हाल ही में सामने आए आंकड़ों से पता चला है कि समय के साथ स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र पर सरकारी व्यय में इजाफा हुआ है और इसका परिणाम स्वास्थ्य पर लोगों के निजी खर्च में कमी के रूप में सामने आया है। इस बीच इस सप्ताह केंद्रीय मंत्रिमंडल ने चिकित्सा उपकरण क्षेत्र के लिए एक नीति को मंजूरी प्रदान की है।
चूंकि भारत अब दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है और माना जा रहा है कि आने वाले दशकों में स्थिर होने के पहले उसकी आबादी में लगातार इजाफा जारी रहेगा। ऐसे में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की क्षमता बढ़ाने की आवश्यकता लगातार बढ़ेगी जो फिलहाल बहुत हद तक सीमित है। इस संदर्भ में चिकित्सा उपकरणों के निर्माण के लिए एक जीवंत घरेलू सुविधा का निर्माण बहुत उपयोगी साबित होगा। फिलहाल भारत इस क्षेत्र में आयात पर बहुत अधिक निर्भर करता है। एक अनुमान के मुताबिक 2021-22 में चिकित्सा उपकरण आयात 40 फीसदी से अधिक बढ़कर 63,200 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। आंकड़े यह भी दिखाते हैं कि चिकित्सा उपकरण आयात में इलेक्ट्रॉनिक्स और उपकरणों की हिस्सेदारी 60 फीसदी से अधिक है।
ऐसे में सरकार का इरादा उत्पादन बढ़ाने और आयात निर्भरता कम करने का है। सरकारी अनुमानों के मुताबिक इस बाजार का आकार फिलहाल करीब 11 अरब डॉलर यानी करीब 90,000 करोड़ रुपये है। नीति में अनुमान जताया गया है कि 2030 तक यह बढ़कर 50 अरब डॉलर मूल्य का हो जाएगा।
इस क्षेत्र में गतिविधियां बढ़ाने के लिए सरकार ने पहले ही उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन योजना के क्रियान्वयन की शुरुआत कर दी है। इस योजना के तहत अब तक 26 परियोजनाओं को मंजूरी दी जा चुकी है और अनुमान है कि इनसे करीब 1,206 करोड़ रुपये मूल्य का निवेश आएगा। अब तक 714 करोड़ रुपये मूल्य का निवेश आ चुका है। सरकार हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में चार चिकित्सा उपकरण पार्कों की स्थापना में भी मदद कर रही है। उसने एक सक्षम माहौल तैयार करने के लिए भी एक नीति पेश की है।
उदाहरण के लिए सरकार का इरादा नियामकीय सुसंगतता बढ़ाने की है। इसके लिए एकल खिड़की मंजूरी जैसी व्यवस्था बनाई जा सकती है। सरकार सक्षम बुनियादी ढांचा तैयार करने और शोध एवं विकास में मदद करने का काम भी करेगी। मानव संसाधन विकास के लिए नीति समर्पित बहुविषयक पाठ्यक्रमों समेत अन्य तरीके अपनाएगी।
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भारत को इस क्षेत्र में उत्पादन बढ़ाने और रोजगार तैयार करने के लिए जितने बड़े पैमाने पर काम करने की आवश्यकता है उसे देखते हुए सरकार के इरादे को गलत नहीं ठहराया जा सकता। हालांकि यह बात ध्यान देने लायक है कि लक्ष्य तय करना और केवल नीति घोषित कर देना अक्सर बहुत लाभदायक नहीं साबित होता। सरकार दशकों से विनिर्माण को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है लेकिन उसे अधिक कामयाबी नहीं मिली है।
इसके अलावा किसी खास क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने के अलावा व्यापक नीतिगत सुधारों को गति देना भी अहम है। उदाहरण के लिए सभी कारोबारों के लिए सिंगल विंडो मंजूरी, इन्फ्रास्ट्रक्चर और लॉजिस्टिक्स समर्थन, और कुशल श्रमिकों की आवश्यकता है। व्यापक रूप से बेहतर माहौल के अभाव में केवल खास क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने से वांछित परिणाम नहीं हासिल होंगे। इस समाचार पत्र में हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट दिखाती है कि इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण लक्ष्य से काफी पीछे रह सकता है क्योंकि वर्ष 2025-26 तक निर्यात तय लक्ष्य के 53 से 55 फीसदी तक ही रह पाएगा। यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि सरकार चिकित्सा उपकरण क्षेत्र में गतिविधियां बढ़ाने के लिए दरों में इजाफा करने पर केंद्रित न रहे। कई अन्य क्षेत्रों में सरकार ऐसा कर चुकी है।
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ध्यान देने वाली बात है कि हाल ही में विश्व व्यापार संगठन में भारत को प्रतिकूल फैसलों का सामना करना पड़ा क्योंकि उसने सूचना एवं संचार तकनीक के उत्पादों के आयात पर उच्च शुल्क लगाए थे। इसका शायद कोई तात्कालिक प्रभाव न हो क्योंकि विश्व व्यापार संगठन की अपील संस्था निष्क्रिय है लेकिन कारोबारी साझेदार प्रतिरोधस्वरूप शुल्क बढ़ा सकते हैं जो भारतीय कारोबारों को प्रभावित करेगा। विनिर्माण में वैश्विक मूल्य श्रृंखला के दबदबे को देखते हुए उच्च शुल्क दर इस गतिविधि को बढ़ावा देने वाला हल नहीं हो सकती है। ऐसे में नीति निर्माताओं को सक्षम माहौल बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जिससे विनिर्माण में मदद मिलेगी।