रतन टाटा और क्रिस्टोफर बेनिंगर के सौंदर्य बोध और उनकी दृष्टि ने भारत को पहले की तुलना में सुंदर जगह बनाया। बता रहे हैं नौशाद फोर्ब्स
इस महीने दो महान भारतीयों रतन टाटा और क्रिस्टोफर बेनिंगर का निधन हो गया। क्रिस्टोफर बेनिंगर ने हार्वर्ड से वास्तुकला की डिग्री ली थी और वह देश के सबसे महान व्यावसायिक वास्तुकारों यानी आर्किटेक्ट में शुमार किए जाते थे। दशकों तक उन्होंने कई इमारतें डिजाइन कीं और सुंदरता तथा दूसरों की कल्पना को समझकर गढ़ने के ऐसे मानक खड़े कर दिए, जिनकी बराबरी बहुत कम लोग कर सकते हैं।
रतन टाटा ने कॉर्नेल विश्वविद्यालय से वास्तुकला की पढ़ाई पूरी की और लॉस एंजलिस में दो साल तक वास्तुकार के रूप में काम किया। इसके बाद उन्होंने अपना जीवन यह सुनिश्चित करने में लगा दिया कि टाटा देश का शीर्ष और श्रेष्ठ औद्योगिक घराना बना रहे और यह श्रेष्ठता काम के स्तर, नवाचार, कारोबारी नैतिकता तथा परोपकार जैसे सभी क्षेत्रों में हो। कई लोगों ने राष्ट्र को बदल देने वाली उनकी उपलब्धियों की सराहना की है।
मैं केवल यह बताऊंगा कि कैसे उन दोनों ने देश को भौतिक रूप से अधिक खूबसूरत बनाया – क्रिस्टोफर ने अपनी इमारतों के जरिये और रतन टाटा ने सौंदर्य पर जोर के जरिये। रतन टाटा से मेरी पहली मुलाकात करीब 30 वर्ष पहले एक बैठक में हुई थी। उस तरह की बैठकें अशोक देसाई हर बजट के पहले वित्त मंत्री और उद्योगपतियों के बीच कराया करते थे।
एक बार जब मैं उनके दफ्तर गया तो रिसेप्शन पर कुछ काम चल रहा था। उनके सहायक ने मुझे बताया कि उनके दफ्तर (जो उन्हें जेआरडी से विरासत में मिला था) को नया रूप दिया गया है। नए सिरे से किए गए काम में एक दीवार को रंगा गया था, जिसे उन्होंने अपनी पसंद के चटक लाल रंग में रंगवाया था। लेकिन यह उनके मनमाफिक नहीं हो पाया तो दीवार को दोबारा पेंट किया गया ताकि सही रंग उभरकर आए। उसके बाद भी जब-जब मैं उनके दफ्तर गया तो यह देखकर प्रभावित हुआ कि सारा काम कितनी खूबसूरती से किया गया था। सबकुछ एकदम सटीक।
टाटा मोटर्स की पहली कार इंडिका उस समय बनी जब कंपनी में पूर्णकालिक सीईओ तक नहीं था। रतन टाटा चेयरमैन थे और वह हर महीने पुणे जाकर पूरा दिन रुकते थे और देखते थे कि काम कितना आगे बढ़ गया है। ऐसे दौरों पर वह आधा समय शोध एवं विकास में खर्च करते थे और उत्पाद की डिजाइन को बारीकी से समझते थे। इससे डिजाइनरों को प्रेरणा तो मिलती ही थी, कंपनी के बाकी लोगों को भी स्पष्ट पता चल जाता था कि सफलता के लिए डिजाइन कितनी अहम है।
कंपनी की अभी बिक रही कारों हैरियर और नेक्सॉन की शानदार डिजाइन 25 साल पहले डिजाइन पर जोर दिए जाने का ही नतीजा है। हाल में उनके साथ मेरी मुलाकातें उनके घर पर ही हुई थीं, जहां मैं पहले कभी नहीं गया था। उनका घर भी उनके सौंदर्यबोध को दर्शाता है। सहज, साफ लाइनें और सौंदर्य तथा स्वरूप पर जोर।
बेहतरीन डिजाइनरों द्वारा तैयार किए गए लैंप और सोफे तय जगहों पर बहुत करीने से रखे गए थे, जो केवल सजावट के लिए नहीं थे बल्कि रोशनी बिखेरने और बैठने के लिए थे। बाहर दो नैनो कारों की कलाकृति रखी थीं। वह मेरे देखे सबसे खूबसूरत घरों में से एक था। मैं रतन टाटा के बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा। उनके बारे में, उनके साहस और विनम्रता के बारे में कई लोगों ने बहुत कुछ लिखा है। मैं अब क्रिस्टोफर के बारे में बात करूंगा।
क्रिस्टोफर बेनिंगर से मेरी पहली मुलाकात करीब 15 साल पहले हुई थी, जब फोर्ब्स मार्शल ने चाकण में अपना मुख्य कारखाना बनाने के लिए जमीन खरीदी। कारखाने बनाने वाले वास्तुकारों ने हमें कई डिजाइन दिखाईं। वे ठीक थीं, कारगर थीं मगर खूबसूरत नहीं थीं। कुछ अलग की तलाश में अपने एक साथी के साथ मैं उनके दफ्तर और घर इंडिया हाउस पहुंच गया।
इससे पहले उन्होंने कभी किसी कारखाने पर काम नहीं किया था। हां, एक मरीन इंजीनियरिंग कॉलेज की डिजाइनिंग उन्होंने जरूर की थी। इंडिया हाउस पहुंचते ही हमने उसकी डिजाइन देखी और हमारी चिंता फौरन दूर हो गई। वहां इतनी खूबसूरती के साथ घर और दफ्तर का संगम किया गया था कि देखते ही बनता था। तसल्ली भरे माहौल में लोग वाकई खुशी के साथ काम कर रहे थे। हमने किसी और के बारे में सोचा भी नहीं और क्रिस्टोफर की कंपनी सीसीबीए डिजाइन से पूछा कि कारखाने की डिजाइन में कितना खर्च आएगा।
हमारे कारखाने में कई चरणों में निर्माण हुआ। योजना के मुताबिक पहली परियोजना पूरी करने के लिए हमने क्रिस्टोफर के साथ घंटों बातचीत की। वह केवल यह नहीं पूछ रहे थे कि कितनी जगह चाहिए बल्कि यह भी कि समझना चाह रहे थे कि यहां किस तरह के लोग काम करेंगे और इमारत के जरिये हम क्या बताना चाहते हैं। खूबसूरती बारीकी में ही थी।
कांच के ऊपर जाली लगाने से बिना कृत्रिम लाइट के रोशनी मिल सकती थी। यूटिलिटी ब्लॉक जहां विविध इस्तेमाल वाली वस्तुएं रहती हैं, प्रवेश द्वार के निकट वही सबसे खूबसूरत इमारत है। वहां कंक्रीट की घुमावदार सीढ़ियां दी गई हैं। बॉयलर विनिर्माण के लिए सुरक्षा कारणों से कारखाने के बाहर वेल्डिंग सिलिंडर रखना जरूरी था। वहां हमने रैक बनाने के बजाय एक अंडाकार आउटहाउस बनाया।
कार्यालय की जगह कारखाने के साथ बनाई गई यह घुमावदार कांच वाली इमारत है। बेतरीन वास्तु बनावट के लिए इसे इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ आर्किटेक्ट्स अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
उसके बाद सीसीबीए ने हमारे साथ मिलकर पहले से मौजूद क्रोने मार्शल कारखाने के निकट नया विस्तारित परिसर बनाया। दोनों इमारतें जिस तरह जुड़ती हैं और जैसे एक दूसरे में समाई हुई हैं। एक गोलाकार लाइट कार्यालय में दिन का प्रकाश लाती है और एक रैंप पुरानी इमारत में ले जाता है। सीसीबीए इस समय इसी परिसर समेत हमारे लिए कई जगह काम कर रही है।
कासरवाड़ी के हमारे कॉरपोरेट कार्यालय में कारखाने की जगह को कार्यालय में बदला गया है। वहां दशकों पुरानी इमारतों को पुनरुद्धार की जरूरत है और एक नई इमारत बनाना बड़ी चुनौती है। सीसीबीए ने इस परिसर में सफेद रंग का इस्तेमाल किया है और वहां प्राकृतिक प्रकाश पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। अभी एक आंतरिक प्रांगण और बगीचे का निर्माण किया जा रहा है जिसका उद्देश्य बाहर बैठने का स्थान उपलब्ध कराना है तथा उन सदस्यों का आपसी मेलजोल तय करना है जो आम तौर पर एक दूसरे से नहीं मिलते हैं।
क्रिस्टोफर के डिजाइन देखने में भव्य नहीं हैं। उनके डिजाइन किन्हीं पर्यटकों के लिए बनने के बजाय ऐसे खूबसूरत डिजाइन हैं जो उन जगहों पर काम करने वालो के लिए बने हैं, जो उन्हें महसूस करते हैं और रोज उनको देखते हैं। हमें क्रिस्टोफर बेनिंगर और रतन टाटा की याद आएगी। उनके लिए हमारी सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम भारत को और पूरी दुनिया को आज से भी अधिक खूबसूरत बनाएं ताकि हमें रोजमर्रा के जीवन में भी इनसे प्रेरणा मिल सके। हमें उनके अच्छे आचरण को अपने साथ रखना चाहिए।