एआई में अमेरिका सबसे आगे है मगर तमाम प्रतिबंधों के बाद भी चीन उसके ठीक पीछे खड़ा है। किंतु ऊर्जा में चीन का दबदबा है। वह नवीकरणीय ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहन और लीथियम बैटरी में सबसे आगे है। नवीकरणीय ऊर्जा की आपूर्ति श्रृंखला में 50 से 70 फीसदी हिस्सा चीन का है और भारत समेत कई देश उस पर निर्भर हैं।

चीन ने बैटरी भंडार में जो हासिल किया है वह तारीफ के काबिल भी है और डराने वाला भी है। बैटरी भंडारण के 80 फीसदी बाजार पर आज चीन ही काबिज है और बाकी दुनिया की बैटरी उत्पादन क्षमता से पांच गुनी क्षमता अकेले उसके पास है। चीन की एक कंपनी सीएटीएल के पास वैश्विक बाजार का 36 फीसदी हिस्सा है और वह बाकी दुनिया की कंपनियों की कुल बाजार हिस्सेदारी से भी ज्यादा है।

चीन की बैटरियां पश्चिम से 40 फीसदी तक सस्ती हैं और वह प्रौद्योगिकी में आगे है। लीथियम आयरन फॉस्फेट (एलएफपी) बैटरियों को उसने बाजार में सबसे आगे कर दिया है। शुरुआत में कोरिया और जापान के निर्माताओं ने उन्हें कमतर बताया था, लेकिन अब उन्हें सबसे किफायती और सुरक्षित माना जाता है।

सीएटीएल बैटरी अनुसंधान पर अकेले जितना खर्च करती है, जापान और कोरिया की सभी कंपनियां मिलकर भी उतना खर्च नहीं कर पातीं। वह दूसरी कंपनियों से आधी लागत पर ही नया कारखाना लगा देती है। बैटरी रसायन में चीन की हिस्सेदारी 90 फीसदी है और उसकी कंपनियां दुनिया भर में कारखाने खोल रही हैं।

चीन ने इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहनों और नीतिगत उपायों का चतुराई से इस्तेमाल किया है। आज वह दुनिया का सबसे बड़ा ईवी बाजार है। वहां 50 फीसदी वाहन बैटरी से चलते हैं। 2030 तक यह आंकड़ा 80 फीसदी के पार हो जाएगा। उसके मुकाबले अमेरिका में केवल 10 फीसदी वाहन इलेक्ट्रिक हैं और यूरोपीय संघ में 25 फीसदी।

चीन में ईवी के कुल बाजार का 50 फीसदी से ज्यादा हिस्सा वहीं की कंपनियों के पास है। उसकी कंपनियां 55 लाख से अधिक वाहन निर्यात भी करती हैं, जिनमें 15 लाख ईवी होते हैं। बीवाईडी इस क्षेत्र में दुनिया की सिरमौर बनने के लिए टेस्ला को चुनौती दे रही है।

चीन में बनने वाले ईवी सस्ते होने के साथ बेहतर तकनीक और फीचर वाले भी हैं। इन वाहनों में अधिक बेहतर सॉफ्टवेयर हैं और प्लेटफॉर्म की बनावट सरल है। चीन के वाहन उद्योग ने 100 साल से भी ज्यादा समय से पेट्रोल-डीजल इंजन बना रही पश्चिमी कंपनियों को पछाड़ दिया है। ईवी का चलन बढ़ने के साथ अब शीर्ष 10 कंपनियों में चीन के कई नाम क्यों नहीं होंगे?

चीन ने चुनिंदा नए उद्योगों में जो कामयाबी पाई है वह उल्लेखनीय है। तरीका वही है: चीन पहले झटपट नई तकनीक अपनाता है और फिर औद्योगिक नीति तथा सब्सिडी की मदद से सबसे बड़ा बाजार बन जाता है ताकि उसकी कंपनियां पूरी दुनिया के लिए उत्पादन कर सकें। तकनीक में वह सबसे आगे बना रहता है और पूंजी की मदद से अपनी उत्पादन क्षमता कई गुना बढ़ाते हुए आपूर्ति श्रृंखला अपनी मुट्ठी में कर लेता है।

चीन उभरते औद्योगिक नेता तैयार कर रहा है और चीन के शेयर बाजार का जो भी हो, एक तगड़े प्रतिस्पर्द्धी के रूप में उसकी अनदेखी नहीं की जा सकती है। बाकी दुनिया को यह देखना होगा कि चीन ने विभिन्न उद्योगों में जो दबदबा कायम किया है उससे कैसे निपटना है। हमारे देसी उद्योग को उसके साथ मुकाबला करना है तो हमें व्यापार प्रतिबंधों और औद्योगिक नीति की जुगलबंदी के साथ अपने उद्योग को समय और क्षमता बढ़ाने का मौका देना होगा। हमें भी चुनिंदा क्षेत्रों में वैश्विक नेतृत्व की आकांक्षा रखनी चाहिए। चीन की उपलब्धि खास तौर पर ईवी और लीथियम बैटरी में उसकी उपलब्धि सीखने लायक है।

(लेखक अमांसा कैपिटल से जुड़ें हैं।)

First Published - October 2, 2024 | 9:35 PM IST

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