भारत के लगभग हर कोने से भ्रष्टाचार की कहानियां मुख्यधारा की मीडिया और सोशल मीडिया दोनों में नियमित रूप से सामने आती हैं। ऐसे ही कुछ उदाहरणों पर गौर करें:
भारत में भ्रष्टाचार कोई नई घटना नहीं है और न ही यह केवल भारत तक सीमित है बल्कि वास्तव में, भ्रष्टाचार दुनिया भर में पाया जाता है। हालांकि, जैसे-जैसे देश विकास की सीढ़ी पर चढ़ते हैं, भ्रष्टाचार आमतौर पर कम होता जाता है। भारत आजादी की अपनी 100वीं वर्षगांठ मनाने के वक्त तक एक विकसित राष्ट्र बनने की आकांक्षा भी रखता है इसलिए उसे इस स्थानिक समस्या से निपटना ही होगा। यह देश की विकास की आकांक्षाओं को जो नुकसान पहुंचा रहा है, उसे अनदेखा करना बहुत बड़ी भूल होगी।
1990 के दशक से, कई शोधकर्ताओं ने भ्रष्टाचार के देश की आर्थिक वृद्धि पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया है। अध्ययनों से यह बात साबित हुई है कि भ्रष्टाचार वास्तव में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करने, निजी निवेश, रोजगार सृजन और आय समानता के लिए कितना हानिकारक है। कुछ शोधकर्ताओं ने दिखाया है कि कैसे भ्रष्टाचार खराब गुणवत्ता वाले उत्पादों और सेवाओं, नागरिकों के लिए जीवन की निम्न गुणवत्ता और कुछ कंपनियों के ताकतवर समूह के दबदबे को बढ़ावा देता है।
कुछ दूसरे शोधकर्ताओं ने इस बात की ओर इशारा किया कि भ्रष्टाचार के कारण सब्सिडी उन लाभार्थियों तक नहीं पहुंच पाती है जिन्हें देने का मकसद होता है। इसके कारण सामाजिक सुरक्षा जाल निष्प्रभावी हो जाते हैं और बेहद गरीब व सबसे कमजोर लोगों की चुनौतियां और भी बढ़ जाती हैं। वर्ष 2022 में, ई. स्पाइरोमित्रोस और एम पैनागियोटिडिस के एक शोध पत्र में अनुभवजन्य अध्ययनों से पता चला है कि भ्रष्टाचार सूचकांक में महज एक फीसदी की वृद्धि प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद को 0.15 से 1.5 फीसदी तक कम कर सकती है।
ट्रांसपेरेंसी इंटरनैशनल के व्यापक रूप से माने जाने वाले भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक के अनुसार, भारत ने वर्ष 2024 में 100 में से 38 अंक हासिल किए, जिससे भ्रष्टाचार के मामले में यह 180 देशों में 96वें स्थान पर रहा। 38 का यह स्कोर वर्ष 2012 और 2013 में संगठन द्वारा भारत को दिए गए स्कोर से मामूली बेहतर था लेकिन 2014 के स्कोर के समान था। वर्ष 2014 और 2023 के बीच कुछ सुधार हुआ था लेकिन उनके सर्वेक्षण से पता चला कि भारत फिर से पिछड़ने लगा है।
इस बीच, विश्व बैंक के भ्रष्टाचार नियंत्रण सूचकांक ने 2023 में भारत को उतना ही निराशाजनक स्थान दिया (वर्ष 2024 के डेटा का अभी संकलन नहीं हुआ है)। भारत ने 0 से 100 के पैमाने पर 42 अंक हासिल किए जहां 0 सबसे भ्रष्ट और 100 सबसे कम भ्रष्ट है। विश्व बैंक की सूची में यह 193 देशों में 108वें स्थान पर रहा। डेनमार्क सबसे कम भ्रष्ट देश था।
भ्रष्टाचार के हानिकारक प्रभावों को शोध के माध्यम से काफी अच्छी तरह से स्थापित किया गया है, लेकिन इसे कैसे कम किया जाए, इस पर कम सहमति है। कुछ शोधकर्ताओं ने इसे संगठित रूप देने की परिकल्पना भी सामने रखी है कि कुछ भ्रष्टाचार कुछ खास मामलों में मदद कर सकता है, लेकिन अधिकांश शोधकर्ता इसके विपरीत निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। यह सर्वविदित है कि अधिकांश विकसित अर्थव्यवस्थाओं में बहुत कम भ्रष्टाचार है, हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि क्या विकास स्वचालित रूप से कम भ्रष्टाचार की स्थिति पैदा करता है या कम भ्रष्टाचार किसी देश को विकास की सीढि़यों की ओर ले जाता है। सहज ज्ञान कहता है कि बाद वाला अधिक संभावित है।
भारत में भ्रष्टाचार को कैसे कम किया जाए? कुछ विद्वान और प्रभावशाली व्यक्ति कहते हैं कि शिक्षा में, खासकर प्राथमिक स्तर से ही नैतिकता और सदाचार की एक मजबूत नींव, इस दिशा में मददगार साबित हो सकती है। हालांकि यह भी एक परिकल्पना ही है।
आपके इस स्तंभकार का मानना है कि तीन चीजें भ्रष्टाचार को कम करने में मदद कर सकती हैं। पहला, नियामकीय जटिलता को हर क्षेत्र में सरल बनाना, चाहे वह भूमि अधिग्रहण हो या सीमा शुल्क से जुड़ा वर्गीकरण हो। इससे अफसरशाही की मदद लेने के अवसर कम होंगे।
दूसरा, मजबूत सुरक्षा कवच कम करना होगा जिसका लाभ अफसरशाह, खासकर वरिष्ठ अधिकारी, जांच और मुकदमे के खिलाफ उठाते हैं। आज, जब तक सरकार मुकदमा चलाने की मंजूरी नहीं देती है तब तक कोई भ्रष्ट अधिकारी भी काफी हद तक सुरक्षित रहता है और सतर्कता विभागों को अक्सर ऐसी मंजूरी हासिल करना बहुत कठिन लगता है।
हालांकि ये सुरक्षा अच्छे इरादों से तय की गई थी ताकि अफसरशाहों को उनके पेशेवर कर्तव्यों के दौरान लिए गए निर्णयों के लिए गलत तरीके से दोषी ठहराए जाने से बचाया जा सके। लेकिन समय के साथ इनका विपरीत प्रभाव पड़ा है। शायद अब एक आय और संपत्ति ऑडिट की आवश्यकता है जो हर 10 साल में किया जाना चाहिए और यह उन अधिकारियों के खिलाफ स्वचालित जांच और मुकदमे को मंजूरी दे जिनकी संपत्ति का स्रोत आय, निवेश रिटर्न या विरासत के आधार पर साबित न किया जा सके।
अंत में, कानूनी प्रणाली में बड़े बदलाव की आवश्यकता है ताकि भ्रष्टाचार के मामले तीन दशक या उससे अधिक समय तक न खिंचें। भारत यदि एक विकसित देश बनना चाहता है तो इसे भ्रष्टाचार से निपटना होगा, लेकिन इसके लिए केंद्र और राज्य स्तर पर सरकारों को कठिन फैसले लेने होंगे भले ही वे राजनीतिक रूप से जोखिम भरे हों।
(लेखक प्रौजैकव्यू के संपादक तथा बिजनेस टुडे और बिजनेसवर्ल्ड के पूर्व संपादक हैं)