भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने बुधवार को कहा था कि वित्त वर्ष 2022-23 की आर्थिक वृद्धि दर 7 प्रतिशत के आधिकारिक अनुमान से अधिक रह सकती है।
इससे संबंधित आंकड़े अगले सप्ताह जारी होंगे और उसके बाद ही वित्त वर्ष 2022-23 में अर्थव्यवस्था की गति का पता लग पाएगा।
मगर मध्यम अवधि में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर के परिदृश्य पर चर्चा करना अधिक सार्थक होगा। इसका कारण यह है कि आगे चलकर वैश्विक अर्थव्यवस्था की विकास दर सुस्त रह सकती है और वित्तीय स्थिति भी उतनी अनुकूल नहीं रहने वाली है। काफी हद तक मध्यम अवधि में वृद्धि दर वास्तविक निवेश की निरंतरता पर निर्भर करेगी।
इस संदर्भ में प्रत्यक्ष विदेश निवेश (FDI) महत्त्वपूर्ण होगा। मगर इस मोर्चे पर जो खबरें आ रही हैं वे उत्साह बढ़ाने वाली तो नहीं कही जा सकतीं। आरबीआई ने अपने नवीनतम मासिक बुलेटिन में कहा है कि वर्ष 2022-23 में सकल एफडीआई सालाना आधार पर 16.3 प्रतिशत कम होकर 71 अरब डॉलर रह गया। शुद्ध एफडीआई 27 प्रतिशत से अधिक गिरावट के साथ घट कर 28 अरब डॉलर पर आ गया। सकल निवेश में कमी और रकम की निकासी इसके प्रमुख कारण रहे।
आरबीआई के अनुसार पिछले वित्त वर्ष की तुलना में विनिर्माण, कंप्यूटर सेवाओं और संचार सेवाओं में विदेशी निवेश में भारी गिरावट दर्ज की गई। अमेरिका, स्विट्जरलैंड और मॉरीशस से आने वाले निवेश में सबसे अधिक गिरावट देखी गई। विस्तृत आंकड़े उपलब्ध होने पर स्थिति और अधिक स्पष्ट हो पाएगी।
एक अच्छी बात यह रही कि 2022 में अमेरिका के बाद भारत के सेमीकंडक्टर क्षेत्र में सबसे अधिक एफडीआई आया। मगर इन आंकड़ों का विश्लेषण सावधानी से करना होगा। निकट भविष्य में एफडीआई को लेकर संभावनाएं कमजोर दिख रही हैं।
सुस्त और रुझान से कमजोर वैश्विक आर्थिक वृद्धि दर दीर्घ अवधि में पूंजी की उपलब्धता पर असर डालेंगे और इस बात की भी आशंका है कि दुनिया की बड़ी कंपनियां अपनी क्षमता बढ़ाने को लेकर उत्साह नहीं दिखाएंगी। वैश्विक आर्थिक हालात कमजोर होने का असर भी एफडीआई पर होगा।
उदाहरण के लिए स्टार्टअप इकाइयों के लिए विदेशी निवेश जुटाना अब मुश्किल हो गया है जबकि पहले उनके लिए बाहर से रकम जुटाना काफी आसान हुआ करता था। विकसित देशों, खासकर अमेरिका में ऊंची महंगाई दर को देखते हुए आने वाले दिनों में वित्तीय हालात कठिन रह सकते हैं।
एक चिंता की बात यह भी है कि दुनिया की शीर्ष कंपनियां चीन से अपनी आपूर्ति व्यवस्था दूर अवश्य ले जा रही हैं मगर इससे भारत को उतना बड़ा लाभ नहीं मिल रहा है जितनी अपेक्षा की गई थी।
एफडीआई में कमी आने के कई परिणाम दिखेंगे। इससे निवेश प्रभावित होगा जिसका सीधा प्रभाव आर्थिक वृद्धि एवं रोजगार सृजन पर होगा। विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने साथ नई तकनीक लेकर भी आती हैं जिससे संपूर्ण अर्थव्यवस्था की क्षमता बढ़ाने में मदद मिलती है। चूंकि, एफडीआई दीर्घ अवधि के लिए होता है इसलिए यह बाह्य खातों को भी स्थिर रखता है। हालांकि, इस वित्त वर्ष में चालू खाते का घाटा कम होकर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 2 प्रतिशत रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है।
वित्त वर्ष 2022-23 में यह 2.6 प्रतिशत रहा था। चालू खाते का घाटा कम रहने से मदद अवश्य मिलेगी। अच्छी बात यह है कि भारत में विदेशी मुद्रा भंडार पर्याप्त हैं इसलिए बाह्य खाते फिलहाल अर्थव्यवस्था के लिए जोखिम का कारण नहीं लग रहे हैं।
मगर इतना तो निश्चित है कि सरकार को एफडीआई बढ़ाने के लिए अधिक प्रयास करने होंगे। इसके लिए भारत में कारोबार सुगमता बढ़ानी होगी। बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित करने के लिए भारत में एक स्पष्ट नीति होनी चाहिए। व्यक्तिगत कंपनियों के लिए रियायत समाप्त की जानी चाहिए क्योंकि इससे उलझन की स्थिति बनती है।
सरकार को इस बात की भी समीक्षा करनी होगी कि व्यापार नीतियां एफडीआई की राह में अड़चन तो नहीं पैदा कर रही हैं। ऊंचे शुल्क लागत बढ़ाते हैं और आधुनिक आपूर्ति व्यवस्था में वस्तुओं के आयात-निर्यात को प्रभावित करते हैं।