facebookmetapixel
Gujarat Kidney IPO की शेयर बाजार में पॉजिटिव एंट्री, 6% प्रीमियम पर लिस्ट हुए शेयरGold silver price today: सोने-चांदी के दाम उछले, MCX पर सोना ₹1.36 लाख के करीबDelhi Weather Today: दिल्ली में कोहरे के चलते रेड अलर्ट, हवाई यात्रा और सड़क मार्ग प्रभावितNifty Outlook: 26,000 बना बड़ी रुकावट, क्या आगे बढ़ पाएगा बाजार? एनालिस्ट्स ने बताया अहम लेवलStock Market Update: शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव, सेंसेक्स 50 अंक टूटा; निफ्टी 25900 के करीबबांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया का निधन, 80 वर्ष की उम्र में ली अंतिम सांसStocks To Watch Today: InterGlobe, BEL, Lupin समेत इन कंपनियों के शेयरों पर आज रहेगा फोकसYear Ender: भारत के ऊर्जा क्षेत्र के लिए 2025 चुनौतियों और उम्मीदों का मिला-जुला साल रहानवंबर में औद्योगिक उत्पादन 25 महीने में सबसे तेज बढ़ा, विनिर्माण और खनन ने दिया बढ़ावाBPCL आंध्र प्रदेश रिफाइनरी में 30-40 फीसदी हिस्सेदारी विदेशी निवेशकों को बेचेगी, निवेश पर बातचीत शुरू

Editorial: अमेरिका और चीन टैरिफ, अनिश्चितता का हो अंत

भारत जैसे देशों को चीन-अमेरिका से कुछ समस्या रहेगी, लेकिन इन्हें भी स्वतंत्र रूप से दूर कर लिया जाना चाहिए। इनको व्यापक आर्थिक, रणनीतिक संघर्ष का हिस्सा नहीं बनने देना चाहिए।

Last Updated- October 27, 2025 | 9:57 PM IST
US China

सप्ताहांत पर अमेरिका और चीन के व्यापार वार्ताकारों ने कहा कि वे दोनों देशों के बीच कई मुद्दों पर सहमति पर पहुंचे हैं और अपनी बातचीत के नतीजों को राष्ट्रपति शी चिनफिंग तथा डॉनल्ड ट्रंप के समक्ष प्रस्तुत करने को लेकर उत्सुक हैं। यह घटनाक्रम उस एक सप्ताह की सघन कूटनीति का परिणाम है जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति मलेशिया में आसियान देशों की शिखर बैठक और दक्षिण कोरिया में पूर्वी एशियाई देशों की बैठक में शामिल हो रहे हैं।

अमेरिकी और चीनी नेताओं को कोरिया में आयोजित बैठक के बाद आपसी मुलाकात भी करनी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि दोनों नेताओं की बातचीत रचनात्मक रहेगी और इस पहल का परिणाम देखने को मिलेगा। दोनों देशों ने जो कदम उठाए हैं वे दुनिया भर की सामान्य कारोबारी साझेदारियों के लिहाज से बहुत उथलपुथल मचाने वाले रहे हैं और अब उनके रिश्तों में भी कुछ हद तक सामान्य हालात और निश्चितता आनी चाहिए। भारत जैसे देशों को चीन और अमेरिका दोनों से कुछ समस्या रहेगी, लेकिन इन्हें भी स्वतंत्र रूप से दूर कर लिया जाना चाहिए और इनको व्यापक आर्थिक और रणनीतिक संघर्ष का हिस्सा नहीं बनने देना चाहिए।

क्या तय हुआ है इसके बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं है और शायद पता भी नहीं चलेगा अगर दोनों या कोई एक नेता इसे नकार देता है। परंतु अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसंट ने संकेत दिया है कि ट्रंप की चीनी वस्तुओं पर 100 फीसदी शुल्क की हालिया घोषणा को शायद वापस लिया जा सकता है, बशर्ते कि चीन द्वारा दुर्लभ खनिजों के निर्यात पर लगाई गई व्यापक पाबंदी को स्थगित करने पर सहमति बन जाए।

अमेरिका से सोयाबीन की खरीद फिर से शुरू करने का समझौता भी इस सौदे का हिस्सा हो सकता है, साथ ही चीन में फेंटानिल के अवैध उत्पादन व निर्यात पर और कड़ी कार्रवाई की संभावना है जिसे अमेरिका में गंभीर नशा संकट के लिए जिम्मेदार माना जाता है। अन्य लंबित मामलों मसलन वीडियो एग्रीगेटर टिकटॉक की बिक्री और तकनीकी निर्यात पर लगे अमेरिकी प्रतिबंध को भी हल किया जा सकता है। इनमें से कुछ भारत जैसे देशों के लिए अप्रासंगिक हो सकते हैं लेकिन अन्य क्षेत्रों में भारतीय कंपनियों और नागरिकों पर इस बढ़ते शीतयुद्ध का असर हो रहा है।

उदाहरण के लिए, दुर्लभ खनिजों और मैग्नेट के निर्यात के लिए चीन द्वारा तय किया गया लाइसेंसिंग तंत्र कागजी तौर पर अमेरिकी खरीदारों और अन्य देशों के बीच कोई भेद नहीं करता। यद्यपि इसे संभवतः अमेरिका की कार्रवाइयों के जवाब में शुरू किया गया था।

चीन को अधिक न्यायोचित व्यापार सिद्धांतों की ओर प्रतिबद्ध करने की ट्रंप की महत्त्वाकांक्षा सराहनीय है। लेकिन उन्होंने जिस तरीके से यह प्रयास किया है, वह कम से कम कहें तो अविवेकपूर्ण है। अब तक उन्होंने इसके लिए जो तरीका अपनाया है वही सही नहीं है। उन्होंने मनमाने ढंग से काम किया और दूसरे साझेदारों से मशविरा नहीं किया। उनके कदम अनिश्चित रहे हैं, उन्होंने किसी से चर्चा नहीं की और कई अवसरों पर अपनी बात पर टिके भी नहीं। उनके कदमों के चलते बाजारों में भारी उतार-चढ़ाव आया है और कंपनियों ने अपने निर्णयों को रोक दिया है, क्योंकि ट्रंप ने वैश्विक व्यापार में जो जोखिम पैदा किए हैं, उनका प्रभाव गंभीर रहा है।

चीन की कार्रवाइयों ने भी कोई मदद नहीं की है। वे भी उतनी ही एकतरफा और व्यापक रही हैं, जिसके चलते पूरी दुनिया को ट्रंप के निर्णयों की सजा भुगतनी पड़ी है। जब दोनों नेता मिलेंगे तो एक अवसर उत्पन्न होगा। दोनों पक्षों ने सुलह के संकेत दिए हैं।

चीन की सरकार के मुखपत्र ‘पीपल्स डेली’ ने जोर दिया है कि शिखर सम्मेलन को ‘कड़ी मेहनत से प्राप्त उपलब्धियों की संयुक्त रूप से रक्षा करनी चाहिए’, और ट्रंप ने अपनी कुछ कार्रवाइयों के बारे में कहा है कि उन्हें ‘ऐसा महसूस होता है’ कि चीनी नेता उन्हें ऐसा करने से रोक लेंगे। शेष विश्व को आशा है कि ये सकारात्मक संकेत ऐसे टिकाऊ समझौते में परिणत होंगे जो मतभेदों को मिटाए नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करे कि भविष्य के भू-आर्थिक संघर्ष पूर्वानुमान योग्य और नियंत्रित सीमाओं के भीतर हों।

First Published - October 27, 2025 | 9:51 PM IST

संबंधित पोस्ट