मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) वी अनंत नागेश्वरन और वित्त मंत्रालय की उनकी टीम द्वारा तैयार आर्थिक समीक्षा (Economic Survey 2024) से एक स्पष्ट संकेत नजर आता है। वह यह कि भारतीय अर्थव्यवस्था महामारी से मजबूती से उबर चुकी है लेकिन विकसित भारत का लक्ष्य हासिल करने के लिए टिकाऊ वृद्धि के लिए निरंतर हस्तक्षेप की आवश्यकता होगी तथा कई उभरती आर्थिक और नीतिगत चुनौतियों का सामना करना होगा।
महामारी के बाद भारत ने उच्च आर्थिक वृद्धि हासिल की है और इस दौरान उसे वित्तीय स्थिरता के साथ भी समझौता नहीं करना पड़ा। अब सबकी नजरें केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पर होंगी जो मंगलवार को नरेंद्र मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट (Budget 2024) पेश करेंगी। माना जा रहा है कि इस बजट में अन्य बातों के अलावा देश की अर्थव्यवस्था को लेकर मध्यम अवधि का खाका पेश किया जाएगा।
वृद्धि के नजरिये से देखें तो 2023-24 में देश का सकल घरेलू उत्पाद, कोविड के पहले वाले वर्ष यानी 2019-20 की तुलना में 20 फीसदी अधिक था। इसका अर्थ यह हुआ कि हमने 2019-20 से 2023-24 तक 4.6 फीसदी की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि हासिल की।
समीक्षा में कहा गया है कि देश का मौजूदा सकल घरेलू उत्पाद वित्त वर्ष 24 की चौथी तिमाही में महामारी के पहले के स्तर के करीब था। यह भी अनुमान जताया गया है कि देश की अर्थव्यवस्था चालू वर्ष में 6.5 से 7 फीसदी की दर से विकसित होगी। यह दर रिजर्व बैंक के 7.2 फीसदी के अनुमान से कम है।
राजकोषीय स्थिति में भी महामारी के समय से अब तक काफी सुधार हुआ है। केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा जो पिछले वर्ष सकल घरेलू उत्पाद के 6.4 फीसदी था, वह वित्त वर्ष 24 में कम होकर 5.6 फीसदी रह गया।
कर संग्रह में वृद्धि तथा रिजर्व बैंक की ओर से अनुमान से अधिक स्थानांतरण जहां चालू वर्ष की राजकोषीय स्थिति में राहत प्रदान करेगा, वहीं बढ़ा हुआ सरकारी कर्ज चिंता का विषय है तथा उस पर नीतिगत ध्यान देने की आवश्यकता है।
महामारी के बाद की अवधि में वृद्धि सरकार के पूंजीगत व्यय से अधिक संचालित रही है। वित्त वर्ष 24 में सरकार का पूंजीगत व्यय पिछले वर्ष की तुलना में 28.2 फीसदी बढ़ा और वह वित्त वर्ष 20 में दर्ज स्तर का करीब तीन गुना रहा। बहरहाल समीक्षा में इस बात को उचित ही रेखांकित किया गया है कि अब सरकार के बाद इसे आगे बढ़ाने का काम निजी क्षेत्र का है।
निजी क्षेत्र के निवेश में सुधार के आरंभिक संकेत नजर आ रहे हैं लेकिन इस रुझान को बरकरार रखना होगा। जैसा कि समीक्षा में कहा गया है, भविष्य की वृद्धि कई कारकों पर निर्भर करेगी जिनमें भू-राजनीतिक विभाजन और विभिन्न देशों के बीच बढ़ता अविश्वास शामिल है। उदाहरण के लिए 2023 में करीब 3,000 व्यापार प्रतिबंध लागू किए गए। इसके अलावा नीतिगत योजना में उभरती तकनीकों को शामिल करने का भी वृद्धि और विकास पर असर होगा।
अल्प से मध्यम अवधि में जिन क्षेत्रों में नीतिगत ध्यान देने की आवश्यकता है उनमें उत्पादक रोजगार तैयार करना, कौशल की कमी को दूर करना, छोटे और मझोले उपक्रमों को प्रभावित करने वाले गतिरोधों को दूर करना, असमानता से निपटना और पर्यावरण के अनुकूल बदलाव का प्रबंधन शामिल हैं।
बहरहाल यह ध्यान देने वाली बात है कि इनमें से कुछ मुद्दे ज्ञात हैं लेकिन दिक्कत यह है कि भारत उन्हें भलीभांति नहीं हल कर सका। इस बात ने समय के साथ वृद्धि और विकास संबंधी नतीजों को प्रभावित किया। समीक्षा में लंबी अवधि के लिए भी ऐसी नीतियों को भी रेखांकित किया गया जो लंबे समय के लिए कारगर हैं। उदाहरण के लिए कृषि क्षेत्र की दिक्कतें दूर करना, निजी निवेश को बढ़ावा देना और राज्य की क्षमता विकसित करना।
सरकार के नए कार्यकाल की शुरुआत मध्यम से लंबी अवधि की वृद्धि रणनीति के समायोजन का सबसे बेहतर समय है। यह देखना होगा कि सरकार इन सुझावों पर किस प्रकार प्रतिक्रिया देती है। समीक्षा में चीन को लेकर भी कुछ अहम सवाल उठाए गए हैं जिन पर नीति निर्माण के दौरान बहस होनी चाहिए।