भारतीय शेयर बाजार ने टैरिफ में इजाफे और कमजोर कॉरपोरेट नतीजों को लेकर असाधारण प्रतिक्रिया दी। ‘लिबरेशन डे’ के आसपास भारी गिरावट के बावजूद अप्रैल में निफ्टी माह दर माह आधार पर 3.5 फीसदी ऊपर रहा। म्युचुअल फंड सहित घरेलू संस्थागत निवेशक अप्रैल में 28,228 करोड़ रुपये के विशुद्ध खरीदार रहे जबकि मार्च में उन्होंने 37,585 करोड़ रुपये का निवेश किया था। वहीं विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों यानी एफपीआई ने अप्रैल में 6,190 करोड़ रुपये का निवेश किया। खुदरा निवेशक भी प्रत्यक्ष इक्विटी और इक्विटी म्युचुअल फंड में विशुद्ध खरीदार रहे। इसके परिणामस्वरूप बाजार अप्रैल के पहले पखवाड़े के निचले स्तर से वापसी करने में कामयाब रहा। अमेरिकी टैरिफ को 90 दिनों के लिए स्थगित किए जाने के फैसले ने भी कुछ राहत दी तथा अधिक आशावादी निवेशक यह उम्मीद भी कर रहे हैं कि अमेरिका-चीन के बीच व्यापार युद्ध की स्थिति में वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में बदलाव होंगे और विनिर्माण का कुछ काम भारत स्थानांतरित होगा।
इसके अलावा भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) भी नीतियों को सहज बनाने के पथ पर आगे बढ़ता नजर आ रहा है। इसका परिणाम इक्विटी के उच्च मूल्यांकन और डेट से दूरी के रूप में सामने आ सकता है। अस्थिर परिदृश्य के बीच रुपया प्रति अमेरिकी डॉलर 88 रुपये से सुधरकर करीब 84 .6 के करीब आ गया है। मार्च तिमाही और 2024-25 के पूर्ण वर्ष के लिए कारोबारी नतीजे जहां साधारण रहे वहीं विभिन्न क्षेत्रों की कंपनियों ने 2025-26 के लिए आशावादी अनुमान जारी किए। कच्चे तेल, गैस और कोयले की कम कीमतें संकेत देती हैं कि वैश्विक मांग में कमजोरी है लेकिन अलग तरीके से देखा जाए तो ईंधन कीमतों में कमी भारत के लिए लाभदायक है क्योंकि भारत ईंधन का बड़ा आयातक देश है।
सामान्य से बेहतर मॉनसून के अनुमान से ग्रामीण खपत में इजाफा हो सकता है। गत वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में ही उसमें कुछ हद तक सुधार नजर आया है। दैनिक उपभोग की उपभोक्ता वस्तुएं बनाने वाली कंपनियां और वाहन क्षेत्र को भी पिछली चार तिमाहियों में कठिनाई का सामना करना पड़ा क्योंकि शहरी मांग में कमी आई। परंतु अनुमान बताते हैं कि प्रबंधन मान रहे हैं कि बुरा समय बीत चुका है और शहरी मांग में सुधार होने ही वाला है। सस्ती ऊर्जा को लेकर कुछ आशावाद इस अनुमान के इर्दगिर्द तैयार हुआ है कि वैश्विक स्तर पर कीमतें कमजोर बनी रहेंगी और अमेरिका-चीन गतिरोध के बीच आपूर्ति श्रृंखला बाधित रहेगी। कई निवेशक इस बात पर भी दांव लगा रहे हैं कि 90 दिन के स्थगन की अवधि के बाद चीन को छोड़कर अन्य देशों के लिए बड़े पैमाने पर टैरिफ वापस ले लिया जाएगा क्योंकि अमेरिका के भीतर भी इसका भारी विरोध हो रहा है।
हालांकि वैकल्पिक परिदृश्य अधिक गंभीर है। केवल टैरिफ इजाफे की धमकी के चलते ही अमेरिका में मंदी जैसे हालात बन गए हैं और वैश्विक वृद्धि प्रभावित हुई है। अगर अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप टैरिफ जारी रखते हैं तो वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला ध्वस्त हो जाएगी तथा मुद्रा और जिंस बाजारों पर अप्रत्याशित असर देखने को मिलेगा। टैरिफ की जंग के कारण वैश्विक मंदी जैसे हालात का विस्तार होगा और यह घरेलू वृद्धि पर भी बुरा असर डालेगा। इसके अलावा आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के साथ भी हालात और बिगड़ सकते हैं। अगर सबकुछ ठीक रहा और रिजर्व बैंक दरों में कटौती जारी रखता है, ट्रंप टैरिफ वापस ले लेते हैं, भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कम होता है तो बेहतर मॉनसून और शहरी खपत में सुधार के बीच बाजार बेहतर रह सकता है और निफ्टी का मूल्य आय अनुपात 22 तक रह सकता है। परंतु ये सब आशावादी अनुमान हैं और इनमें से एक भी उलटा हुआ तो बाजार में गिरावट का एक और दौर सामने आएगा।