आगामी CAFE-3 उत्सर्जन मानकों के अंतर्गत छोटी कारों को राहत देने को के प्रस्ताव को लेकर ऑटो उद्योग में लंबे समय से चल रहा विवाद अब प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) तक पहुंच गया है। बिज़नेस स्टैंडर्ड को पता चला है कि JSW MG मोटर और टाटा मोटर्स पैसेंजर व्हीकल्स (TMPV) ने इस मुद्दे पर अब PMO को पत्र लिखा है।
इस सप्ताह की शुरुआत में PMO को लिखे गए दो अलग-अलग पत्रों में, दोनों कंपनियों ने कहा कि वजन के आधार पर पेट्रोल से चलने वाली छोटी कारों की एक नई उप-श्रेणी बनाकर उसे राहत देना देश के इलेक्ट्रिक वाहन (EV) अपनाने के राष्ट्रीय मिशन को कमजोर करेगा, सड़क सुरक्षा पर नकारात्मक असर डालेगा और उन कंपनियों के लिए अनुचित होगा जिन्होंने लंबे समय से मौजूदा परिभाषा के आधार पर निवेश किया है। मौजूदा परिभाषा के तहत छोटी कारें वे मानी जाती हैं जिनकी लंबाई चार मीटर से कम और पेट्रोल इंजन क्षमता 1,200 सीसी से कम होती है। कंपनियों ने यह भी कहा कि इस कदम से व्यवहारिक रूप से केवल एक ही कार निर्माता को फायदा होगा।
कॉरपोरेट एवरेज फ्यूल एफिशिएंसी (CAFE) फ्रेमवर्क के अंतर्गत वाहन निर्माताओं के लिए पूरे फ्लीट स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन लक्ष्य (ग्राम प्रति किलोमीटर) तय किए जाते हैं। नियमों का पालन न करने पर ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE), जो कि पावर मिनिस्ट्री के तहत आता है, जुर्माना लगा सकता है।
BEE ने FY28–FY32 अवधि के लिए CAFE-3 मानकों का पहला मसौदा जून 2024 में जारी किया था। सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (SIAM) ने दिसंबर 2024 में इसमें बदलावों की मांग करते हुए अपनी टिप्पणियां दी थीं।
इसके बाद, भारत की सबसे बड़ी कार निर्माता और स्मॉल-कार सेगमेंट की प्रमुख खिलाड़ी मारुति सुजुकी ने अलग से वजन आधारित छूट की मांग की, जिससे उद्योग में मतभेद पैदा हो गए। सितंबर 2025 में BEE ने संशोधित ड्राफ्ट जारी किया और पहली बार वजन आधारित राहत शामिल की। इसके तहत 909 किलोग्राम से कम वजन वाली पेट्रोल कारों के लिए 3 ग्राम/किमी की अतिरिक्त छूट का प्रस्ताव रखा गया।
JSW MG और TMPV ने अपने पत्रों में कहा कि CAFE मानक पूरे पोर्टफोलियो पर लागू होते हैं और उनका उद्देश्य सस्टेनेबल तकनीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहन देना है। अगर किसी खास पेट्रोल कार उप-श्रेणी को छूट दी जाती है, तो इससे EV जैसी तकनीकों में निवेश का प्रोत्साहन कम हो सकता है और यह राष्ट्रीय EV मिशन के खिलाफ होगा।
दोनों कंपनियों ने कहा कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में सरकार ने 2030 तक 30% EV की पहुंच को लेकर महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है। उन्होंने बताया कि कारों में EV की हिस्सेदारी पहले ही 5% तक पहुंच चुकी है और अगर नीति में निरंतरता और स्पष्टता बनी रही, तो भारत शून्य-उत्सर्जन वाहनों के प्रमुख निर्माता और उपभोक्ता देशों में शामिल हो सकता है।
JSW MG, TMPV और PMO ने इस खबर पर बिज़नेस स्टैंडर्ड के सवालों का तत्काल जवाब नहीं दिया।
TMPV ने अपने पत्र में कहा, “प्रस्तावित वजन सीमा लेवल प्लेइंग फील्ड को बिगाड़ सकती है, क्योंकि जिस सीमा की बात हो रही है, वहां एक ही OEM (ओरिजिनल इक्विपमेंट मैन्यूफैक्चरर) की 95% बाजार हिस्सेदारी है। यह उन सभी OEM के लिए अनुचित होगा, जिन्होंने लगभग दो दशकों से चली आ रही छोटी कारों की परिभाषा-जो केवल वाहन की लंबाई और इंजन क्षमता पर आधारित है-के अनुसार निवेश किया है।”
GST व्यवस्था के तहत, 1,200 सीसी तक की पेट्रोल कारें और चार मीटर से कम लंबाई वाली कारों पर 18% टैक्स लगता है, जबकि अन्य पेट्रोल कारों पर 40% GST लागू होता है।
इसी तरह की चिंता जताते हुए JSW MG ने कहा कि उद्योग का निवेश, प्रोडक्ट स्ट्रैटेजी और लोकलाइजेशन प्रयास पिछले करीब 20 वर्षों से एक समान परिभाषा के आधार पर डेवलप हुए हैं। वजन को एक नया मानदंड बनाने से नियामकीय स्थिरता और निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा पर असर पड़ सकता है।
1 दिसंबर को, मारुति सुजुकी इंडिया के वरिष्ठ अधिकारी राहुल भारती ने कहा था कि अगर CAFE-3 के CO₂ लक्ष्य ‘अवैज्ञानिक और अन्यायपूर्ण’ रहे, तो 909 किलोग्राम से कम वजन वाली कारों को बंद करना पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि 3g/km की छूट EV और मजबूत हाइब्रिड्स को मिलने वाले प्रोत्साहनों की तुलना में बहुत कम है और यूरोप जैसे क्षेत्रों से भी काफी कम है, जहां छूट 18 g/km तक जाती है।
JSW MG और TMPV ने PMO को लिखे पत्रों में यह भी चेतावनी दी कि वजन आधारित छूट से कंपनियां जरूरी सुरक्षा फीचर्स की कीमत पर वजन घटाने को प्रेरित हो सकती हैं। TMPV ने कहा कि इससे वाहन सुरक्षा में हाल के वर्षों में हुई प्रगति को नुकसान पहुंच सकता है। कंपनी ने कहा, “यह एक तथ्य है कि प्रस्तावित वजन सीमा (909 किग्रा) पर या उससे नीचे कोई भी वाहन BNCAP रेटिंग प्राप्त नहीं करता।”
BNCAP (भारत न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम) भारत की आधिकारिक वाहन सुरक्षा रेटिंग प्रणाली है, जो वयस्क और बच्चों की सुरक्षा, पैदल यात्रियों की सुरक्षा और सेफ्टी असिस्ट तकनीकों जैसे मानकों पर वाहनों का मूल्यांकन करती है। वजन और सुरक्षा के बीच सीधा संबंध होता है, क्योंकि मजबूत बॉडी स्ट्रक्चर, साइड-इंपैक्ट बीम, बड़े क्रंपल जोन और अतिरिक्त एयरबैग जैसी सुविधाएं वाहन का वजन बढ़ाती हैं।
JSW MG ने कहा कि भारत की शून्य-उत्सर्जन वाहनों की दिशा में पहल के चलते ऑटो उद्योग ने EV वैल्यू चेन और व्यापक ऑटोमोटिव इकोसिस्टम में ₹1 लाख करोड़ से अधिक का संयुक्त निवेश किया है। इसमें एडवांस्ड सेल मैन्युफैक्चरिंग, बैटरी उत्पादन और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर शामिल हैं। कंपनी ने कहा कि अब इन प्रयासों के ठोस नतीजे दिखने लगे हैं और कारों में EV की हिस्सेदारी 5% तक पहुंच गई है।
इन सभी कारणों से, JSW MG और TMPV ने PMO से आग्रह किया कि वजन के आधार पर किसी विशेष श्रेणी को CAFE राहत न दी जाए, क्योंकि यह शून्य-उत्सर्जन तकनीकों, सड़क सुरक्षा और निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा के खिलाफ होगा। दोनों कंपनियों ने कहा कि CAFE-3 मानकों में EV अपनाने पर फोकस को एक समान और अनुमानित ढांचे के जरिए और मजबूत किया जाना चाहिए।
इसी बीच, मंगलवार को यूरोपीय आयोग ने अपने संशोधित CO₂ अनुपालन ढांचे के तहत एक नया ऑटोमोटिव पैकेज घोषित किया। इसके तहत लंबाई के आधार पर छोटी EVs को छूट दी जाएगी।
EU में निर्मित लगभग 4.2 मीटर से कम लंबाई वाली इलेक्ट्रिक कारें “सुपर क्रेडिट” के लिए पात्र होंगी, जहां प्रत्येक बिक्री को 1.3 गुना गिना जाएगा। यह सुविधा 2034 तक लागू रहेगी और इसका उद्देश्य यूरोप में कॉम्पैक्ट EV के निर्माण और बिक्री को बढ़ावा देना है।