facebookmetapixel
बिहार चुनाव पर भाकपा माले के महासचिव दीपंकर का बड़ा आरोप: राजग के तीन ‘प्रयोगों’ ने पूरी तस्वीर पलट दीदोहा में जयशंकर की कतर नेतृत्व से अहम बातचीत, ऊर्जा-व्यापार सहयोग पर बड़ा फोकसझारखंड के 25 साल: अधूरे रहे विकास के सपने, आर्थिक क्षमताएं अब भी नहीं चमकींपूर्वी उत्तर प्रदेश के किसानों को भाने लगी ‘काला नमक’ चावल की खेती, रिकॉर्ड 80 हजार हेक्टेयर में हुई बोआईभूख से ब्रांड तक का सफर: मुंबई का वड़ा पाव बना करोड़ों का कारोबार, देशभर में छा रहा यह देसी स्ट्रीट फूडDPDP नियमों से कंपनियों की लागत बढ़ने के आसार, डेटा मैपिंग और सहमति प्रणाली पर बड़ा खर्चजिंस कंपनियों की कमाई बढ़ने से Q2 में कॉरपोरेट मुनाफा मजबूत, पर बैंकिंग और IT में सुस्ती जारीबिहार चुनाव में NDA की प्रचंड जीत: अब वादों पर अमल की चुनौती विकसित भारत को स्वच्छ प्रणाली की आवश्यकता: विकास भ्रष्टाचार से लड़ने पर निर्भर करता हैअगर कांग्रेस भाजपा से आगे निकलना चाहती है तो उसे पहले थोड़ी विनम्रता दिखानी होगी

भूख से ब्रांड तक का सफर: मुंबई का वड़ा पाव बना करोड़ों का कारोबार, देशभर में छा रहा यह देसी स्ट्रीट फूड

मुंबई महानगर में ही इसके 20,000 से ज्यादा स्टॉल हैं, जहां सुबह से शाम तक मेहनत करने वाले अच्छा खासा कमाते भी हैं

Last Updated- November 16, 2025 | 10:04 PM IST
vada pav
प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो

मुंबई के गली-कोनों में मिलने वाला वड़ा पाव अरसे से लाखों लोगों को रोजगार दे ही रहा था, अब यह देश के दूसरे कोनों में ब्रांड का चोला पहनकर पहुंच गया है। गरमागरम आलू वड़े और मुलायम ब्रेड पाव के मिलन से बना यह स्ट्रीट फूड देश के दूसरे शहरों की सड़कों और मॉल्स में भी मिल जाता है।

मुंबई महानगर में ही इसके 20,000 से ज्यादा स्टॉल हैं, जहां सुबह से शाम तक मेहनत करने वाले अच्छा खासा कमाते भी हैं। वड़ा पाव की रेहड़ी लगाने वाले बताते हैं कि लागत और तमाम खर्च निकालने के बाद एक वड़ा पाव पर उनके करीब 8 रुपये बच जाते हैं। इस अनौपचारिक उद्योग के मोटे अनुमान के मुताबिक इस कारोबार से रोजाना 1.6 करोड़ रुपये का कारोबार होता है। मगर महंगाई के दौर में ग्राहकों को बांधकर रखने के लिए और बर्गर जैसे फास्ट फूड का सामना करने के लिए बटर वड़ा पाव, ग्रिल्ड पनीर वड़ा पाव, मिर्ची वड़ा पाव जैसे प्रयोग भी किए जा रहे हैं।

इस सबके बाद भी बर्गर का सामना करना वड़ा पाव के लिए आसान नहीं रहा है। यही कारण है कि वड़ा पाव को संगठित कारोबार के जरिये दूसरे शहरों में ले जाने वाले जंबो किंग वड़ा पाव जैसे ब्रांड भी इससे तौबा कर रहे हैं। इस ब्रांड की शुरुआत करने वाले धीरज गुप्ता ने 2017 में तौबा कर अंतरराष्ट्रीय शैली के बर्गर की शुरुआत कर दी और कंपनी का नाम जंबो किंग बर्गर्स हो गया। गुप्ता कहते हैं कि दिल्ली और हैदराबाद जैसे शहरों में लोग वड़ा पाव को जानते तो हैं मगर उसके लिए मुंबई जैसी दीवानगी नहीं है। इसीलिए वहां वड़ा पाव खास मौकों पर खाया जाता है, रोजमर्रा के भोजन में नहीं। इसके उलट बर्गर अंतरराष्ट्रीय व्यंजन है, जो गली-गली में मशहूर है। साथ ही उसमें मार्जिन भी अधिक है। इसीलिए वड़ा पाव से उनकी कंपनी बर्गर पर आ गई। मुंबई महानगरीय क्षेत्र में उनके 115 आउटलेट हैं और दिल्ली, हैदराबाद, बेंगलूरु तथा पुणे जैसे शहरों में भी उनकी मौजूदगी है।

गोली वड़ा पाव कंपनी के संस्थापक वेंकटेश अय्यर की इच्छा वड़ा पाव को वैश्विक बनाने की है। विस्तार में जुटी आराम वड़ा पाव के कौस्तुभ तांबे कहते हैं कि हर आउटलेट पर एक जैसा स्वाद देने के लिए उनकी कंपनी अपने किचन का विस्तार कर रही है। मगर जंबो किंग को उसके बजाय बर्गर में ही फायदा दिख रहा है क्योंकि उसे दुनिया भर में बढ़ाया जा सकता है। बड़ी फूड चेन को छोड़ दें तो मुंबई में गली-नुक्कड़ से वड़ा पाव के ठेले गायब होते जा रहे हैं। करीब 45 साल तक वड़ा पाव का व्यापार करने वाले आजाद हॉकर्स यूनियन के महासचिव जय शंकर सिंह नगर पालिका को इसके लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। उनका कहना है कि हफ्ता वसूलने के चक्कर में उसके कर्मचारी अक्सर ठेले तोड़ देते हैं या सामान जब्त कर लेते हैं। उनकी और दूसरे विक्रेताओं की शिकायत है कि ऐसा ही चलता रहा तो वड़ा पाव मुंबई से भी गायब हो जाएगा।

भूख, गरीबी से निकला वड़ा पाव

वड़ा पाव आज बेशक शौक से खाया जाए मगर इसकी ईजाद गरीबी और भूख से हुई थी। पहले मुंबई में केवल वड़ा खाया जाता था, जिसे अक्सर लोग रोटी के साथ खाते थे। मगर मिल में काम करने वालों की बड़ी तादाद ने कम पैसे में पेट भरने के पाव के साथ वड़ा खाना शुरू कर दिया। इस तरह 1978 में 25 पैसे में वड़ा पाव मिलना शुरू हो गया, जिसकी कीमत आज 20 रुपये से 30 रुपये तक हो गई है।

बताते हैं कि दादर के अशोक वैद्य ने 1978 में दादर रेलवे स्टेशन के बाहर पहला वड़ा पाव स्टॉल लगाया था। लगभग उसी समय कारोबार शुरू करने वाले सुधाकर म्हात्रे को भी कुछ लोग इसका जनक बताते हैं। लेकिन दावा यह भी है कि कल्याण का खिड़की वड़ा पाव ही मुंबई का पहला वड़ा पाव था, जहां 1960 के दशक के अंत में वाझे परिवार ने अपने मकान की खिड़की से वड़ा पाव बेचना शुरू किया था। वैद्य ने अपने फूड स्टॉल पर आलू भाजी और चपाती खाने वालों के सामने नया व्यंजन परोसा। उन्होंने आलू भाजी को बेसन में लपेटकर तला और चपाती की जगह पाव रख दिया। इसके साथ ही वड़ा पाव मशहूर हो गया। इसके बाद मिलें बंद होने से बेरोजगार हो रहे कई लोगों ने रोजी रोटी के लिए वड़ा पाव बेचना शुरू कर दिया। 

First Published - November 16, 2025 | 10:04 PM IST

संबंधित पोस्ट