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Opinion: चुनावों की तैयारी में सरकार

दिसंबर 2023 में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव और मई 2024 में आम चुनाव होने हैं।

Last Updated- August 24, 2023 | 6:04 PM IST
Prime Minister Narendra Modi

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव (Assembly elections in five state) और आम चुनाव भले ही अभी कुछ महीने दूर हैं लेकिन पुराना प्रदर्शन बताता है कि सरकार जल्दी ही चुनावी तैयारी में जुट जाएगी। बता रहे हैं ए के भट्टाचार्य

केंद्र सरकार बहुत जल्दी चुनावी तैयारी में लग जाएगी। इससे किसी को आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए क्योंकि दिसंबर 2023 में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव और मई 2024 में आम चुनाव होने हैं।

राजनीतिक स्तर पर देखें तो भारतीय जनता पार्टी (BJP) नेतृत्व ने पहले ही इस बात पर विचार-विमर्श आरंभ कर दिया है कि आगामी विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनाव में पार्टी को किस प्रकार का प्रचार अभियान छेड़ना चाहिए? क्या भाजपा को राज्यों में ‘डबल इंजन’ के आधार पर चुनाव मैदान में उतरना चाहिए और केंद्र तथा राज्य में एक ही पार्टी की सरकार होने के लाभ गिनाने चाहिए या फिर राज्य सरकारों के प्रदर्शन पर अधिक जोर देते हुए स्थानीय योजनाओं की बात करनी चाहिए?

मई 2024 के आम चुनावों की बात करें तो क्या भाजपा का प्रचार नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी की नीति पर होना चाहिए? यकीनन ये राजनीतिक रणनीतियां सत्ताधारी दल की चुनावी तकदीर के लिहाज से अहम हैं लेकिन आर्थिक नीति को लेकर सरकार की निर्णय प्रक्रिया भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण साबित होगी।

इस लिहाज से यह देखना उचित होगा कि क्या सरकार चुनावी तैयारी में लग गई है या फिर आने वाले महीनों में ऐसे कौन से निर्णय लिए जा सकते हैं जो भाजपा की चुनावी संभावनाओं में सुधार करें।

इस कवायद में यह देखना जानकारीपरक होगा कि 2019 के आम चुनाव के पहले क्या कुछ हुआ? जुलाई 2018 के आरंभ में सरकार ने 2018-19 की खरीफ फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में काफी इजाफा करने की घोषणा की थी।

सिटी रिसर्च के मुताबिक खरीफ की फसल का एमएसपी सूचकांक जुलाई 2018 में 15 फीसदी बढ़ा। यह पहला वर्ष था जब मोदी सरकार एमएसपी को इस प्रकार निर्धारित करने का अपना वादा निभा रही थी ताकि किसानों को लागत पर 50 फीसदी का मार्जिन हासिल हो। याद रहे इसके बाद फरवरी 2019 में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की घोषणा की गई थी जिसके तहत केंद्र सरकार ने भूस्वामी किसान परिवारों को 6,000 रुपये सालाना का आय समर्थन देना शुरू किया था।

चुनाव के पहले खरीफ फसलों की एमएसपी बढ़ाने की नीति पहले भी अपनाई जा चुकी थी। जून 2013 के अंतिम सप्ताह में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने 2013-14 के खरीफ मौसम के लिए एमएसपी में औसतन 19 फीसदी का इजाफा किया था। पांच वर्ष पहले यानी मई 2008 में उसने इसमें 34 फीसदी का इजाफा किया था।

दिसंबर 2018 में सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी में भी तेज कटौती की। जीएसटी परिषद की बैठक में 17 श्रेणी की वस्तुओं की दरें कम की गईं। इसी कमी के कारण होने वाली राजस्व हानि के समायोजन के लिए दरों में कोई इजाफा नहीं किया गया। यह तब किया गया जब कई राज्यों ने इस कदम को लेकर आशंका प्रकट की थी।

जीएसटी दरों के स्लैब की संख्या कम करने का प्रयास भी नहीं किया गया। ऐसा करके दरों को इस प्रकार तय करने का प्रयास किया गया ताकि सत्ताधारी दल को चुनावी फायदा मिल सके।

रिजर्व बैंक एक स्वतंत्र निकाय है जो बैंकों का नियमन करने के अलावा मौद्रिक नीति की समीक्षा और उसका प्रबंधन भी करता है। 2018 की अंतिम तिमाही में खुदरा मुद्रास्फीति का दायरा काफी सहज था और इस दौरान खुदरा मूल्य सूचकांक में तीन से चार फीसदी का इजाफा देखने को मिला था।

इसके बावजूद रिजर्व बैंक जिसके गवर्नर की जिम्मेदारी मुद्रास्फीति के लिए चार फीसदी का लक्ष्य तय करने की थी, ने रीपो दर को दिसंबर 2018 तक 6.5 फीसदी पर रखा। रीपो दर वह दर है जिस पर बैंक केंद्रीय बैंक से ऋण ले सकते हैं। यह फरवरी 2019 में किया गया जब आम चुनाव कुछ ही महीने दूर थे।

दिसंबर 2023 के विधानसभा चुनावों और मई 2024 में होने वाले आम चुनाव की तैयारी में ऐसे कौन से संकेत नजर आते हैं? जून के आरंभ में घोषित खरीफ की फसलों के एमएसपी में औसतन 7 फीसदी का इजाफा किया गया जो पिछले चार सालों में हुए इजाफे से अधिक है।

जीएसटी दरों में कोई कटौती नहीं होने वाली है। जीएसटी संग्रह अब तक अच्छी गति से बढ़ रहा है लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि आने वाले महीनों में यानी चुनाव करीब आने पर इनमें कटौती होगी या नहीं। हालांकि इसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।

रिजर्व बैंक ने रीपो दर को 6.5 फीसदी रखने का दृढ़ रुख अपनाया है और अब तक उसने दरों में कटौती के लालच का प्रतिरोध किया है। परंतु चालू वित्त वर्ष के खत्म होने के पहले चार और मौद्रिक नीति समीक्षाएं होनी हैं। क्या केंद्रीय बैंक चुनाव के पहले रीपो दर में कटौती करेगा? यह इस बात पर निर्भर करेगा खुदरा महंगाई को 4 फीसदी के लक्षित दायरे में रखा जा सकता है और क्या केंद्रीय बैंक का रुख सरकार के उस राजनीतिक रुख से प्रभावित होता है जिसमें वह कर्जदारों को कम ब्याज दर के जरिये लुभाना चाह सकती है।

सरकार आगामी महीनों में सत्ताधारी दल की संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए और क्या कर सकती है? तीन संभावनाएं ऐसी हैं जिनसे इनकार नहीं किया जा सकता है।

पहली बात, पेट्रोलियम उत्पादों की खुदरा कीमत पिछले एक वर्ष से लगभग अपरिवर्तित है जबकि इस बीच अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में भारी कमी आई है। इनमें कमी की जा सकती है। कागज पर देखें तो तेल कंपनियां खुदरा कीमतें तय करने के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन बीते कुछ वर्षों में सरकार ने ऐसे निर्णयों को प्रभावित किया है। चुनाव करीब हैं और सरकार के लिए यह उचित समय होगा कि वह तेल कंपनियों से खुदरा कीमतों में कमी करने को हे और सत्ताधारी दल की चुनावी संभावनाओं को बेहतर बनाए।

दूसरा, गत दिसंबर में सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत करीब 81 करोड़ लाभार्थियों को दिसंबर 2023 तक नि:शुल्क खाद्यान्न देने का निर्णय लिया था। सरकार को यह निर्णय लेना होगा कि यह योजना आगे बढ़ाई जाएगी या नहीं। चूंकि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव दिसंबर 2023 में होने हैं और आम चुनाव उसके पांच माह बाद निर्धारित हैं तो सरकार योजना को कुछ और महीने के लिए आगे बढ़ा सकती है।

तीसरा, अंतरिम बजट भी एक अवसर होगा। अब अंतरिम बजट में इस बात का ध्यान नहीं रखा जाता है कि इसमें कोई बड़ी नीतिगत घोषणा या राजकोषीय नीति संबंधी बदलाव न किया जाए। अतीत में कई वित्त मंत्रियों ने अंतरिम बजट में कर लगाने या नीतिगत बदलाव की घोषणा की है। 2019 के अंतरिम बजट में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना की घोषणा की गई थी जिसका सालाना खर्च 75,000 करोड़ रुपये है। इसके अलावा व्यक्तिगत करदाताओं को कर राहत की घोषणा भी की गई थी।

अगला अंतरिम बजट फरवरी 2024 में घोषित किया जाएगा और उसमें भी इस परंपरा का पालन करते हुए ऐसी घोषणाएं की जा सकती हैं जो सत्ताधारी दल की चुनावी संभावनाओं को बढ़ाएं।

कुल मिलाकर चुनाव भले ही कुछ महीने दूर हों लेकिन सरकार उससे पहले ही चुनाव प्रचार अभियान शुरू कर सकती है।

First Published - June 15, 2023 | 10:22 PM IST

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