अब आप जैसे ही छत के बारे में सोचते हैं आपके जेहन में वहां लगे सौर पैनल की तस्वीर उभरने लगती है। आप सौर ऊर्जा की बात सोचते हैं तो आप दिन में पैदा होने वाली बिजली को देखते हैं जो उपकरणों को चलाती है और यहां तक कि ग्रिड में भी जाती है। इस ग्रिड से रात में रोशनी के लिए बिजली वापस हासिल की जा सकती है, जब सूरज की चमक नहीं होती।
यह दुनिया का सबसे बेहतरीन समाधान है, जहां हम में से हर कोई बिजली का उत्पादक बन जाता है। यह इसलिए काम करता है क्योंकि सौर ऊर्जा मॉड्यूलर है, और इसके पैनल ताप विद्युत संयंत्रों और नाभिकीय ऊर्जा उत्पादक संयंत्रों के विपरीत, कहीं भी फिट हो सकते हैं। हालांकि बड़े सौर ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण के लिए बहुत अधिक जमीन की जरूरत होती है, जो हमेशा दुर्लभ और अक्सर विवादित जमीन होती है, लेकिन इस मॉडल में हर उपलब्ध छत अपने आप में एक बिजली संयंत्र बन जाती है।
आप यह सवाल कर सकते हैं कि मैं छत पर लगने वाले सौर ऊर्जा के उन लाभों के बारे में क्यों बता रही हूं जिससे सभी वाकिफ हैं। मेरा भी मानना है कि इसकी क्षमता बहुत ज्यादा है। फिर, केंद्र सरकार के दफ्तरों और घरों में छत पर लगने वाले सौर ऊर्जा को प्रोत्साहन देने की योजनाओं के बावजूद, इस क्षेत्र में प्रगति अब भी परिवर्तनकारी स्तर पर क्यों नहीं है? यह नीति या इरादे की कमी नहीं है। असली सवाल यह है कि यह तकनीक मौजूदा बिजली वितरण प्रणालियों के साथ कैसे एकीकृत होगी।
यह चुनौती सिर्फ भारत के लिए ही अनोखी नहीं है। सभी नई तकनीकें समान रास्ते पर चलती हैं। उन्हें अपनी जगह सुरक्षित करने के लिए पुरानी चीजों को हटाने के तरीके खोजने होंगे और इस मामले में तो सचमुच यह जरूरी है। हकीकत यह है कि सौर तकनीक, केवल तभी बिजली दे सकती है जब सूरज चमकता है, ऐसे में किसी तरह के बैकअप की आवश्यकता होती है।
याद रखें कि रात के समय ऊर्जा की खपत अक्सर दिन के समय के बराबर या उससे भी ज़्यादा होती है। दिन में प्राकृतिक रोशनी उपलब्ध होती है और आमतौर पर किसी चीज को गर्म रखने या वातानुकूलन की कम जरूरत होती है। आदर्श व्यवस्था यह है कि सौर पैनल दिन के दौरान बिजली पैदा करते हैं, जिसका कुछ हिस्सा पैनल वाली साइट पर ही इस्तेमाल किया जाता है,
जबकि अतिरिक्त बिजली ग्रिड को भेजी जाती है या फिर बैटरी में संग्रहित की जाती है जिसका इस्तेमाल तब होता है जब सूरज की रोशनी नहीं होती है। चूंकि बैटरी अब भी महंगी हैं, इसलिए ग्रिड को भेजना सबसे व्यावहारिक विकल्प बना हुआ है। इस सेटअप में यह वितरण कंपनी (डिस्कॉम) या बिजली आपूर्ति कंपनियों के बैकअप के रूप में काम करती है।
हालांकि मुश्किलें यहीं से शुरू हो जाती हैं। केरल का उदाहरण लें, जो छतों पर लगाई जाने वाली सौर ऊर्जा परियोजनाओं में देश के सबसे सफल राज्यों में से एक है। राज्य ने छतों पर लगाए जाने वाले 1.5 गीगावॉट के तंत्र स्थापित किए हैं जिसकी पहुंच इसके एक करोड़ घरेलू ग्राहकों के 2 फीसदी हिस्से तक है। केरल राज्य बिजली बोर्ड (केएसईबी), जो इस योजना को लागू करता है, उसने अगस्त में कहा कि उसका वित्तीय नुकसान असहनीय हो गया है।
समस्या यह थी कि केएसईबी दिन के दौरान छत पर लगने वाले जेनरेटर से बिजली खरीद रहा था, जब दरें कम थीं और उन्हें रात में उतनी ही मात्रा में वापस बेच रहा था, जब उसकी खरीदी हुई बिजली की लागत ज़्यादा थी। इस सौर कार्यक्रम के माध्यम से केवल 2 फीसदी उपभोक्ताओं को सेवाएं मिलने से बिजली दरों पर बोझ बढ़ गया, जिससे बदले में बाकी उपभोक्ताओं के लिए बिल बढ़ गए।
इसलिए, केएसईबी ने एक मसौदा आदेश जारी किया, जो ग्रिड को बिजली देने की अधिकतम क्षमता को सीमित करेगा, ग्रिड शुल्क पर कर लगाएगा और दिन के समय की गणना के आधार पर शुल्क पेश करेगा। जैसे ही यह आदेश आया, छत पर लगाई जाने वाली योजना ठप पड़ गई और एक महीने के भीतर, इंस्टॉलेशन आधे हो गए।
नवंबर में, केरल राज्य बिजली नियामक आयोग (केएसईआरसी) ने ग्रिड से जुड़े छत पर लगने वाले सिस्टम के लिए अंतिम अधिसूचना जारी की। यह नए जुड़े घरों को बैटरी स्टोरेज लगाना अनिवार्य करके वितरण कंपनियों पर बोझ कम करने का प्रयास करता है, ताकि उनकी रात के समय बिजली की खरीद कम हो जाए। छत पर लगने वाले 10 किलोवॉट से ऊपर के सौर ऊर्जा पैनल में 10 फीसदी बैटरी स्टोरेज होनी चाहिए और 15-20 किलोवॉट वाले पैनल तंत्र में 20 फीसदी की आवश्यकता होगी। वर्ष 2027 के बाद, छोटे 5 किलोवॉट तंत्र में भी स्टोरेज की आवश्यकता होगी। यह नीति कुल मीटरिंग तंत्र के माध्यम से प्रोत्साहन की पेशकश भी करती है, जिससे बिजली की अधिक मांग वाले समय के दौरान सौर ऊर्जा की आपूर्ति करने वाले ग्राहकों को अधिक टैरिफ की पेशकश होती है।
ग्राहक के बिजली बिलों का अंतिम निपटान प्रत्येक वित्तीय वर्ष के अंत में किया जाएगा। इस निपटान प्रक्रिया के तहत, पहले ग्राहक के खाते से निश्चित शुल्क और ग्रिड शुल्क की कटौती की जाएगी। इन कटौतियों के बाद भी, यदि ग्राहक की कोई बिजली की यूनिट अधिशेष या ‘जमा’ बचती है (यानी ग्राहक ने ग्रिड को जितनी बिजली दी, वह ली गई बिजली से अधिक है), तो उस बची हुई बिजली के लिए भुगतान किया जाएगा।
मौजूदा ग्राहकों को यह भुगतान 3.08 रुपये प्रति किलोवॉट की दर से और नए कनेक्शन वाले ग्राहकों को 2.79 रुपये प्रति किलोवॉट की दर से किया जाएगा। यह महत्त्वपूर्ण है कि अधिशेष यूनिट के लिए भुगतान की जाने वाली यह दर, बिजली की सामान्य या अधिक मांग वाले समय की दरों से काफी कम होगी। इस अधिसूचना पर राज्य उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी है और यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मामले का समाधान कैसे होता है।
सवाल यह है कि छत पर लगने वाले सौर ऊर्जा उत्पादकों, घरों के लिए और ऊर्जा वितरकों के लिए कारगर लगने वाला सबसे अच्छा नियामक वातावरण क्या होगा। या क्या वितरण पर भरोसा किए बिना सौर भविष्य बनाने के तरीके हो सकते हैं, खासकर उन देशों और क्षेत्रों में जहां आज ग्रिड नहीं है?
पड़ोसी पाकिस्तान से आ रही खबरें एक अलग रास्ते के संकेत देती हैं। यह देश बिजली की कमी के कारण अधिक ऊर्जा लागत का सामना कर रहा है। हालांकि, इसने चीनी सौर पैनलों और लीथियम बैटरी पर आयात शुल्क हटा दिया है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा विश्लेषकों का अनुमान है कि 2024 तक, पाकिस्तान ने लगभग 25 गीगावॉट क्षमता के ऐसे सोलर तंत्र लगाए जो ग्रिड से जुड़े हुए थे इसकी तुलना में, पाकिस्तान की कुल ग्रिड बिजली उत्पादन क्षमता लगभग 50 गीगावॉट थी। इसके अलावा, देश ने दूर-दराज के ऐसे इलाके जो ग्रिड से नहीं जुड़े हैं, उन्हें चलाने में मदद के लिए 1.25 गीगावॉट क्षमता वाली लीथियम बैटरियां भी आयात की थीं।
इस रफ्तार से, पाकिस्तान वर्ष2030 तक सौर ऊर्जा के माध्यम से अपनी दिन के समय की बिजली की 100 फीसदी मांग और रात के समय की मांग का 25 फीसदी पूरा कर सकता है। लेकिन रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि यह बदलाव वितरण कंपनियों की लागत में वृद्धि कर रहा है, जिससे पीछे हटने और नीति की समीक्षा को बढ़ावा मिल रहा है। यह स्पष्ट नहीं है कि यह बात कहां तक जाएगी। यह हमारे दौर का अहम प्रश्न है कि नई ऊर्जा प्रणालियां मौजूदा जीवाश्म-ईंधन-आधारित ग्रिड को कैसे विस्थापित करेंगी और हमें अलग तरीके से क्या करना चाहिए? यह एक ऐसा सवाल है जिसे हम सभी को ध्यान से देखने की कोशिश करनी चाहिए।