भारत में शहरीकरण की रफ्तार तेजी से बढ़ रही है और वर्तमान में देश की 35 प्रतिशत से अधिक आबादी शहरों में रहती है और ऐसी उम्मीद है कि वर्ष 2050 तक 50 प्रतिशत और क्षेत्रों के शहरीकरण की उम्मीद है। शहरी विकास पर सरकारों द्वारा जोर दिए जाने के लिए इससे बेहतर कोई समय नहीं हो सकता था। आर्थिक समीक्षा और बजट में समावेशी शहरी विकास के लिए सरकार की प्राथमिकताओं में सस्ते शहरी आवास, रोजगार सृजन विशेष रूप से सेवा क्षेत्र में और युवाओं तथा बुजुर्गों दोनों के रहन-सहन के सुगमता स्तर में सुधार शामिल है।
हालांकि, हाल की शहरी त्रासदियों ने सरकार द्वारा हमारे शहरों में प्रशासनिक खामियों को दुरुस्त करने की आवश्यकता को जोरदार तरीके से उभारा है। इन त्रासदियों में हाल में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में करियर बनाने की चाह में आए तीन युवाओं की एक अवैध बेसमेंट में डूबने से हुई मौत और देश में भारी वर्षा के कारण हुई कई मौतें शामिल हैं।
हालांकि, इस वर्ष के बजट में शहरी विकास की दिशा में महत्त्वपूर्ण तरीके से जोर दिया गया है। सबसे पहले, सभी के लिए किफायती आवास मुहैया कराने के आवश्यक कदम के रूप में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में पीएम आवास योजना के तहत 3 करोड़ अतिरिक्त घरों का वादा किया गया है। विशेष रूप से, ‘पीएम आवास योजना शहरी’ के दूसरे चरण का लक्ष्य 1 करोड़ गरीब और मध्यम वर्ग के परिवारों की आवास की जरूरतों को पूरा करना है। दूसरा, शहरों को ‘विकास केंद्रों’ में बदलने के लिए, सरकार का इरादा शहरों से जुड़ी योजना तैयार करना है जिसके तहत उपनगरीय क्षेत्रों का सुव्यवस्थित विकास किया जा सके।
यह विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि उपनगरीय क्षेत्र आमतौर पर नियमित प्रशासनिक व्यवस्था और उसकी योजना से अलग-थलग ही रहते हैं। तीसरा, शहरी स्वच्छता को लेकर विकास से जुड़ी एजेंसियों के साथ साझेदारी के माध्यम से 100 शहरों में जल आपूर्ति, सीवेज उपचार और कचरा प्रबंधन को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया है।
बजट में एक दिलचस्प बात यह थी कि शहरों को नए तरीके से बनाने पर ध्यान दिया गया है। सरकार पुरानी फैक्टरी वाली जमीन को नए काम के लिए इस्तेमाल करना चाहती है। इसे ‘ब्राउनफील्ड’ रणनीति कहा गया जिससे जमीन का सही उपयोग होगा और पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा। सरकार ने कुछ शहरों में हर हफ्ते लगने वाला हाट भी बनाने का फैसला किया है ताकि छोटे दुकानदारों को मदद मिल सके। इसके लिए सरकार ने कुछ शहरों में 100 साप्ताहिक हाट बनाने का फैसला भी किया है।
भारतीय शहरों को आर्थिक विकास के इंजन में बदलने के लिए सरकार ने बुनियादी ढांचे, टिकाऊपन, समावेशी और शासन सुधारों के संतुलन जैसे पहलुओं पर जोर दिया है। अपने बजट भाषण के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बात पर जोर दिया कि शहरी शासन में डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे को लागू करने की प्रक्रिया को मुख्यधारा में लाया जाए। सरकार ने भूमि प्रशासन, योजना और प्रबंधन के साथ-साथ शहरी नियोजन और उपनियम तैयार करने की प्रक्रिया बढ़ाकर भूमि प्रबंधन को प्राथमिकता दी है और ये अगले तीन वर्षों के भीतर हासिल किए जाने वाले लक्ष्य हैं।
शहरी स्थानीय निकायों पर राजकोषीय बोझ कम करने के लिए, कर प्रशासन और भूमि रिकॉर्ड प्रबंधन के लिए एक उन्नत आईटी-आधारित प्रणाली के माध्यम से सुधार करने पर भी जोर डाला गया है। शहरों को अधिक रहने योग्य बनाने और नागरिकों की सुगमता को बढ़ावा देने के लिए, 30 लाख से अधिक आबादी वाले 14 बड़े शहरों के लिए यातायात केंद्रित विकास योजनाएं तैयार करने के साथ लागू भी की जाएंगी। इसके अलावा, किराये के घरों के बाजार में पारदर्शिता लाने की कोशिश की जाएगी और ऐसे घरों की संख्या बढ़ाई जाएगी। इसमें औद्योगिक श्रमिकों के लिए साझा स्तर पर रहने की जगहें भी शामिल हैं।
हालांकि, तेजी से शहरीकरण को अपनाने वाले हमारे देश के लिए, शहरी विकास की ओर इस तरह के समग्र प्रयास किया जाना आवश्यक है। इसके अलावा जलवायु-प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे पर आवश्यक रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियां अक्सर हमारे शहरों को पूरी तरह से ठप कर देती हैं।
शहरी निवासियों के रहन-सहन में सुगमता को बढ़ावा देने के लिए, भ्रष्टाचार से बचने के लिए शहरी शासन की प्रशासनिक प्रक्रिया पर कड़ा नियंत्रण किया जाना चाहिए। भूमि प्रबंधन, अवैध संरचनाओं या जबरन भूमि पर कब्जा जैसी समस्याओं पर भी विमर्श किया जाना चाहिए जिसकी परिणति अक्सर संघर्ष और हिंसा में होती है।
किराये के घरों के नियमों में बदलाव के साथ ऐसे कानून भी होने चाहिए जो यह सुनिश्चित करें कि जमीन मालिकों का किरायेदारों के प्रति क्या कर्तव्य और जिम्मेदारी है। सस्ते घर तब तक नहीं मिल सकते जब तक कि किराये को नियंत्रित करने के प्रभावी नियम न हों। हालांकि इन बातों पर बजट में चर्चा नहीं हुई, इसका मतलब यह नहीं कि इससे जुड़े हितधारक भविष्य में इन मुद्दों के बारे में बात नहीं की कर सकते हैं।
भारत@100 के दृष्टिकोण के लिहाज से शहरी विकास सबसे महत्त्वपूर्ण पहलुओं में से एक है। एक उच्च-आय वाले देश बनने के लिए हम जिस तरह के आर्थिक विकास का अनुमान लगा रहे हैं वह तभी हासिल किया जा सकता है जब हमारे शहरों की योजना कुछ इस तरह बनाई जाए कि उनकी अधिकतम क्षमता पर काम किया जा सके। ऐसी रणनीतियों के लिए हमें शहरी स्थानों में हाशिये पर रहने वाले समुदायों में भी निवेश करने की आवश्यकता है ताकि वे आर्थिक लाभ से वंचित न रहें।
विश्व बैंक का कहना है कि वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 80 प्रतिशत से अधिक हिस्सा शहरों में सृजित होता है ऐसे में बेहतर योजना के साथ शहरीकरण की प्रक्रिया न केवल सतत विकास को बढ़ावा दे सकती है बल्कि उत्पादकता और नवाचार भी बढ़ा सकती है।
इसके अतिरिक्त, विश्व बैंक द्वारा यह उल्लेख किया गया है कि 2047 तक आवश्यक शहरी बुनियादी ढांचे का लगभग 70 प्रतिशत अभी बनाया जाना है ऐसे में सरकार को औसतन सकल घरेलू उत्पाद का 1.2 प्रतिशत सालाना निवेश बढ़ाने की आवश्यकता है। हम उस लक्ष्य से बहुत पीछे हैं और आगे बढ़ने के लिए हमें शहरी विकास में सार्वजनिक और निजी निवेश दोनों के विकल्पों को अपनाना होगा।
(कपूर इंस्टीट्यूट फॉर कंपेटटिवनेस इंडिया के अध्यक्ष और देवरॉय प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष हैं। लेख में जेसिका दुग्गल का भी योगदान)