अंतरिक्ष यात्रियों सुनीता विलियम्स और बैरी विलमोर के फरवरी 2025 तक अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) में फंसे रहने की खबर उन चुनौतियों को सामने लाती है जो मानवयुक्त अंतरिक्ष अभियानों में सामने आ सकती हैं। अंतरिक्ष यात्रियों का यह अनुभवी जोड़ा जून के आरंभ में बोइंग स्टारलाइनर पर सवार होकर आईएसएस पहुंचा था। यह मिशन आठ दिन का था।
स्टारलाइन पहले ही दो लॉन्च कर चुका था लेकिन यह उसका पहला मानवयुक्त मिशन था। इसके थस्टर्स में समस्या के कारण आईएसएस के साथ इसके जुड़ाव में दिक्कत आई और हीलियम के लीक होने के कारण जोखिम और बढ़ गया। स्टारलाइनर को यात्रियों के बिना धरती पर लाना संभव है लेकिन इसे इंसानों को लाने की दृष्टि से असुरक्षित माना जा रहा है। नासा नहीं चाहता कि दो स्पेस शटल दुर्घटनाओं का इतिहास फिर से दोहराया जाए। अतीत में हुई ऐसी ही दुर्घटनाओं में कल्पना चावला सहित कई अंतरिक्ष यात्री जान गंवा चुके हैं। ऐसे में इस बार यात्रियों को अभी आईएसएस में ही रहना होगा और वे फरवरी 2025 में स्पेसएक्स के विमान से लौट सकेंगे।
नासा ने जब आईएसएस पर वस्तुओं और मनुष्यों को ले जाने में सक्षम जीवन रक्षक कैप्सूल के साथ चल सकने वाले यानों के लिए निविदा जारी की तो उसने दूरदर्शिता का परिचय दिया। उसने दो डिजाइनों के लिए अनुबंध चुने। एक बोइंग से तो दूसरा स्पेसएक्स से। स्पेसएक्स ने जहां बार-बार इस्तेमाल किए जाने वाला डिजाइन तैयार किया वही बोइंग इसके लिए संघर्ष करती रही।
दशकों के तकनीक और वैमानिकी में गहरे अनुभव के बावजूद बोइंग की परियोजना की लागत स्पेसएक्स के करीब तीन गुना रही और इसमें अनुमान से बहुत अधिक समय और पैसा खर्च हुए। स्टारलाइन में अभी भी खामियां हैं। उसका थर्स्टर अभी भी कमजोर प्रदर्शन कर रहा है। यह आईएसएस के साथ जुड़ पाने में भी मुश्किलों से जूझता रहा है। अब वापसी की यात्रा के लिए स्पेस स्टेशन से अलग होने के लिए उसे सॉफ्टवेयर अपग्रेड की आवश्यकता है।
बहरहाल, इसमें अतिरिक्त क्षमता मौजूद है और पृथ्वी पर वापस आने के लिए पर्याप्त गतिशीलता मौजूद है। हालांकि, गैस लीक के मामले गंभीर होते हैं क्योंकि ये अपने आप में जानलेवा साबित हो सकते हैं। अगर स्पेसएक्स का विकल्प नहीं होता तो आईएसएस पर सभी लोग फंसे रह जाते। एक भयंकर विस्फोट या अनियंत्रित ढंग से क्रैश हो जाने के बजाय उनके सामने खाने और ऑक्सीजन की कमी की स्थिति पैदा हो जाएगी।
मानवयुक्त अभियानों में ऐसे जोखिम होते हैं और नासा के मानवयुक्त मिशन तथा ऐसे सोवियत कार्यक्रम दोनों को त्रासदियों का सामना करना पड़ा। यह अंतरिक्ष में लोगों को स्वस्थ रखने की चुनौतियों से एकदम अलग है। स्पेस फ्लाइट को तय अवधि तक गति की आवश्यकता होती है। इसके चलते शरीर पर गुरुत्वाकर्षण का भार सामान्य से 9-10 गुना तक अधिक रहता है।
शून्य गुरुत्व वाली लंबी अवधि भी होती है जिसके कारण मांसपेशियों में समस्या पैदा हो सकती है या स्वास्थ्य संबंधी अन्य दिक्कतें हो सकती हैं। अंतरिक्ष में हवा नहीं है और वहां बहुत अधिक गर्मी और ठंड पड़ती है। वहां कोई वातावरण या चुंबकीय क्षेत्र नहीं है जो लोगों को सौर विकिरण से बचा सके। स्पेस स्टेशन में कचरे और ऑक्सीजन का पुनर्चक्रण करना होता है। दोबारा पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश करने से ताप के साथ घर्षण होता है और उससे धातुएं पिघल सकती हैं।
मानवरहित मिशन में डिजाइन की खराबी निराशाजनक होती है लेकिन मानवयुक्त मिशन में डिजाइन की खराबी लोगों की जान ले सकती है। अंतरिक्ष में इंसानों को स्वस्थ रखना एक बड़ी चुनौती है लेकिन शोध कार्यों की मदद से हमें शरीर की कार्यप्रणाली के बारे में काफी कुछ पता चल चुका है। अंतरिक्ष औषधि शोध के परिणामस्वरूप टेलीमेडिसिन के उपाय, जिम उपकरण, हाथ में पकड़ने योग्य एमआरआई मशीन आदि बन सकीं।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने निकट भविष्य में अंतरिक्ष में मनुष्यों को भेजने की योजना पेश की है। उसके बाद एक अंतरिक्ष केंद्र बनाने और चांद पर मनुष्यों को भेजने की योजना है। बोइंग की नाकामी यह सबक है कि भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी को किन कमियों से बचने की जरूरत है। इसरो को इन पर ध्यान देना होगा और अपने महत्त्वाकांक्षी मानवयुक्त मिशन को पूरा करने के लिए पूरी तरह नई तकनीकों को अपनाना होगा।