जेनरेटिव आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (जेनरेटिव एआई) इतना प्रभावशाली है कि इसका विकास एकदम स्वतंत्र तरीके से किए जाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। यह ऐसा मुद्दा है जिस पर अधिकांश लोग सहमत हैं। डीप लर्निंग के प्रणेता जेफ्री हिंटन और ओपनएआई के प्रमुख सैम ऑल्टमैन, दोनों ही इस मुद्दे पर सहमत दिखते हैं।
हिंटन ने चेतावनी भी दी है कि जेनरेटिव एआई मानव जाति के अस्तित्व के लिए खतरा हो सकता है। ऑल्टमैन ने अमेरिकी सांसदों से अपील की है कि वे एआई क्रिएटरों के लिए एक मापदंड तय करें ताकि वे दुनिया को एक बड़े जोखिम की स्थिति में न आने दें।
दुनिया भर में कानून बनाने वाले सांसद अब भी इस बात को लेकर जूझ रहे हैं कि इस शक्तिशाली तकनीक का नियमन बेहतर तरीके से कैसे किया जाए। इनमें से कई जेनरेटिव एआई क्रिएटरों के पाले में गेंद डालने की कोशिश कर रहे हैं।
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने हाल ही में एक आदेश जारी किया जिसके मुताबिक यह सुनिश्चित करना है कि ‘अमेरिका आर्टिफिशल इंटेलीजेंस की संभावनाओं को साधने के साथ ही इसके जोखिमों का प्रबंधन करने में सबसे आगे रहे।’
इसके लक्ष्यों में अमेरिका की गोपनीयता की सुरक्षा बरकरार रखते हुए एआई सुरक्षा के लिए नए मानकों को स्थापित करना है।
यूरोपीय संघ (ईयू) कुछ समय से एआई के लिए व्यापक नियम पारित कराने की कोशिश कर रहा है। हालांकि इसने इस दिशा में प्रगति की है लेकिन इस वर्ष के अंत तक इन कानूनों के पारित होने की संभावना नहीं है। ताजा खबरों से ऐसे संकेत मिलते हैं कि यूरोपीय संघ के सांसद जेनरेटिव एआई के बुनियादी मॉडल के नियमन के तरीके पर कोई निर्णय नहीं ले पाए हैं।
कुछ संसद सदस्य उन दिशानिर्देशों पर जोर दे रहे हैं जिनके तहत बुनियादी मॉडल के डेवलपरों को परीक्षण और इसे जारी किए जाने के दौरान संभावित जोखिम का आकलन करने और रिलीज के बाद भी इसकी निगरानी करने की आवश्यकता होगी।
इस लिहाज से सबसे तेजी से आगे कदम बढ़ाने वाला देश चीन है जिसने पहले ही जेनरेटिव एआई तकनीक के लिए एक विशेष प्रावधान वाला कानून पारित किया है।
इस कानून के माध्यम से इस क्षेत्र से जुड़े निजी खिलाड़ियों की तरक्की के लिए पूरी स्वतंत्रता दिए जाने के साथ ही नियंत्रण के जरिये संतुलन बनाने की कोशिश की जा रही है। भारत ने परंपरागत रूप से डिजिटल क्षेत्र के लिए कानून पारित करने में देरी की है।
हाल में पारित हुए डिजिटल व्यक्तिगत डेटा गोपनीयता (डीपीडीपी) अधिनियम में भी कई साल लग गए और यह ऐसा कानून भी नहीं है जो सामान्य एआई शोध का नियमन कर सके, ऐसे में जेनरेटिव एआई की बात छोड़ देना ही बेहतर होगा।
दुनिया भर के कानून निर्माताओं का भरोसा ‘जिम्मेदार और नैतिकता के साथ संचालित हो रहे एआई’ में है और इसके यह भी उम्मीद की जा रही है कि बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियां इसका अनुसरण करेंगी।
मूल विचार यह है कि कंपनियों को खुद ही सुरक्षा उपाय करने के साथ यह सुनिश्चित करना चाहिए कि एआई के विकृत मॉडल या जोखिम पहुंचाने की क्षमता रखने वाले मॉडल तैयार न किए जाएं और न ही उनकी निर्माण प्रक्रिया स्वतंत्र छोड़ दी जाए।
जिन नीतियों पर विचार किया जा रहा है, उनको लेकर एक बड़ी समस्या यह भी है कि अधिकांश सांसद (कानून निर्माता) अभी तक यह समझ नहीं पाए हैं कि जेनरेटिव एआई का नियमन कैसे किया जा सकता है और इसे कैसे नियंत्रित किया जा सकता है।
वे जेनरेटिव एआई मॉडल के स्व-नियमन के लिए बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों पर भरोसा रखते हैं। इसमें दिक्कत यह है कि वे जेनरेटिव एआई में तेजी से बढ़ते ओपन-सोर्स गतिविधियों को नजरअंदाज कर रहे हैं, जो डेवलपरों को अपने खुद का मॉडल चुनने और उसे तैयार करने के लिए उपकरण मुहैया कराता है और इनमें से कई पूरी तरह मुफ्त हैं।
एक विडंबना यह भी है कि विभिन्न देशों में कानून निर्माता अब भी जेनरेटिव एआई मॉडल के नियमन के लिए पुराने गोपनीयता एवं कॉपीराइट कानूनों का उपयोग करने की कोशिश कर रहे हैं और यह समझे बिना कि वास्तव में इन मॉडलों का नकारात्मक और सकारात्मक पहलू क्या है।
अधिकांश सांसद अब भी एक ऐसे नियमन का मसौदा तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं जो उनके सीमा क्षेत्र के भीतर ही इस तरह की तकनीक पर लागू हो और सीमा पार इसका नियमन सामान्य कानूनों की तरह हो।
दुनिया में एकमात्र नेता ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक हैं जो यह समझते हैं कि किसी देश विशेष का कानून इसके लिए पर्याप्त नहीं होगा। वह इसके लिए एक वैश्विक गठजोड़ बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं ताकि इस मुद्दे पर आम सहमति बनाई जा सके।
ब्रिटेन ने इसी महीने पहले अंतरराष्ट्रीय एआई सुरक्षा शिखर सम्मेलन की मेजबानी भी की है।
वैश्विक स्तर के सभी नेताओं को यह समझने की जरूरत है कि कोई भी जेनरेटिव एआई नियमन तब तक कारगर नहीं होगा जब तक कि इसकी शुरुआत बुनियादी पहलुओं से नहीं होगी जिसके केंद्र में डेटा संग्रह से जुड़ा मामला है।
किसी भी जेनरेटिव एआई प्रोग्राम का मूलभूत मॉडल एक डीप लर्निंग एल्गोरिदम पर आधारित होता है जिसे इंटरनेट से जुटाए गए डेटा के साथ पहले ही प्रशिक्षित किया जाता है। इन बुनियादी मॉडलों को लगातार ताजा डेटा इनपुट दिए जाने की आवश्यकता होती है। अगर ऐसा नहीं होता है तब इनका प्रभाव धीरे-धीरे खत्म होना शुरू हो जाता है।
जेनरेटिव एआई कंपनियां वेब क्रॉलर या डेटा स्क्रैपर बनाती हैं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि ये मॉडल ठीक से काम कर रहे हैं या नहीं। ये ऐसे कंप्यूटर प्रोग्राम हैं जिनकी मदद से वेबसाइटों के जरिये डेटा निकाला जाता है।
हालांकि वेब क्रॉलर का इस्तेमाल कई वर्षों से सर्च इंजन भी कर रहे हैं जिसमें गूगल क्रॉलर विशेष रूप से प्रभावी है। लेकिन जेनरेटिव एआई के लिए वेब स्क्रैपर की सेवाएं एक अलग उद्देश्य से ली जाती हैं और इसका उपयोग मुख्य रूप से मॉडल को ठीक से प्रशिक्षित करने के लिए डेटा जुटाने के लिए किया जाता है।
डेटा स्क्रैपिंग के नियमन के लिए वास्तव में कोई कानून नहीं हैं। कॉपीराइट और गोपनीयता कानून जैसे कुछ कानून हैं जिनकी मदद से विशिष्ट तरीके से जुटाए जा रहे डेटा पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश होती है। लेकिन, ये कानून एक अलग दौर और पुरानी तकनीकों के लिए डिजाइन किए गए थे और कुछ वेब स्क्रैपर प्रोग्राम इन पर बहुत ध्यान देते हैं।
इसके अलावा वे सोशल मीडिया मंचों पर उपलब्ध व्यक्तिगत डेटा की बड़ी मात्रा का भी संज्ञान नहीं लेते हैं। वास्तविक मुद्दा यह है कि वेब स्क्रैपर या क्रॉलर द्वारा एकत्र किए गए डेटा का ही नियमन करने की आवश्यकता है क्योंकि यह वह डेटा है जिसका उपयोग जेनरेटिव एआई के बुनियादी मॉडल को प्रशिक्षित करने के लिए किया जाता है।
इसके अलावा महत्त्वपूर्ण बात यह भी है कि इसके लिए दुनिया भर के सभी देशों को एक मंच पर समान रूप से आना चाहिए और सामंजस्यपूर्ण तरीके से नियम तैयार करने चाहिए जो सभी जेनरेटिव एआई मॉडल और उनके डेटा क्रॉलर/स्क्रैपरों को नियंत्रित करे।
जो सांसद उम्मीद कर रहे हैं कि बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियां ‘जिम्मेदार और नैतिकता से संचालित एआई’ के सुरक्षा उपायों में सबसे आगे होंगी, उनका यह सोचना उनके भोलेपन को दर्शाता है। नियमन की जिम्मेदारी कंपनियों के पास नहीं सरकारों के पास है।
(लेखक बिज़नेस टुडे और बिज़नेस वर्ल्ड के पूर्व संपादक और संपादकीय परामर्श संस्था प्रोजैक व्यू के संस्थापक हैं)