facebookmetapixel
Assam Earthquake: असम में 5.9 तीव्रता का भूकंप, गुवाहाटी में मची अफरा-तफरी, लोग घरों से बाहर निकलेसिर्फ एक फंड से टाटा-बिड़ला से लेकर अंबानी-अदाणी तक के शेयरों में करें निवेश, जानें कैसे काम करते हैं कांग्लोमरेट फंडPM मोदी ने असम में ₹18,530 करोड़ की परियोजनाओं को दी मंजूरी, बायोएथेनॉल, पॉलीप्रोपाइलीन प्लांट का किया शुभारंभTata Capital ला रहा ₹17,000 करोड़ का बड़ा IPO, IFC की हिस्सेदारी बेचकर कमाएगा 13 गुना मुनाफाशेयर बाजार में मचेगी धूम! अगले दो-तीन हफ्तों में एक दर्जन से ज्यादा कंपनियां लाएंगी IPO, जुटाएंगी ₹10,000 करोड़इंश्योरेंस सेक्टर में 100% FDI का रास्ता साफ? संसद के शीतकालीन सत्र में पेश हो सकता है विधेयकपीएम मोदी ने असम को दी ₹6,300 करोड़ की स्वास्थ्य और इन्फ्रा परियोजनाओं की सौगातUP: कन्नौज का आनंद भवन पैलेस बना उत्तर प्रदेश का पहला लग्जरी हेरिटेज होमस्टेMCap: बाजाज फाइनेंस की मार्केट कैप में सबसे ज्यादा बढ़त, 8 कंपनियों का कुल मूल्य ₹1.69 ट्रिलियन बढ़ाMarket Outlook: इस सप्ताह US Fed की नीति और WPI डेटा पर रहेगी नजर, बाजार में दिख सकती है हलचल

संपादकीय: दूरसंचार स्पेक्ट्रम नीलामी का क्या हो सही रवैया

दूरसंचार उद्योग जो बीते वर्षों में कई तरह के उतार-चढ़ाव से गुजरा है, उसने अपनी जरूरतों के मुताबिक बैंड और फ्रीक्वेंसी का चयन करने में सतर्कता बरती है।

Last Updated- June 28, 2024 | 9:20 PM IST
Next spectrum auction to be held in February, reserve price to remain same

दूरसंचार स्पेक्ट्रम नीलामी का ताजा दौर केवल दो दिन में समाप्त हो गया और इस दौरान बोली से लगभग 11,000 करोड़ रुपये आए। इससे पता चलता है कि मांग में कमी है लेकिन जरूरी नहीं कि स्पेक्ट्रम की मांग भी कम हो।

स्पेक्ट्रम ऐसा दुर्लभ प्राकृतिक संसाधन है जो दूरसंचार सेवाओं के संचालन के लिए जरूरी है। आगे भी स्पेक्ट्रम नीलामी ऐसी ही होनी चाहिए। यानी संतुलित और जरूरत आधारित, न कि अतीत की तरह सार्वजनिक तमाशा जब कंपनियों को अपनी क्षमता से परे जाकर काम करना पड़ा।

वर्ष 2012 में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पेक्ट्रम की खुली और पारदर्शी नीलामी की प्रक्रिया का सिद्धांत तय किया था और कहा था कि बोली की प्रक्रिया को हर स्थिति में सरकार के लिए राजस्व बढ़ाने का माध्यम नहीं समझा जाना चाहिए।

बुधवार को समाप्त हुई बोली इसी भावना के अनुरूप हुई। नीलामी के बाद केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बताया कि क्यों बोली कमजोर रही। उन्होंने कहा कि जरूरी स्पेक्ट्रम का बड़ा हिस्सा 2022 में ही नीलाम कर दिया गया था।

दो वर्ष पहले जब दूरसंचार उद्योग 5जी सेवाओं की शुरुआत के लिए तैयार हो रहा था और जिसके कारण डाउनलोड गति में तेजी आनी थी और अगली पीढ़ी के मोबाइल नेटवर्क तैयार होने थे, उस समय उद्योग जगत ने इन तरंगों को खरीदने के लिए 1.5 लाख करोड़ रुपये की राशि व्यय की थी।

बातों को इस संदर्भ में रखते हुए देखें तो स्पेक्ट्रम की कम मांग शायद ही राजकोष पर बुरा असर डाले। सरकार ने अंतरिम बजट में वित्त वर्ष 25 के दौरान दूरसंचार संवाओं से 1.2 लाख करोड़ रुपये के गैर कर राजस्व संग्रह का लक्ष्य तय किया है। जबकि स्पेक्ट्रम नीलामी के लिए कोई आधिकारिक लक्ष्य नहीं था लेकिन संकेत मिलते हैं कि सरकार को इस बिक्री से कुछ ज्यादा उम्मीद नहीं थी यानी वित्त वर्ष 25 की पहली किस्त से करीब 500 करोड़ रुपये। वर्तमान 11,000 करोड़ रुपये की राशि अपेक्षाओं से काफी अधिक है।

दूरसंचार उद्योग जो बीते वर्षों में कई तरह के उतार-चढ़ाव से गुजरा है, उसने अपनी जरूरतों के मुताबिक बैंड और फ्रीक्वेंसी का चयन करने में सतर्कता बरती है। इस बार खरीदे गए स्पेक्ट्रम का एक बड़ा हिस्सा उन तरंगों के नवीनीकरण के लिए है जिनका परमिट समाप्त होने वाला है।

भारती एयरटेल (Airtel) और वोडाफोन से तुलना करें तो अपेक्षाकृत नई कंपनी रिलायंस जियो (Reliance Jio) ने कम बोली लगाई क्योंकि उसके किसी स्पेक्ट्रम की अवधि समाप्त नहीं हो रही है। अगर 2010 की 3जी स्पेक्ट्रम नीलामी से तुलना की जाए तो उस समय बोली की प्रक्रिया 34 दिन तक चली थी और इस बार यह दो दिन में समाप्त हो गई।

इससे पता चलता है कि कंपनियों ने भी संतुलित रुख अपनाया है। इससे पहले 2022 में भी 5जी तरंगों की रिकॉर्ड बोली लगी थी और दूरसंचार कंपनियों को भी अगली बोली से पहले थोड़ा समय मिल गया था।

सरकार की इस बात के लिए सराहना की जानी चाहिए कि उसने उद्योग जगत को यह अवसर दिया कि वह अपनी सुविधा और समय के हिसाब से स्पेक्ट्रम खरीदे बजाय कि भविष्य की कोई जानकारी हुए बिना स्पेक्ट्रम की जमाखोरी करने के। सरकार ने सालाना स्पेक्ट्रम नीलामी को लक्ष्य के रूप में स्पष्ट करके दूरसंचार क्षेत्र के काम की सुगमता में योगदान किया है।

इसके अलावा कंपनियों के पास भी यह विकल्प है कि वे सरकार को स्पेक्ट्रम के लिए सालाना राशि चुकाएं। इससे दूरसंचार उद्योग का वित्तीय दबाव कम होगा जो गत वर्ष 6.4 लाख करोड़ रुपये के कर्ज में फंसा था।

अब जबकि रिलायंस जियो और एयरटेल ने कदम उठा लिया है तो अन्य कंपनियां भी अपनी शुल्क दरों में इजाफा करेंगी ताकि बाजार कहीं दो कंपनियों में बंटकर नहीं रह जाए। इसके अलावा दूरसंचार सेवाओं की गुणवत्ता में भी सुधार होना चाहिए, 5जी का इस्तेमाल बढ़ना चाहिए और डाउनलोड की गति भी उपभोक्ताओं की अपेक्षाओं के अनुरूप होनी चाहिए।

First Published - June 28, 2024 | 9:20 PM IST

संबंधित पोस्ट