वर्ष 2025 भारत के लिए चुनौती की तरह रहा है। इस वर्ष वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि अनुमान से अधिक रही और मुद्रास्फीति की दर लक्ष्य से नीचे रही। परंतु सतह के नीचे कहीं अधिक हलचल थी। अमेरिका ने भारत पर 50 फीसदी शुल्क लगाया है, घरेलू खपत में कमी आई है, नॉमिनल जीडीपी वृद्धि की सुस्ती ने राजस्व पर दबाव डाला, विदेशी पोर्टफोलियो इक्विटी में बड़े पैमाने पर निकासी हुई और अमेरिका के साथ व्यापार समझौते में देरी ने मुद्रा की कमजोरी को बनाए रखा।
इसके अलावा आर्टिफिशल इंटेलिजेंस यानी एआई को लेकर उत्साह में भारत किनारे रह गया है। इन बातों के बावजूद समझदारी भरी वृहद नीति के विकल्पों के कारण अर्थव्यवस्था ने इस अशांति को भलीभांति संभाला है और 2026 का परिदृश्य पांच प्रमुख प्रश्नों पर निर्भर करता है।
वृद्धि अपने आप में तो महत्त्वपूर्ण है ही बल्कि यह इसलिए भी अहम है क्योंकि इसका असर राजकोषीय वित्त पर भी पड़ता है और अधिक पूंजीगत आवक जुटाने पर भी। वर्ष 2025 के चुनौतीपूर्ण साल के बाद हम उम्मीद करते हैं कि भारत की चक्रीय वृद्धि 2026 में सुधरेगी। इसमें कई कारक मददगार साबित होंगे। वैश्विक स्तर पर हम उम्मीद करते हैं कि एआई की प्रमुखता वाले निवेश में तेजी और सहयोगी मौद्रिक व राजकोषीय नीतियां 2026 के लिए बेहतर माहौल तैयार करेंगी। इसका नेतृत्व अमेरिका और यूरोप के हाथों में होगा।
घरेलू स्तर पर, कम मुद्रास्फीति का सहायक कारक बने रहने की संभावना है, जो घरों की वास्तविक आय को बढ़ाएगी और उपभोग मांग तथा कॉरपोरेट लाभ दोनों को सहारा देगी। पिछले वर्ष के विपरीत, जब सख्त वृहद आर्थिक नीतियां विकास की राह रोक रही थीं, इस बार पिछली नीति में नरमी के असर – जैसे रीपो रेट में कटौती, नकदी की उपलब्धता और ऋण मिलने में आसानी – से आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा मिलना चाहिए।
अमेरिका के साथ संभावित व्यापार समझौता भी एक सकारात्मक कारक होगा जिससे भारतीय निर्यात पर शुल्क को 50 फीसदी से घटाकर 20 फीसदी किया जा सकता है। सरकार ने इस वर्ष माल एवं सेवा कर यानी जीएसटी को युक्तिसंगत बनाया और श्रम बाजार सुधारों को पूरा किया। कारोबारी सुगमता से संबंधित और सुधार सामने आ सकते हैं। यानी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में और अधिक उदारीकरण, निजीकरण, विनियमन और कारक बाजार सुधार आदि देखने को मिल सकते हैं।
वैश्विक स्मार्टफोन निर्यात में भारत की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है। उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन योजना यानी पीएलआई का विस्तार खिलौनों, फर्नीचर और जूता-चप्पल जैसे कम तकनीक वाले विनिर्माण क्षेत्रों में करना अगला कदम हो सकता है। कुल मिलाकर, हमारे हिसाब से 2026 में वास्तविक जीडीपी वृद्धि के सालाना आधार पर करीब 7 फीसदी रहने का अनुमान है, जिसमें शहरी विवेकाधीन मांग और रियल एस्टेट निवेश में संभावित सुधार शामिल होगा।
यह थोड़ी चक्रीय है और थोड़ी ढांचागत। चक्रीय रूप से, कम मुद्रास्फीति दर खाद्य पदार्थों में सकारात्मक आपूर्ति झटकों, कम वस्तु लागत, मध्यम वेतन वृद्धि, और जीएसटी कटौती का लाभ दामों तक पहुंचने को दर्शाती है। परंतु मुद्रास्फीति में गिरावट भी ढांचागत है। हमारा विश्लेषण बताता है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के ट्रेंड में गिरावट आई है और यह 2022 के 6 फीसदी से कम होकर नवंबर 2025 में 3.4 फीसदी रह गया है। ऐसा खाद्य मुद्रास्फीति दर में कमी और सुपर कोर मुद्रास्फीति (खाद्य, ईंधन, सोना-चांदी के अलावा) के ट्रेंड में तेज गिरावट की वजह से हुआ जो पिछले दशक एक दशक के 5- 5.5 फीसदी से घटकर 3.2 फीसदी रह गई।
बुनियादी ढांचे में निवेश से वर्तमान किफायत और उत्पादकता में वृद्धि, डिजिटल लेन-देन में वृद्धि, मुद्रास्फीति की अपेक्षाओं में ठहराव, आपूर्ति-पक्ष खाद्य प्रबंधन में सक्रियता, और चीनी आयात से बढ़ती प्रतिस्पर्धा आदि इन सभी ने इस प्रवृत्ति में योगदान दिया है। खाद्य और ईंधन क्षेत्र में जहां रुझान के पलटने का जोखिम रहता है, वहीं सुपर कोर रुझान में गिरावट अधिक टिकाऊ होनी चाहिए। हम उम्मीद करते हैं कि मुद्रास्फीति की दर 2026 में औसतन 3.6 फीसदी रहेगी जो 2025 के 2.2 फीसदी से अधिक है। इससे हम दो वर्ष रिजर्व बैंक के 4 फीसदी के लक्ष्य से नीचे का स्तर हासिल कर लेंगे।
बुनियादी तौर पर देखें तो कम मुद्रास्फीति लंबे समय तक जारी रहेगी। एक कमजोर मुद्रा मुद्रास्फीति को चुनौती नहीं है। वास्तविक दरें ऊंचे स्तर पर रहेंगी और ऐसे में कुछ और राहत की गुंजाइश भी रहेगी। परंतु रीपो दर में इस वर्ष 125 आधार अंकों की कमी के बाद रिजर्व बैंक के पास यह गुंजाइश है कि वह अब धीरे-धीरे आगे बढ़े। टर्मिनल रीपो दर वर्तमान 5.25 फीसदी से कम स्तर पर ठहर सकती है और कम दरों वाली व्यवस्था टिकाऊ नजर आती है।
ट्रांसमिशन यानी कम दरों का लाभ पहुंचाने के लिए अधिक प्रोत्साहन की आवश्यकता होगी क्योंकि विदेशी मुद्रा हस्तक्षेप और अधिक मुद्रा रिसाव बैंकिंग प्रणाली में नकदी को कम कर रहे हैं, इसलिए अधिक खुले बाजार में बॉन्ड खरीद आवश्यक होंगी। लचीले मुद्रास्फीति-लक्ष्यीकरण ढांचे की मार्च 2026 के बाद समीक्षा की जाएगी और मौजूदा ढांचे के नवीनीकरण को सकारात्मक माना जाएगा।
नकारात्मक भुगतान संतुलन इस वर्ष दबाव का बिंदु रहा है। खासतौर पर सितंबर से ऐसा देखने को मिला है। शुल्क वृद्धि ने निर्यात पर असर डाला है, आयात दिक्कतदेह बना रहा और बड़े पोर्टफोलियो से पूंजी बाहर जाने के कारण चालू खाते के घाटे की भरपाई करना चुनौतीपूर्ण बना रहा। अमेरिका के साथ व्यापार समझौता अभी भी दूर की कौड़ी है और ये दबाव निकट भविष्य में बरकरार रह सकते हैं।
हालांकि बाहरी क्षेत्र बुनियादी तौर पर मजबूत नजर आता है और मुद्रा संबंधी चिंताएं खत्म होनी चाहिए। रुपये के मूल्य में वास्तविक प्रभावी विनिमय दर पर गिरावट आई है जो आयात पर अंकुश लगाकर और निर्यात को बढ़ावा देकर चालू खाते को स्थिर करने में मददगार हो सकता है। कमजोर मुद्रा आमतौर पर अधिक धन प्रेषण आकर्षित करती है। पूंजी खाते पर, बेहतर घरेलू वृद्धि पोर्टफोलियो इक्विटी प्रवाह को आकर्षित करेगी, और भारत का ब्लूमबर्ग ग्लोबल एग्रीगेट इंडेक्स में प्रवेश अगले वर्ष बड़े बॉन्ड प्रवाह का कारण बन सकता है।
अनुमान बताते हैं कि वित्त वर्ष 26 में लगभग 1.3 लाख करोड़ रुपये का संभावित राजस्व घाटा हो सकता है। इसे शायद वित्त वर्ष 26 की दूसरी छमाही में व्यय में कमी के जरिये पूरा किया जाएगा क्योंकि सरकार वित्त वर्ष 26 में जीडीपी के 4.4 फीसदी के बराबर राजकोषीय घाटे का लक्ष्य लेकर चल रही है। वित्त वर्ष 27 के आरंभ से केंद्र सरकार राजकोषीय घाटे के लक्ष्यों को तय करने की जगह ऋण लक्षित करने वाले ढांचे की ओर जाएगी।
इसका उद्देश्य वित्त वर्ष 26 में जीडीपी के लगभग 56 फीसदी से वित्त वर्ष 31 तक ऋण 50 फीसदी (एक फीसदी कम या ज्यादा) तक कम करना है। घाटे के लक्ष्य की गैर मौजूदगी से अनिश्चितता बढ़ सकती है क्योंकि निवेशक राजकोषीय घाटे को आधार मानने के आदी हो गए हैं जबकि ऋण-जीडीपी अनुपात पूरी तरह सरकार के नियंत्रण में नहीं है।
यद्यपि सरकार प्राथमिक घाटे को कम कर सकती है, लेकिन ऋण स्थिरता इस पर भी निर्भर करती है कि नॉमिनल जीडीपी वृद्धि किस हद तक नॉमिनल ब्याज दर से अधिक होती है। हमारा मानना है कि सरकार इस संक्रमण के दौरान राजकोषीय समेकन या मजबूती के प्रयास को जारी रखेगी हालांकि शायद ऐसा धीरे-धीरे होगा।
कुल मिलाकर 2025 भारत के लिए चुनौतीपूर्ण रहा है लेकिन अर्थव्यवस्था ने घरेलू मांग को बढ़ावा देने और निर्यात में विविधता लाने के प्रयासों के माध्यम से इन झटकों को अच्छी तरह से संभाल लिया है। नीति के बाद नरमी चक्रीय मांग को बढ़ावा देती है और संरचनात्मक सुधार उत्पादकता तथा निवेश को बढ़ाते हैं, जिससे ठोस वृद्धि और नरम मुद्रास्फीति का मिश्रण 2026 में भी जारी रह सकता है।
(लेखिका नोमूरा में मुख्य अर्थशास्त्री -भारत और जापान के इतर एशिया- हैं)