उम्दा खुशबू और स्वाद के लिए देश-दुनिया में मशहूर ‘काला नमक’ चावल की खेती पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसानों को भाने लगी है। योगी आदित्यनाथ सरकार की एक जिला-एक उत्पाद (ओडीओपी) योजना में शामिल होने और भौगोलिक संकेतक (जीआई) मिलने के बाद पूर्वी उत्तर प्रदेश के 11 जिलों में काला नमक की खेती का रकबा साल दर साल बढ़ता जा रहा है। ऑनलाइन प्लेटफार्मों के साथ ही बड़े डिपार्टमेंटल स्टोरों में भी इसकी बिक्री होने के कारण पिछले पांच साल में इसकी फसल का रकबा बढ़ा है और ज्यादा से ज्यादा किसान अब चावल की इस किस्म की खेती कर रहे हैं। आलम यह है कि कि पांच साल पहले तक बमुश्किल 20 से 22 हजार हेक्टेयर में बोए जाने वाले काला नमक चावल की बोआई इस बार 80,000 हेक्टेयर में हुई है।
पूर्वी यूपी के सिद्धार्थनगर, श्रावस्ती, गोंडा, बलरामपुर, बहराइच, बस्ती, कुशीनगर, देवरिया, गोरखपुर, महराजगंज और संतकबीरनगर जिलों में काला नमक की खेती की जाती है। उचित प्रोत्साहन की कमी, कम उपज, पानी की अधिक जरूरत और सही बाजार न मिलने के कारण किसानों का इससे मोहभंग होने लगा था। मगर पिछले कुछ साल में तस्वीर बदली है और आज उन्नत किस्म के और कम पानी में भी पैदा होने वाले काला नमक धान की जमकर बोआई की जा रही है।
कभी पूर्वी उत्तर प्रदेश के करीब एक दर्जन जिलों में जम कर बोया जाने वाला काला नमक कम पैदावार, अधिक मेहनत और नाकाफी दाम के कारण लुप्त होने लगा था। इसीलिए दस साल पहले काला नमक की खेती केवल सिद्धार्थनगर, संतकबीर नगर, बस्ती और महराजगंज जैसे चंद जिलों में सिमट गई थी और उसका रकबा 20,000 हेक्टेयर से भी कम रह गया था। मगर काला नमक के औषधीय गुण सामने आने और ऑनलाइन प्लेटफार्मों के बढ़ते चलन के कारण पिछले कुछ साल में इसकी मांग बढ़ने लगी। मांग बढ़ने, वाजिब कीमत मिलने और पूसा इंस्टीट्यूट व नरेंद्रदेव कृषि विश्वविद्यालय द्वारा खोजी गई उन्नत किस्मों के बीज उपलब्ध होने से एक बार फिर यह किसानों की पसंदीदा धान की फसल बना दिया है। कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इस बार रिकॉर्ड रकबे में काला नमक की बोआई हुई है। पिछले साल इसे 72,000 हेक्टेयर में बोया गया था, जो आंकड़ा इस साल 80,000 हेक्टेयर तक पहुंच गया है।
सिद्धार्थनगर के काला नमक चावल को हाल ही में केंद्र सरकार से राष्ट्रीय ओडीओपी पुरस्कार मिला है। जीआई टैग मिलने के बाद से प्रोत्साहन में जुटी योगी सरकार काला नमक को कई देसी-विदेशी मंचों तक पहुंचा चुकी है। काला नमक पर शोध व विकास के लिए सिद्धार्थनगर जिले में एक केंद्र की स्थापना का प्रस्ताव किया गया है। स्थानीय किसानों का कहना है कि किसान से जैविक, सीधे खेत से जैसे प्लेटफार्मों के अलावा एमेजॉन व फ्लिपकार्ट आदि पर भी काला नमक चावल उपलब्ध है। कई युवा किसान व उद्यमी सीधे ऑनलाइन व मोबाइल के जरिये बिक्री कर रहे हैं। सहज उपलब्धता के चलते न केवल किसानों को अच्छी कीमत मिलने लगी बल्कि इसकी पहुंच भी दूर-दूर तक हो रही है। किसानों को काला नमक चावल की कीमत 120 से 160 रुपये किलो के बीच मिल रही है, जो पूर्वी उत्तर प्रदेश में पैदा होने वाली किसी भी तरह की किस्म के मुकाबले दोगुनी है।
सिद्धार्थनगर जिले के बांसी के स्थानीय किसान संजय सिंह बताते हैं कि नरेंद्र काला नमक और पूसा नरेंद्र काला नमक-1 प्रजाति के बीज बीते कुछ सालों में विकसित किए गए हैं, जो अच्छी उपज दे रहे हैं। इन दोनों किस्मों की पैदावार 40 से 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है जो पारंपरिक पुराने बीजों की तुलना में दोगुनी है। काला नमक की इन नई प्रजातियों को कम पानी में भी उगाया जा सकता है। मगर उनका यह भी कहना है कि बारिश के पानी पर निर्भर रहने वाली इस फसल के लिए धान की सामान्य प्रजातियों से अधिक पानी की आवश्यकता होती है। इसके अलावा किसानों के लिए एक बड़ी राहत नई उन्नत प्रजातियों के तैयार होने में लगने वाला कम समय है। पहले की किस्मों को तैयार होने में 6 महीने से अधिक का समय लगता था मगर नई किस्मों की फसल 5 महीने में ही पक जाती है।
वैज्ञानिक शोध साबित कर चुके हैं कि काला नमक चावल का ग्लाइसेमिक इंडेक्स दूसरी किस्मों के मुकाबले काफी कम (49 से 52 फीसदी) होता है, जो इसे मधुमेह के रोगियों के लिए मुफीद बनाता है। इसके अलावा इसमें प्रोटीन व जिंक किसी भी अन्य चावल की तुलना में अधिक होता। यह अकेला चावल है, जिसमें बीटा कैरोटिन के रूप में विटामिन ए पाया जाता है। इस कारण यह आंखों के लिए बहुत अच्छा होता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है। काला नमक में एंथ्रोसाइनिन नाम के ऐंटी-ऑक्सिडेंट की मौजूदगी शरीर में फ्री रेडिकल्स को कम करने में मदद करती है। इसके अलावा काला नमक की सबसे बड़ी खासियत इसका ग्लूटन फ्री होना है, जिसके कारण यह दिल की बीमारियों से ग्रस्त लोगों और मोटापा कम करने की कोशिश में जुटे लोगों के लिए जरूरी आहार बन जाता है।