उत्तर प्रदेश की पहचान अब धीरे-धीरे बदल रही है। एक समय था जब यह राज्य मुख्य रूप से अपनी कृषि आधारित अर्थव्यवस्था और अधिक जनसंख्या घनत्व के लिए ही जाना जाता था किंतु अब ऐसा लगता है कि राज्य सरकार औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने तथा बुनियादी ढांचे, प्रौद्योगिकी और प्रमुख उद्योगों में निवेश हासिल करने के लिए मजबूत प्रयास कर रही है।
कहा जा रहा है कि फॉक्सकॉन ने ग्रेटर नोएडा में 300 एकड़ में एक संयंत्र स्थापित करने का प्रस्ताव दिया है। अगर कंपनी की यह योजना फलीभूत हुई तो राज्य के औद्योगिक विकास में यह एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि होगी। दुनिया में इलेक्ट्रॉनिक्स सामान बनाने की सबसे बड़ी कंपनियों में शामिल फॉक्सकॉन का यह कदम निवेश के लिहाज से उत्तर प्रदेश में बढ़ते भरोसे का संकेत है। कंपनी इस समय देश के दक्षिणी राज्यों में परिचालन कर रही है।
राष्ट्रीय राजधानी से सटे होने और तेज अधोसंरचना विकास के कारण गौतम बुद्ध नगर उच्च-तकनीक विनिर्माण के एक बड़े ठिकाने के रूप में अपनी पहचान बना रहा है। खिलौना, वाहन और सीमेंट उद्योग में भी विनिर्माण गतिविधियों का तेजी से विस्तार हो रहा है। एक और अच्छी बात यह है कि निवेश केवल पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक ही सीमित नहीं हैं।
उदाहरण के लिए भारत की पहली बायोपॉलीमर विनिर्माण इकाई लखीमपुर खीरी जिले में स्थापित हो रही है। राज्य में बुंदेलखंड-रीवा एक्सप्रेसवे से सटा एक रक्षा औद्योगिक गलियारा भी तैयार हो रहा है। माना जा रहा है कि इस परियोजना में 9,500 करोड़ रुपये का निवेश आएगा।
वित्त वर्ष 2023-24 में राज्य में विनिर्माण उद्योग में 13 फीसदी वृद्धि दर्ज हुई, जो सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) की 7.5 फीसदी वृद्धि दर की तुलना में काफी अधिक रही। उसी वर्ष वर्तमान मूल्य पर राज्य की अर्थव्यवस्था में विनिर्माण ने 27 फीसदी का योगदान दिया। राज्य में श्रमिकों की कमी नहीं है, ग्रामीण क्षेत्रों में आबादी का एक बड़ा हिस्सा रहता है और उनकी कृषि पर निर्भरता काफी अधिक है। ऐसे में तेज औद्योगिक विकास करोड़ों लोगों का जीवन संवार सकता है। विनिर्माण गतिविधियों में तेजी से कामगारों के लिए रोजगार के पर्याप्त अवसर तैयार हो सकते हैं और राज्य से लोगों का पलायन भी कम हो सकता है।
इतना ही नहीं, विनिर्माण उद्योग के विस्तार से समावेशी विकास को बढ़ावा मिलेगा और विकास में क्षेत्रीय असमानता दूर करने में भी सहायता मिलेगी। राज्य को लघु-स्तर पर विनिर्माण कार्यों में तेजी आने से भी ताकत मिल रही है। सक्रिय सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों के लिहाज से उत्तर प्रदेश देश में पहले पायदान पर आ गया है। एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) योजना से इन उद्यमों की बाजार तक पहुंच बढ़ी है और निर्यात से जुड़ी संभावनाएं भी मजबूत हुई हैं। ओडीओपी योजना वर्ष 2018 में लागू हुई थी। भौगोलिक संकेतक (जीआई) टैग के मामले में राज्य देश में दूसरे स्थान पर है। यह उपलब्धि परंपरागत उद्योगों एवं हस्तशिल्प आधारित अर्थव्यवस्थाओं को दोबारा ताकत देने के लिए काफी महत्त्वपूर्ण है।
भविष्य में विनिर्माण तंत्र को और ताकतवर बनाने के लिए राज्य में व्यापक एवं स्पष्ट अवसर मौजूद हैं। अधोसंरचना, कारोबारी सुगमता में सुधार, जमीन अधिग्रहण प्रक्रिया में तेजी और त्वरित मंजूरी निवेशकों का भरोसा बढ़ाने में सहायक होंगे। निरंतर एवं टिकाऊ विकास के लिए राज्य में औद्योगिक विकास को कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। विशेषकर, राज्य में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में व्यापक संभावनाएं दिख रही हैं। राज्य की खाद्य प्रसंस्करण उद्योग नीति 2022-27 के अनुसार राज्य में मौजूद 24,000 खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों में केवल 6 फीसदी ही सालाना 20 करोड़ रुपये से अधिक राजस्व अर्जित कर पा रही हैं। अधिक कृषि पैदावार के दम पर उत्तर प्रदेश कृषि-आधारित उद्योगों एवं खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों में निवेश कर असीमित प्रगति कर सकता है। इससे न केवल किसानों की आय बढ़ेगी बल्कि फसलों की कटाई के बाद होने वाले नुकसान में भी कमी आएगी।
व्यापक नीतिगत दृष्टिकोण से राज्य में अति आवश्यक औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने से कई नीतिगत उद्देश्य हासिल किए सकते हैं। देश का यह सबसे बड़ा राज्य पिछले कई दशकों से आर्थिक विकास में पीछे रहा है। अगर उत्तर प्रदेश की विनिर्माण गतिविधियों में तेजी का सिलसिला जारी रहा रहा तो पूरे उत्तर भारत में रहन-सहन का स्तर सुधरेगा और देश में तेज आर्थिक वृद्धि एवं संतुलित विकास सुनिश्चित करने में भी मदद मिलेगी।