बहुत लंबे समय से यह तर्क दिया जा रहा है कि तकनीकी बदलाव देश के सूचना प्रौद्योगिकी सक्षम सेवा (आईटीईएस) क्षेत्र के पारंपरिक संचालन को चलन से बाहर कर देगा। अब यह प्रक्रिया स्पष्ट रूप से आरंभ हो चुकी है और इस क्षेत्र के संचालन के साथ-साथ देश के व्यापक सेवा निर्यात तथा रोजगार बाजार पर भी इसका गहरा प्रभाव नजर आने वाला है। जैसा कि इस समाचार पत्र में भी प्रकाशित हुआ, आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में होने वाले सौदे हाल के वर्षों में बढ़े हैं। आईटी क्षेत्र स्वयं 5 फीसदी की दर से बढ़ रहा है और इस बीच एआई केंद्रित सौदे 30 फीसदी की दर से बढ़ रहे हैं। कुछ अहम खरीदार जिनमें चार बड़ी लेखा कंपनियां शामिल हैं, इस इजाफे को गति प्रदान कर रही हैं। इस क्षेत्र में निवेशक जो बजट रख रहे हैं वह भी अच्छा खासा है। बीते कुछ सालों में अकेले भारत के जेनरेटिव एआई क्षेत्र में 75 करोड़ डॉलर की राशि लगाई गई।
इस समाचार पत्र ने अपनी खबरों में यह भी बताया है कि कैसे आईटीईएस क्षेत्र की कंपनियां अपने प्रमुख ग्राहकों के बीच मांग में इस बदलाव को लेकर प्रतिक्रिया दे रही हैं। एआई से संबंधित अनुबंध बुनियादी तौर पर उन सेवाओं से अलग हैं जो वे पारंपरिक रूप से मुहैया कराते रहे हैं। पहले अक्सर कोडिंग की प्रमुखता होती थी और कम अनुभव और कुशलता वाले कर्मचारियों द्वारा ग्राहक सेवा मुहैया कराने पर निरंतर ध्यान देने की आवश्यकता होती थी। एआई सिस्टम का विकास और उनका रखरखाव अलग तरह की मानवीय पूंजी की मांग करता है। इसमें अक्सर तकरीबन एक दशक के अनुभव की आवश्यकता होती है। इसके अलावा संगठन के भीतर एआई के इस्तेमाल ने उत्पादकता में इजाफा किया है और कोडिंग के लिए कच्चे श्रम की जरूरत कम हुई है। ऐसे में बड़ी आईटी कंपनियों की आदर्श जनांकिकी प्रोफाइल भी उम्रदराज होगी। कंपनियां खुद ऐसी स्थिति की ओर परिवर्तन कर रही हैं जहां मझोले स्तर के कर्मचारियों के बजाय पिरामिडनुमा ढांचा हो जहां प्रशिक्षण से निकले युवा अधिक तादाद में हों। पांच साल पहले महामारी के तुरंत बाद भर्तियों में आई तेजी ने भी उनकी मदद की है।
अब देश की प्रमुख आईटीईएस कंपनियों के लिए यह बताना महत्वपूर्ण है कि यह बदलाव उनके भविष्य के कारोबारी मॉडल, उनकी आय योजना और उनके नियुक्ति संबंधी निर्णयों पर क्या असर डालेगा। अर्थव्यवस्था के लिए उनका महत्त्व और देश के मध्य वर्ग की समृद्धि को कम करके नहीं आंका जा सकता है। यह न केवल उनके निवेशकों और ग्राहकों के बल्कि व्यापक अर्थव्यवस्था के भी हित में है कि उनके कारोबारी मॉडल में बदलाव का एक स्पष्ट मार्ग प्रस्तुत किया जाए और उसे समझा जाए। वे एआई के दौर से संबद्ध उच्च मूल्य वाले कामों को किस प्रकार आगे ले जाना चाहते हैं? वे विश्व स्तर पर दूसरों से अलग कैसे होंगे और इस समय जब छोटी एआई स्टार्टअप अपने बल बूते पर बड़े ग्राहकों को सेवा देने की बात कर रही हैं तो वे कैसे मूल्यवर्धन करेंगे?
सबसे अहम बात यह है कि नए कारोबारी मॉडल के लिए जरूरी मानव संसाधन को तैयार करने और बरकरार रखने की उनकी योजना क्या है? उनकी श्रम शक्ति में शामिल मझोले कर्मचारियों के पास जहां कई सालों का अनुभव होगा वहीं सवाल यह रहेगा कि क्या उन्होंने अपने कौशल को समय के साथ उन्नत किया अथवा नहीं। भारत में कंपनियां अक्सर आंतरिक स्तर पर कौशल उन्नयन को लेकर संदेह की स्थिति में रहती हैं। परंतु अब उनको पुनर्विचार करना पड़ेगा तभी वे एक उच्च मूल्य, उच्च मार्जिन, उच्च कौशल वाला कारोबारी मॉडल तैयार कर पाएंगी। इनमें से कुछ चिंताएं विगत कुछ समय से नेतृत्व वाले पदों पर बैठे लोगों द्वारा भी जताई जा रही हैं। यह देखना सुखद है कि बदलाव के मोर्चे पर भी कदम उठाए जा रहे हैं। बहरहाल इस बदलाव के लिए समग्र रणनीति विकसित और संप्रेषित करने की जरूरत है। आईटी कारोबार के अलावा देश में आईटी शिक्षा की भी जरूरत है।