स्वच्छ ऊर्जा बदलाव की वैश्विक यात्रा में हरित हाइड्रोजन बहुत बड़ी उम्मीद के रूप में उभर कर सामने आई है। अपनी उच्च घनत्व ऊर्जा क्षमता के साथ हाइड्रोजन उन सभी उद्योगों में बहुत अच्छी तरह काम कर सकती है, जिनमें प्राकृतिक अथवा तरलीकृत पेट्रोलियम गैस का इस्तेमाल होता है। खास बात यह है कि जब यह जलती है तो गंदे कार्बन उत्सर्जन के बजाय इससे शुद्ध पानी निकलता है।
हाइड्रोजन को कार चलाने के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है। बशर्ते, इसके लिए प्रौद्योगिकी एवं हाइड्रोजन ईंधन सेल के अर्थशास्त्र के साथ-साथ हाइड्रोजन फिलिंग स्टेशनों जैसा आधारभूत ढांचा उपलब्ध हो। सबसे अच्छी बात, हाइड्रोजन पृथ्वी पर सबसे अधिक मात्रा में पाया जाने वाला तत्त्व है, जबकि अन्य तत्त्व सीमित भौगोलिक क्षेत्रों में ही उपलब्ध हैं।
इसके पक्के समर्थक भी यह स्वीकार करते हैं कि मौजूदा समय में उत्पादित अधिकांश हाइड्रोजन कई मामलों में न तो हरित है और न ही स्वच्छ, लेकिन इसके जलने से मिलने वाला अंतिम उत्पाद निश्चित तौर पर शुद्ध पानी है। आज बड़ी मात्रा में पाई जाने वाली हाइड्रोजन ‘ग्रे’ हाइड्रोजन है जो मीथेन से बनती है (प्राकृतिक गैस मुख्यत: मीथेन से ही बनी होती है), जिसे स्टीम मीथेन रिफॉर्मेशन प्रक्रिया के माध्यम से बनाया जाता है।
मीथेन एक हाइड्रोकार्बन है और स्टीम मीथेन रिफॉर्मेशन प्रक्रिया के माध्यम से बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड पैदा होता है। कभी-कभी कार्बन डाइऑक्साइड का भंडारण कर लिया जाता है और इससे तैयार होने वाले हाइड्रोजन को ब्लू हाइड्रोजन कहते हैं। यह स्वच्छ गैस होती है, अलबत्ता बहुत महंगी पड़ती है। इसके अलावा काला और भूरा हाइड्रोजन भी होता है, जो काले कोयले और लिग्नाइट से तैयार किया जाता है, लेकिन इसे बनाने की प्रक्रिया में गंदे उत्सर्जन के कारण स्वच्छ ऊर्जा स्रोत के रूप में इस्तेमाल की दृष्टि से यह निरर्थक ही रहता है।
यही कारण है कि स्वच्छ ऊर्जा के रूप में अकेली उम्मीद हरित हाइड्रोजन पर टिकी है, जो बड़े पैमाने पर उपलब्ध होने के साथ-साथ सस्ती भी है। हरित हाइड्रोजन का उत्पादन पानी में विद्युत अपघटन से रासायनिक प्रतिक्रिया के माध्यम से किया जाता है। इस रासायनिक प्रतिक्रिया के लिए सौर या वायु ऊर्जा संयंत्रों में अधिशेष हरित ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाता है।
पूरे विश्व में हरित हाइड्रोजन संयंत्रों पर अरबों डॉलर का निवेश किया जा रहा है। जब इसका बड़े स्तर पर उत्पादन होने लगेगा तो यह लोगों के लिए केवल इलेक्ट्रिक वाहनों और सौर ऊर्जा संयंत्रों में उपयोग के महत्त्व की ही नहीं होगी, बल्कि व्यापक स्तर पर इसका इस्तेमाल किया जाएगा और आर्थिक दृष्टि से फायदेमंद होगा। जापान, यूरोप और भारत हरित हाइड्रोजन पर भारी निवेश कर रहे हैं। भारत में गौतम अदाणी और मुकेश अंबानी समेत कई बड़े उद्योगपतियों ने हरित हाइड्रोजन उत्पादन के लिए अपनी योजनाओं का ऐलान किया है।
आने वाले समय में अपने देश में हरित हाइड्रोजन का महत्त्व बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा। सरकार को उम्मीद है कि भविष्य में हरित हाइड्रोजन के उत्पादन में न केवल हम आत्मनिर्भर होंगे, बल्कि इस ईंधन का निर्यात भी कर सकेंगे। पिछले साल प्रेस सूचना कार्यालय (पीआईबी) की विज्ञप्ति के अनुसार वर्ष 2030 तक देश में लगभग 50 लाख टन हरित हाइड्रोजन का उत्पादन होने लगेगा, जिसमें से 70 प्रतिशत का निर्यात किया जा सकेगा।
हाल ही में बड़े स्तर पर सफेद हाइड्रोजन की खोजों ने हलचल मचा दी है। समय के साथ यह हरित हाइड्रोजन की पूरी कहानी को बिगाड़ सकती है। सफेद हाइड्रोजन प्राकृतिक रूप से भूगार्भिक हाइड्रोजन है, जो खदानों से निकलती है। इन खोजों ने कुछ लोगों को बहुत अधिक उत्साहित कर दिया है, जिन्होंने इसे स्वर्ण हाइड्रोजन का नाम दिया है। अभी तक सफेद हाइड्रोजन के भंडार अमेरिका, रूस, माली, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया समेत कई और स्थानों पर पाए गए हैं।
सफेद हाइड्रोजन ने उसी तरह नई उम्मीदों को हवा दी है, जिस प्रकार कभी लीथियम के नए स्रोत मिलने से संभावनाएं जगी थीं। कुछ अनुमानों के मुताबिक पृथ्वी पर लगभग 5 लाख करोड़ टन से भी अधिक सफेद हाइड्रोजन के भंडार मौजूद हैं। इससे दुनिया की दशकों तक की ईंधन आवश्यकता की पूर्ति हो सकती है।
हरित हाइड्रोजन के मुकाबले सफेद हाइड्रोजन का सबसे बड़ा सैद्धांतिक लाभ यह है कि इसके अपेक्षाकृत सस्ता होने की संभावना है और इसके खनन में ऊर्जा की खपत भी कम होगी। सफेद हाइड्रोजन की बढ़ती संभावनाओं से हरित हाइड्रोजन परियोजनाओं की अर्थव्यवस्था को लेकर बहुत से सवाल खड़े हो रहे हैं।
हरित हाइड्रोजन उत्पादन में बड़ी मात्रा में मीठे पानी की आपूर्ति और सस्ती नवीकरणीय ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जबकि मीठे पानी के स्रोत कम हैं। यही कारण है कि वैज्ञानिकों और कारोबारियों ने समुद्र अथवा महासागरों के तटीय इलाकों में पौधरोपण को प्राथमिकता दी है। खारे पानी के इस्तेमाल से हाइड्रोजन उत्पादन की लागत और बढ़ जाती है, क्योंकि विद्युत अपघटन से पहले इस पानी का खारापन दूर करना बहुत ही आवश्यक होता है। ऐसे देश विशेषकर गरीब देश जो महासागरों और समुद्रों के पास हैं और पर्याप्त मात्रा में सूरज की रोशनी प्राप्त करते हैं, वे हरित हाइड्रोजन उत्पादन के लिए आदर्श समझे जाते हैं।
ऐसा माना जाता है कि इन देशों में हाइड्रोजन उत्पादन का व्यापक आधार इनकी अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में मददगार हो सकता है। यूरोपीय देश अपनी स्वच्छ ऊर्जा यात्रा को गति देने के लिए उत्तरी अफ्रीकी देशों से हरित हाइड्रोजन आयात करने की योजना बना रहे हैं, क्योंकि यूरोपीय देशों के मुकाबले वहां इसकी उत्पादन लागत कम है।
सफेद हाइड्रोजन का खनन अभी शुरुआती दौर में है। ऐसा प्रतीत होता है कि इसके खनन की लागत हरित हाइड्रोजन के मुकाबले काफी कम आएगी। इसके उत्पादन में कम ऊर्जा की खपत होगी और निश्चित रूप से पानी की भी ज्यादा जरूरत नहीं पड़ेगी। यूरोप में किए गए एक अध्ययन के अनुसार फ्रांस में बड़ी मात्रा में सफेद हाइड्रोजन की खोज का मतलब है कि खदानों से इसके खनन पर मौजूदा समय में हरित हाइड्रोजन उत्पादन खर्च का दसवां हिस्सा कम लागत आएगी।
उदाहरण के लिए यदि हरित हाइड्रोजन के उत्पादन पर 5 रुपये प्रति किलो लागत आती है तो सफेद हाइड्रोजन पर केवल 0.5 रुपये प्रति किलो के हिसाब से ही खर्च होगा। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि सफेद और हरित हाइड्रोजन के उत्पादन का अनुपात शेष विश्व में भी समान होगा।
हरित हाइड्रोजन पर किस प्रकार निवेश की आवश्यकता होगी? इसमें बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि तकनीकी प्रगति और अन्य कारकों के सहारे कितनी तेजी से हरित हाइड्रोजन उत्पादन की लागत घटती है, लेकिन फिर भी ऐसा माना जा सकता है कि सफेद हाइड्रोजन उत्पादन की दृष्टि से हरित के मुकाबले कई दशकों तक काफी सस्ती रह सकती है। बशर्ते, इसके भंडार आसानी से खनन किए जाने वाले क्षेत्रों में उपलब्ध हों। यह स्थिति उन लोगों को बहुत चिंता में डालने वाली है, जिन्होंने शुरुआत में हरित हाइड्रोजन पर बहुत अधिक निवेश किया है।
(लेखक बिजनेस टुडे और बिजनेस वर्ल्ड के पूर्व संपादक और संपादकीय परामर्शदाता फर्म प्रोजैक व्यू के संस्थापक हैं।)