केंद्र सरकार ने हाल ही में राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी (एसीएनएएस) सलाहकार समिति का पुनर्गठन किया है। ऐसा विभिन्न सूचकांकों के लिए आधार वर्ष को संशोधित करने और सांख्यिकीय सटीकता बढ़ाने के लिए नए डेटा स्रोतों को शामिल करने के लिए किया गया है।
गजट अधिसूचना के अनुसार इंस्टीट्यूट ऑफ इकनॉमिक ग्रोथ के पूर्व प्रोफेसर विश्वनाथ गोल्डर की अध्यक्षता वाली समिति ने कार्यसूची तैयार की है। इनमें राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी की प्रविधि पर सलाह, वृहद संकेतक और इस क्षेत्र में शोध को बढ़ावा देने जैसी बातें शामिल हैं। इस प्रक्रिया में कई वर्षों से कई वजहों से देरी हो रही थी।
इन वजहों में डेटा की खराब गुणवत्ता, नोटबंदी, वस्तु एवं सेवा कर का क्रियान्वयन एवं महामारी के कारण मची उथल-पुथल शामिल थी। यद्यपि समिति को कई जटिल मुद्दों पर सलाह देनी होगी लेकिन सांख्यिकीय प्रणाली की कमियों को दूर करने की प्रक्रिया की शुरुआत स्वागतयोग्य है।
आंकड़ों के संदर्भ में परिवार खपत व्यय सर्वे (एचसीईएस) के 2022-23 के नतीजे 11 वर्ष के अंतराल के बाद हाल ही में जारी किए गए। वर्ष 2023-24 के आंकड़े भी जल्दी ही जारी किए जा सकते हैं।
बहरहाल, प्रविधि में अंतर के कारण परिणामों की सटीक तुलना नहीं की जा सकेगी। एचसीईएस परिवारों की खपत के रुझान पर अहम आंकड़े उपलब्ध कराता है। आधार वर्ष में संशोधन से जुड़ा निर्णय एक और दौर के पूरा होने के बाद लिया जा सकता है। यह निर्णय अहम होगा क्योंकि इसका असर कई अन्य संकेतकों पर पड़ेगा मसलन- खुदरा मूल्य सूचकांक (सीपीआई), थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) और औद्योगिक उत्पादन सूचकांक जो फिलहाल एक दशक पुराने आंकड़ों पर आधारित है।
चूंकि भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी से बदलाव आ रहा है इसलिए बिना समय-समय पर परिवर्तन के ये आंकड़े शायद वास्तविक स्थिति नहीं दर्शा रहे हों और नीतिगत निर्णयों को प्रभावित कर रहे हों।
इसके अलावा भारत को उत्पादक मूल्य सूचकांक की भी आवश्यकता है। यह न केवल उत्पादन के स्तर पर कीमतों में उतार-चढ़ाव का आकलन करेगी बल्कि सकल घरेलू उत्पाद के लिए भी मजबूत डिफ्लेटर निर्मित करने में मदद करेगा। सरकार ने उत्पादक मूल्य सूचकांक के लिए प्रविधि तैयार कर ली है।
फिलहाल नॉमिनल जीडीपी के डिफ्लेटर के रूप में थोक मूल्य सूचकांक का सहारा लिया जाता है जिसकी अपनी सीमाएं हैं। खपत और उत्पादन सूचकांकों से इतर भारत को उच्च तीव्रता वाले रोजगार आंकड़ों की भी आवश्यकता है जिसमें शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों के आंकड़े शामिल हों।
यह विस्तृत और समय पर आने वाले आंकड़े रोजगार के रुझानों के सटीक आकलन के लिए आवश्यक हैं। साथ ही ये चिंताजनक क्षेत्रों की पहचान और विभिन्न क्षेत्रों और जननांककी की जरूरतों को पूरा करने वाली नीतियों के क्रियान्वयन के लिए भी आवश्यक हैं।
परंतु समिति की चुनौतियां केवल नए सूचकांकों को सामने लाने और मौजूदा सूचकांकों की समीक्षा तक सीमित नहीं हैं। 2021 में होने वाली जनगणना को स्थगित किया गया और भविष्य में इसके लिए कोई तय समयसीमा नहीं रखी गई है। जनगणना के ताजा आंकड़ों के बिना सर्वे का सटीक और विश्वसनीय होना मुश्किल है।
इसके अलावा जैसा कि समिति की कार्यसूची में कहा गया है, संयुक्त राष्ट्र के मानकों को अपनाना और उनका क्रियान्वयन करना काफी चुनौतीपूर्ण है। बेहतरी और टिकाऊपन का अंकेक्षण काफी मुश्किल है। अर्थव्यवस्था का बढ़ता डिजिटलीकरण और वैश्वीकरण आर्थिक गतिविधियों के सटीक मापन के लिए नए तरीकों को विकसित करने की मांग करता है।
इसके अलावा अनौपचारिक क्षेत्र जो अर्थव्यवस्था में बड़ी हिस्सेदारी रखता है, उसका सटीक आकलन और विश्लेषण भी चुनौतीपूर्ण है। अक्सर कहा जाता है कि मौजूदा व्यवस्था अनौपचारिक क्षेत्र का सही आकलन नहीं करती और आर्थिक वृद्धि को बढ़ाचढ़ाकर बताती है। इस व्यवस्था की दिक्कतों और खामियों को देखते हुए सरकार ने सांख्यिकीय ढांचा बनाने की दिशा में पहल कर दी है।
यह बेहतर होगा कि समिति व्यापक रणनीतियों को परखकर देश की सांख्यिकीय व्यवस्था को दुरुस्त और मजबूत करने की कोशिश करे। विभिन्न आर्थिक संकेतकों के लिए निरंतर और विश्वसनीय आधिकारिक आंकड़े बेहतर निर्णय प्रक्रिया के लिए आवश्यक हैं। यह बात सरकार और निजी क्षेत्र दोनों पर लागू होती है।