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Decoded: 8वें वेतन आयोग से कर्मचारी और पेंशनरों की जेब पर क्या असर?

केंद्र सरकार ने 8वीं केंद्रीय वेतन आयोग (8th CPC) के टर्म्स ऑफ रेफरेंस को मंजूरी दी है, जो केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनर्स के वेतन, भत्तों और पेंशन लाभों की समीक्षा करेगा।

Last Updated- November 15, 2025 | 9:43 AM IST
8th pay commission
Representative Image

8th Pay Commission: केंद्र सरकार ने 28 अक्टूबर को 8वीं केंद्रीय वेतन आयोग (8th CPC) के टर्म्स ऑफ रेफरेंस (ToR) को मंजूरी दे दी है। इस आयोग का काम केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के वेतन, भत्ते और पेंशन लाभों की समीक्षा करना है।

सरकार ने इस साल जनवरी में ही आठवीं केंद्रीय वेतन आयोग की स्थापना की थी। आयोग के पास अपनी रिपोर्ट और सिफारिशें पेश करने के लिए आम तौर पर 18 महीने का समय होता है। यह प्रक्रिया लगभग हर दस साल में होती है, जब सरकार अपने कर्मचारियों के वेतन और भत्तों की समीक्षा करती है।

केंद्रीय वेतन आयोग एक उच्च स्तरीय पैनल होता है, जो सरकारी कर्मचारियों (सिविल, रक्षा और पेंशनभोगी) के वेतन, भत्तों और पेंशन लाभों की जांच करता है और सुधार के लिए सिफारिशें करता है। इसका मकसद कर्मचारियों के वेतन को महंगाई, बदलते काम के माहौल और जीवन यापन के खर्च के अनुरूप बनाना और विभिन्न सेवा समूहों में समानता बनाए रखना होता है।

8वीं वेतन आयोग 7वीं वेतन आयोग के बाद बनी है, जिसे जनवरी 2016 से लागू किया गया था। आयोग का मुख्य काम वेतन संरचना (पद और ग्रेड), फिटमेंट फैक्टर (वेतन पर लगाया जाने वाला गुणक), भत्तों में सुधार जैसे कि घर किराया या परिवहन भत्ता, पेंशन फॉर्मूला में बदलाव और जरूरी होने पर भत्तों को मिलाना या नौकरी के वर्गीकरण में बदलाव की सिफारिश करना होता है।

पे कमीशन कैसे तय करता है कर्मचारियों की सैलरी और भत्ते

सरकारी कर्मचारियों की सैलरी और भत्तों में बदलाव के लिए बनाई जाने वाली पे कमीशन की प्रक्रिया का तरीका आसान भाषा में कुछ ऐसा है। सबसे पहले सरकार कमीशन को टर्म्स ऑफ रेफरेंस (ToR) देती है। इसमें यह तय होता है कि कमीशन को किन-किन पहलुओं की जांच करनी है, कितना समय लगेगा और कौन-कौन से मानक लागू करने हैं।

इसके बाद कमीशन डेटा एकत्र करता है। इसमें कर्मचारियों की संख्या, मौजूदा वेतन, महंगाई दर, प्राइवेट सेक्टर के वेतन और पेंशन का बोझ शामिल होता है। कर्मचारी संघों और अन्य संबंधित पक्षों से राय-मशविरा करने के बाद कमीशन अपनी फाइनल रिपोर्ट सरकार को सौंपता है।

सरकार तय करती है कि रिपोर्ट में बताए गए सुझावों में से कौन-कौन से लागू करने हैं और कौन-कौन से बदलने हैं। फिर इस आधार पर वे कार्यान्वयन आदेश जारी करती है।

अभी चल रहे 8वें पे कमीशन में टर्म्स ऑफ रेफरेंस में विशेष ध्यान रखा गया है कि सिर्फ कर्मचारियों की भलाई ही नहीं, बल्कि देश की आर्थिक स्थिति, पेंशन का बोझ और राज्य सरकारों पर पड़ने वाले असर को भी ध्यान में रखा जाए, क्योंकि कई राज्य केंद्र सरकार के सैलरी पैटर्न को फॉलो करते हैं।

केंद्रीय वेतन आयोग की सिफारिशें लाभार्थियों तक पहुँचने में कितना समय लगता है?

6वीं और 7वीं केंद्रीय वेतन आयोग (CPC) की रिपोर्ट तैयार होने में करीब डेढ़ साल का समय लगा था। इसके बाद सरकार को कैबिनेट से मंजूरी मिलने और सिफारिशें लागू करने में 3 से 9 महीने और लगे थे।

अब 8वीं वेतन आयोग (8th CPC) के लिए भी यही अनुमान लगाया जा रहा है कि रिपोर्ट तैयार होने और कर्मचारियों तक लाभ पहुंचने में इसी तरह का समय लग सकता है।

8वें वेतन आयोग का असर: कर्मचारियों और पेंशनर्स की जेब पर भारी

केंद्रीय सरकार के करीब 47 लाख कर्मचारियों और 69 लाख पेंशनर्स के लिए 8वें वेतन आयोग की सिफारिशें बेहद महत्वपूर्ण हैं। अगर आयोग फिटमेंट फैक्टर बढ़ाता है, तो कर्मचारियों का न्यूनतम बेसिक सैलरी और पेंशन काफी हद तक बढ़ सकती है।

लेकिन यह केवल ज्यादा पैसे तक ही सीमित नहीं है। इस बार की वेतन-सुधार से भत्तों, पेंशन और यहां तक कि प्राइवेट सेक्टर में सरकारी नौकरी के पैमाने को भी नया आधार मिलेगा। खासकर पेंशनर्स के लिए, यह कदम उन वर्षों में महंगाई से घटती खरीद शक्ति को वापस लाने में मदद कर सकता है।

सेंट्रल कर्मचारियों की सैलरी बढ़ोतरी: सरकार के लिए कितना भारी पड़ेगा बोझ?

अगर हम पिछली बार की बात करें, तो 2016 में सातवें पे कमीशन (7th CPC) की सिफारिशों के लागू होने के बाद पहली साल में सरकार पर करीब 1 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च आया था। उस समय अर्थशास्त्रियों का अंदाज़ा था कि इससे फिस्कल डेफिसिट यानी बजट घाटा, GDP का 0.6-0.7 प्रतिशत बढ़ सकता है।

अब जब आठवें पे कमीशन (8th CPC) की बात हो रही है, तो विशेषज्ञों का अनुमान है कि सरकार का सालाना सैलरी और पेंशन का खर्च 2.4-3.2 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ सकता है, यानी GDP का लगभग 0.6-0.8 प्रतिशत।

ये इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि सरकारी खर्च बढ़ने से सड़क, इंफ्रास्ट्रक्चर और अन्य विकास योजनाओं पर पैसा कम पड़ सकता है, जब तक कि इसे कहीं और से बचत या बढ़ी हुई राजस्व से कवर न किया जाए। लेकिन दूसरी तरफ, सरकारी कर्मचारियों की बढ़ी हुई आय से खपत बढ़ सकती है, जिससे कंज्यूमर गुड्स और ऑटोमोबाइल सेक्टर को फायदा हो सकता है।

इसलिए सरकार के सामने कठिन फैसला है कि कर्मचारियों के लिए कितनी सैलरी बढ़ाई जाए, और आर्थिक हालत और बजट की स्थिति के हिसाब से कितना खर्चा उठाया जा सकता है।

First Published - November 15, 2025 | 9:43 AM IST

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