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Bihar Election Result: बिहार में NDA की जोरदार वापसी, किसानों के लिए किए बड़े वादों पर अब सबकी नजरें

बिहार एक ऐसा राज्य है जहां खेती ही ज्यादातर लोगों की रोजी-रोटी है, छोटे-छोटे खेतों वाले किसान यहां की कृषि की रीढ़ हैं

Last Updated- November 14, 2025 | 5:33 PM IST
Indian Farmer
प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो

बिहार में NDA की जोरदार वापसी के बाद अब सबकी नजरें इस बात पर टिकी हैं कि सरकार राज्य के किसानों से किए वादों को कैसे पूरा करती है। खास तौर पर पीएम-किसान की किश्तों को सालाना तीन हजार रुपये तक बढ़ाने और धान, गेहूं, मक्का व दालों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी देने का वादे पर। MSP को पंचायत स्तर पर खरीद के जरिए लागू करने की बात कही गई है।

बिहार एक ऐसा राज्य है जहां खेती ही ज्यादातर लोगों की रोजी-रोटी है। छोटे-छोटे खेतों वाले किसान यहां की कृषि की रीढ़ हैं। साल 2015-16 के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में कुल खेती योग्य जमीन का करीब 97 फीसदी हिस्सा छोटे और सीमांत किसानों के पास है। देश भर में यह आंकड़ा 86.1 फीसदी था। यानी बिहार में छोटे किसानों की तादाद राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा है।

छोटे खेत, बड़ी मुश्किलें

स्टेट लेवल बैंकर्स कमिटी की रिपोर्ट बताती है कि बिहार में औसत खेत का आकार सिर्फ 0.39 हेक्टेयर है। सीमांत किसानों के लिए यह और कम होकर 0.25 हेक्टेयर रह जाता है। पूरे देश में यह आंकड़ा क्रमशः 1.08 हेक्टेयर और 0.38 हेक्टेयर है। जाहिर है, बिहार के किसान एक हेक्टेयर से कम जमीन पर खेती करते हैं। ऐसे में उनकी आमदनी भी सीमित रहती है।

राज्य में पीएम-किसान योजना के तहत करीब 75 लाख किसान पंजीकृत हैं। ये वो लोग हैं जो साल में छह हजार रुपये की केंद्रीय मदद पाते हैं। लेकिन छोटी जोत के चलते बटाईदारी या किराए पर खेती करना यहां आम बात है। आधिकारिक आंकड़े दिखाते हैं कि 2012-13 से 2018-19 के बीच बिहार में बटाईदारी 22.67 फीसदी से बढ़कर 25.1 फीसदी हो गई। देश भर में यह बढ़ोतरी 10.88 फीसदी से 13 फीसदी तक रही। यानी बिहार में हर चार में से एक किसान किराए की जमीन पर खेती करता है।

ऐसे में पीएम-किसान की रकम बटाईदारों तक पहुंचाना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। NDA ने वादा किया है कि ‘कर्पूरी ठाकुर किसान सम्मान निधि’ के तहत केंद्रीय मदद के ऊपर अतिरिक्त तीन हजार रुपये सालाना दिए जाएंगे। लेकिन बटाईदारों का नाम योजना में शामिल करना आसान नहीं होगा, क्योंकि ज्यादातर के पास जमीन के कागजात नहीं होते।

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खेती की हालत और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी

रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, 2023-24 में बिहार का कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में सकल मूल्य संवर्धन (GVA) करीब 45,85,281 लाख रुपये रहा। यह आंकड़ा मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे बड़े कृषि राज्यों से काफी कम है। बल्कि यह हरियाणा और ओडिशा के करीब है।

राज्य में कुल बोई गई जमीन 2022-23 में 5.11 मिलियन हेक्टेयर थी, जिसमें से 3.12 मिलियन हेक्टेयर पर सिंचाई की सुविधा थी। फसल घनत्व 142 फीसदी है, जो राज्य के छोटे आकार को देखते हुए काफी अच्छा है। यानी किसान एक ही जमीन पर साल में डेढ़ फसल उगाते हैं। लेकिन छोटे खेत और बटाईदारी के चलते उत्पादन का पूरा फायदा किसानों को नहीं मिल पाता।

बिहार सब्जियों और फलों का बड़ा उत्पादक है। 2023-24 में यहां करीब 17 मिलियन टन सब्जियां और 4.5 मिलियन टन फल पैदा हुए। लेकिन कोल्ड स्टोरेज की क्षमता सिर्फ 1.5 मिलियन टन है। यानी ज्यादातर उत्पाद सड़ जाता है या सस्ते में बिक जाता है। NDA ने वादा किया है कि कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए 1 लाख करोड़ रुपये निवेश किए जाएंगे। इसमें कोल्ड स्टोरेज, गोदाम और प्रोसेसिंग यूनिट शामिल हैं।

मछली, दूध और मंडी का मसला

NDA ने मछुआरों के लिए ‘जुब्बा साहनी मत्स्य पालक सहायता योजना’ के तहत हर महीने 2,500 रुपये देने का वादा किया है। साथ ही बिहार मिशन ऑन फिशरीज बनाकर मछली निर्यात दोगुना करने की बात कही गई है। दूध के लिए ब्लॉक स्तर पर मिल्क मिशन और चिलिंग-प्लांट लगाने का वादा है।

2022-23 में बिहार में दूध उत्पादन 12.5 मिलियन टन था, जो पिछले नौ साल में 3.8 फीसदी की सालाना दर से बढ़ा है। लेकिन दूध की प्रोसेसिंग और मार्केटिंग अभी कमजोर है। मछली पालन में भी संभावनाएं हैं, लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी बाधा है।

सबसे पेचीदा वादा है पंचायत स्तर पर MSP की गारंटी। बिहार में 2006 में कृषि उपज मंडी समिति (APMC) कानून खत्म कर दिया गया था। उस वक्त 95 APMC थे, जिनमें 54 के पास अपनी मार्केट यार्ड थी और 41 किराए के भवन में चल रहे थे। कानून खत्म होने के बाद 41 APMC बंद हो गए। बचे 54 भी बदहाल हैं। इन पर अब प्रशासक नियुक्त हैं और सब-डिविजनल ऑफिसर इनकी देखरेख करते हैं।

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केंद्र सरकार के 2024 के ड्राफ्ट नीति दस्तावेज में बिहार की मंडियों को बदहाली का उदाहरण बताया गया है। कहा गया है कि फल, सब्जी और मखाना की प्रोसेसिंग के लिए मार्केटिंग सिस्टम सुधारना जरूरी है। इससे किसानों को बेहतर दाम मिलेंगे और गांवों में रोजगार बढ़ेगा।

पंचायत स्तर पर खरीद केंद्र बनाने का मतलब है कि हर गांव में सरकारी खरीद की व्यवस्था हो। लेकिन इसके लिए गोदाम, परिवहन और स्टाफ की जरूरत पड़ेगी। बिना मंडी के यह सिस्टम कैसे चलेगा, यह बड़ा सवाल है। NDA ने चार फसलों – धान, गेहूं, मक्का और दाल – के लिए यह वादा किया है। लेकिन बिना मजबूत तंत्र के यह सिर्फ कागजों पर रह सकता है।

First Published - November 14, 2025 | 5:30 PM IST

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