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वैश्विक व्यापार के रुझान और बजट-2024 में किए गए उपायों को और व्यापक और समावेशी बनाने की जरूरत

वित्त वर्ष 2024-25 के बजट में अधिक खुली व्यापार नीति अपनाने की दिशा में किए गए उपायों को और भी व्यापक एवं समावेशी बनाए जाने की आवश्यकता बता रही हैं अमिता बत्रा

Last Updated- August 06, 2024 | 10:39 PM IST
budget 2024

वित्त वर्ष 2024-25 के बजट में कुछ वस्तुओं पर सीमा शुल्क में छूट दी गई है और मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) के इस्तेमाल से जुड़े नियम सरल बनाए गए हैं, जो व्यापार नीति के लिहाज से सकारात्मक उपाय हैं। जरूरी यह है कि इस निरंतरता को बनाए रखा जाए और वादे के मुताबिक अगले छह महीने में शुल्कों की समीक्षा की जाए तथा सर्वाधिक तरजीही देशों (एमएफएन) के शुल्कों में कमी आए।

विनिर्माण क्षेत्र में इस्तेमाल होने वाली सामग्री पर यह बात विशेष रूप से लागू होनी चाहिए। इससे वैश्विक व्यापार में होने वाले सूक्ष्म बदलावों के साथ तालमेल बिठाकर आगे बढ़ने में मदद मिलेगी। संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास या अंकटाड की जुलाई 2024 की रिपोर्ट और विश्व व्यापार संगठन की अप्रैल 2024 की रिपोर्ट में वैश्विक व्यापार के उभरते रुझानों का उल्लेख किया गया है। इनमें कुछ रुझानों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

सबसे प्रमुख रुझान यह है कि कई बाधाओं एवं उतार-चढ़ाव के बाद भी वैश्विक व्यापार डगमगाता नहीं दिखा है। कोविड महामारी, रूस-यूक्रेन युद्ध, इजरायल-हमास संघर्ष, राजनीति से प्रेरित व्यापारिक पहल जैसे इन्फ्लेशन रिडक्शन ऐक्ट (आईआरए) एवं कार्बन कर (सीबीएएम) और अमेरिका तथा चीन की बीच तकनीक में तीखी प्रतिस्पर्द्धा के बावजूद दुनिया में व्यापारिक गतिविधियों में कमी नहीं आई है।

उक्त बातों से व्यापार की गति निस्संदेह प्रभावित हुई मगर अल्प अवधि के लिए ही इनका असर दिखा। कोविड महामारी फैलने के तत्काल बाद 2020 में तेज गिरावट दिखी किंतु 2021 में वैश्विक व्यापार की गति फिर तेज हो गई और 2022 में इसमें शानदार तेजी दर्ज की गई। भू-राजनीतिक तनाव बढ़ने से 2023 के शुरू में फिर इसमें गिरावट आई मगर अंतिम तिमाही में व्यापार वृद्धि फिर तेज हो गई, हालांकि विभिन्न क्षेत्रों एवं देशों में यह दर अलग-अलग रही।

2024 की पहली तिमाही में वस्तु एवं सेवा दोनों स्तरों पर व्यापार के रुझान सकारात्मक रहे हैं। इस तरह 2023 की दूसरी छमाही से सुधार का सिलसिला जारी है। माना जा रहा है कि वैश्विक स्तर पर मुद्रास्फीति के रुझानों में नरमी और इसके परिणामस्वरूप वास्तविक आय में बढ़ोतरी और विनिर्मित वस्तुओं की मांग में तेजी से अगले वर्ष भी वृद्धि का यह सिलसिला जारी रहेगा। किंतु सेवाओं में व्यापार की वृद्धि दर ऊंचे स्तर पर पहुंचने के बाद थमने के संकेत मिल रहे हैं।

दूसरा महत्त्वपूर्ण बदलाव यह है कि वृहद तरजीही व्यापार समझौतों (पीटीए) के अंतर्गत होने वाला व्यापार इसके (पीटीए) दायरे से बाहर होने वाले व्यापार की तुलना में अधिक टिकाऊ रहा है। पिछले वर्ष व्यापार में नरमी के बाद अमेरिका-मेक्सिको-कनाडा समझौते, यूरोपीय संघ के देशों और कुछ हद तक क्षेत्रीय समग्र आर्थिक साझेदारी में शामिल सदस्य देशों के बीच व्यापार का प्रदर्शन बेहतर रहा।

पूर्व में हुए अध्ययनों में भी कोविड महामारी के दौरान ऐसे ही रुझान दिखाए थे। अधिक आर्थिक एकीकरण, कम व्यापार लागत और नियामकीय एवं निवेश तंत्रों में मेल-जोल एक सघन उत्पादन तंत्र तैयार करते हैं। ये तंत्र व्यापार अस्थिरता के समय वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक ढांचा एवं मजबूती प्रदान करते हैं।

तीसरा रुझान वैश्विक व्यापार, मित्र देशों के बीच व्यापार, व्यापार के केंद्रीकरण और वैश्विक मूल्य श्रृंखला के बढ़ते आकार पर भू-राजनीतिक कारकों के प्रभाव से संबंधित है। यह रुझान 2022 और 2023 से दिख रहा है परंतु इस रुझान के नरम पड़ने के भी कुछ संकेत मिलने लगे हैं। इसके बावजूद वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं को नया रूप मिलने से एशिया और लैटिन अमेरिका में तेजी से उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं के लिए इन श्रृंखलाओं के एकीकरण के मौके भी मिल रहे हैं।

देशों के बीच राजनीतिक नजदीकी भी व्यापार की दशा-दिशा तय कर रही है। इससे वैश्विक स्तर पर व्यापार में एक-दूसरे पर निर्भरता भी राजनीतिक समीकरणों के अनुसार बदल रही है किंतु यह बदलाव अब तक बहुत बड़ा नहीं रहा है। सकल द्विपक्षीय के रुझान बताते हैं कि व्यापार में चीन पर अमेरिका की और अमेरिका पर चीन की निर्भरता घटी है मगर यह कमी बहुत मामूली है। चीन पर जिन देशों की व्यापार निर्भरता बढ़ी है उनमें ब्राजील, वियतनाम और भारत शामिल हैं।

भू-राजनीतिक उठापटक का सबसे बड़ा असर यह दिख रहा है कि यूरोपीय संघ पर रूस की व्यापार निर्भरता कम हुई है। यूरोपीय संघ और रूस के बीच ऊर्जा व्यापार और यूक्रेन युद्ध के बाद लगे प्रतिबंधों को देखते इस बदलाव को समझना मुश्किल नहीं है। चीन पर रूस की बढ़ती निर्भरता को भी इसी संदर्भ में समझा जा सकता है।

चौथी अहम बात यह है कि क्षेत्रवार रुझान परंपरागत क्षेत्रों जैसे मशीनरी एवं परिवहन ने अपनी वैश्विक मूल्य श्रृंखलाएं और व्यापार गतिशीलता बरकरार रखी है। आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई), हरित ऊर्जा और सेमीकंडक्टर जैसे आधुनिक एवं उच्च तकनीक वाले क्षेत्रों में मांग बढ़ी है किंतु इनमें व्यापार एवं औद्योगिक हस्तक्षेप भी हुआ है।

इनमें इलेक्ट्रिक वाहन और सोलर पैनल उभरते बाजार वाली अर्थव्यवस्थाओं के लिए अवसर प्रदान कर रहे हैं क्योंकि इन क्षेत्रों में आपूर्तिकर्ता अधिक होने के कारण प्रतिस्पर्द्धा के संकेत मिल रहे हैं। हालांकि बैटरी उत्पादन में कुछ आपूर्तिकर्ताओं का ही दबदबा बना हुआ है। क्षेत्रों के भीतर बदलाव की यह प्रक्रिया अभी जारी है और भू-राजनीतिक स्तर पर जारी अनिश्चितता और नियम-आधारित बहुपक्षीय व्यवस्था में बिखराव से यह प्रक्रिया और बढ़ने की संभावना है।

इस रुझानों को देखते हुए भारत को व्यापार नीति से जुड़े कुछ विशेष कदम उठाने से इन अवसरों का लाभ मिल सकता है। पहली बात, विनिर्माण क्षेत्र में आयात शुल्कों को आसियान जैसी तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं के आयात शुल्कों के अनुरूप बनाने के उद्देश्य से बदला जाए। यह लक्ष्य हासिल करने के लिए अगले छह महीने का समय रखना चाहिए। आयात शुल्क कम रहने से निर्यात के मामले में होड़ करने में मदद मिलेगी। निर्यात के मोर्चे पर ताकत हासिल करके ही विनिर्माण में प्रतिस्पर्द्धी देशों को टक्कर दी जा सकती है।

दूसरी बात, शुल्क कम करने की समय सीमा पहले से ही तय कर देने पर भारत की व्यापार नीति का संकेत भी अभी से मिल जाएगा और निर्यात पर केंद्रित प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आक​र्षित करने में मदद मिलेगी। वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में अग्रणी कंपनियों से एफडीआई आकर्षित करना प्राथमिकता होनी चाहिए। ये कंपनियां लंबे समय से विकसित देशों में जमी हुई हैं। उनकी निर्माण एवं नवाचार की क्षमताओं से तकनीक के अंतरण एवं प्रसार में मदद मिलेगी, जिससे विनिर्माण में हमारी उत्पादकता बढ़ जाएगी।

तीसरी बात, वृहद व्यापार समझौतों के अंतर्गत होने वाला व्यापार संकट के समय अधिक टिकाऊ होता है। इसे ध्यान में रखते हुए एफटीए में अधिक से अधिक प्रावधानों को शामिल करना भारत की प्राथमिकता होनी चाहिए। किंतु एफटीए का स्वरूप एवं बातचीत की रणनीति संदर्भ को ध्यान में रखकर बनाई जानी चाहिए। उत्तर अमेरिका में क्षेत्रीय व्यापार समूह और यूरोपीय संघ दुनिया के अन्य देशों के व्यापारिक हितों को दरकिनार कर पक्षपात एवं भेदभाव की नीति अपनाते हुए अपने क्षेत्र के भीतर ही व्यापार कर रहे हैं। भारत को अपनी व्यापार नीति का स्वरूप इसे देखते हुए ही तैयार करना चाहिए।

उत्तर अमेरिका में अमेरिका द्वारा तैयार आईआरए पूरी तरह से बहिष्कारवादी व्यापार नीति है, जिसका मकसद अपने क्षेत्र के भीतर ही व्यापार एवं वैश्विक मूल्य श्रृंखला तथा अपने एफटीए साझेदार के साथ व्यापार को बढ़ावा देना है। भारत ने अमेरिका के साथ एफटीए नहीं किया है और वर्तमान सरकार एवं अमेरिका में मौजूदा प्रशासन दोनों ने ही अपनी व्यापार नीतियों के रुख में बदलाव के संकेत नहीं दिए हैं।

यूरोपीय संघ ने सीबीएएम लागू किया है और दावा कर रहा है कि यह ‘वैश्विक व्यापार के लिए हितकारी’ होगा। मगर यह व्यवस्था यूरोपीय संघ के भीतर व्यापार को बढ़ावा देगी और भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं पर अनुपालन का खर्च बढ़ा देगी। माना जा रहा है कि ब्रिटेन सहित दूसरे देश सीबीएएम अपनाएंगे। इसकी तुलना में आसियान के साथ बहुपक्षीय नियम आधारित व्यापार व्यवस्था का पालन करते हुए व्यापार गतिशीलता एवं वैश्विक मूल्य श्रृंखला एकीकरण को बढ़ावा देने के अवसर मिलते हैं। लिहाजा भारत में वित्त वर्ष 2024-25 के बजट में अधिक खुली व्यापार नीति की तरफ बढ़ाए गए उपायों को आने वाले वर्ष में व्यापक तथा गहन बनाया जाना चाहिए।

(लेखिका सीएसईपी में वरिष्ठ फेलो हैं)

First Published - August 6, 2024 | 10:19 PM IST

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