भारत विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में अमेरिका के एक प्रस्ताव का विरोध कर सकता है, जिसमें सदस्य देशों के सबसे पसंदीदा राष्ट्र (एमएफएन) के दायित्व को खत्म करने की बात कही गई है। यह व्यवस्था समान और गैर-भेदभावपूर्ण टैरिफ की व्यवस्था सुनिश्चित करती है। अमेरिका का तर्क है कि यह बहुपक्षीय सिद्धांत आर्थिक और रणनीतिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने में विफल रहा है।
अमेरिका ने डब्ल्यूटीओ को हाल में भेजे गए संदेश में कहा है, ‘एमएफएन का सिद्धांत न सिर्फ इस दौर के लिए अनुपयुक्त है, बल्कि यह देशों को अपने व्यापारिक संबंध बढ़ाने से रोकता है, जिससे कि आपसी संबंधों के माध्यम से हर पक्ष को लाभ हो सकता है।
दूसरे शब्दों में कहें तो एमएफएन से कल्याकारी उदारीकरण में बाधा आती है। इससे सदस्यों को एक ही स्थल, डब्ल्यूटीओ में शामिल होने और सभी के लिए उपयुक्त एक ही आकार का दृष्टिकोण विकसित करने को बढ़ावा मिलता है।’
हालांकि भारत ने अभी तक डब्ल्यूटीओ में अमेरिकी प्रस्ताव का औपचारिक रूप से जवाब नहीं दिया है, लेकिन एक भारतीय सरकारी अधिकारी कहा कि भारत इस तरह के किसी भी कदम का विरोध करेगा।
अधिकारी ने नाम सार्वजिक न करने की शर्त पर कहा, ‘यह डब्ल्यूटीओ के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। अमेरिका की मांग का असल मकसद उसके द्वारा विभिन्न देशों पर लगाए गए पारस्परिक शुल्क को बहुपक्षीय बनाना है।’
डब्ल्यूटीओ में सुधार सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दा होने की संभावना है जिस पर 26 से 29 मार्च, 2026 के दौरान कैमरून के याओंडे में होने वाली बहुपक्षीय व्यापार निकाय की 14वीं मंत्रिस्तरीय बैठक (एमसी14) में चर्चा की होगी।
जनरल काउंसिल की 6 से 7 अक्टूबर को आयोजित बैठक के दौरान दिए गए एक बयान में भारत ने कहा कि मराकेश समझौते के मूलभूत सिद्धांतों से समझौता नहीं करने को लेकर एक शुरुआती समझ होनी चाहिए।
इसने कहा, ‘इन मूलभूत सिद्धांतों – आम सहमति पर आधारित निर्णय लेने, सदस्यों द्वारा संचालित संगठन और विशेष व विभेदक उपचार के सिद्धांत- को संरक्षित करना आवश्यक है।’ वाणिज्य विभाग ने अक्टूबर में डब्ल्यूटीओ में सुधार पर विशेषज्ञों का एक समूह भी स्थापित किया है, जिसमें पूर्व राजदूतों और व्यापार विशेषज्ञों को शामिल किया गया है। समूह ने वाणिज्य सचिव की अध्यक्षता में 7 नवंबर को अपनी पहली बैठक आयोजित की। इस चर्चा में सुधारों को तेज करने, बाधाओं की पहचान करने और एक सुसंगत रणनीति बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
अमेरिका ने अपनी प्रस्तुति में कहा कि विकसित और विकासशील स्थिति के बीच अंतर अब धुंधला हो गया है। उसने कहा कि यह स्वीकार करने का समय आ गया है कि सभी सदस्यों को पारस्परिक रूप से लाभप्रद समझौते करने की अनुमति देना जरूरी है, जिसका विस्तार संभवतः हर सदस्य तक नहीं हो सकता है।
अमेरिका ने तर्क दिया कि एमएफएन के सिद्धांत का मकसद भेदभाव को रोकना और व्यापारिक भागीदारों के बीच समान व्यवहार सुनिश्चित करना है, जो एक ऐसे दौर के लिए बनाया गया था जहां देशों से खुले, बाजार उन्मुख व्यापार नीतियों को अपनाने की उम्मीद की गई थी, जैसा कि डब्ल्यूटीओ की स्थापना की प्रस्तावना में दर्शाया गया है। अमेरिका ने कहा कि यह उम्मीद बहुत सादगी वाली थी और अब वह दौर खत्म हो चुका है।