भारतीय बाजार इस वर्ष अभी तक नए शीर्ष स्तर को छूने में कामयाब नहीं हुए हैं। जूलियस बेयर के प्रबंध निदेशक और एशिया प्रमुख (शोध) मार्क मैथ्यूज ने पुनीत वाधवा के साथ बातचीत में कहा है कि भारत वैश्विक पोर्टफोलियो के लिए एकमात्र अनिवार्य उभरता बाजार है। उनका मानना है कि भारत की दो बड़ी ताकत, इसकी आबादी और ‘जुगाड़’ यानी कर दिखाने की भावना है। बातचीत के संपादित अंश:
भारत को छोड़कर वैश्विक वित्तीय बाजारों के लिए आप वर्ष 2025 का आकलन कैसे करते हैं?
एक शब्द में कहा जाए तो यह आश्चर्यजनक है। सच कहूं तो अगर आप मुझसे जनवरी 2025 में पूछते कि वैश्विक बाजार इस साल कैसा प्रदर्शन करेंगे तब मैं कहता कि 50 प्रतिशत से अधिक संभावना है कि इनमें गिरावट होगी। फिर भी हम यहां हैं, प्रमुख इक्विटी सूचकांक, एसऐंडपी 500 में 17 प्रतिशत की बढ़त है जो दीर्घकालिक औसत से कहीं बेहतर है। यह एक हैरान करने वाला वर्ष रहा है। इससे भी अधिक अविश्वसनीय बात यह है कि सभी उभरते बाजार 30 प्रतिशत से अधिक ऊपर हैं। निश्चित रूप से यह एक आश्चर्यजनक वर्ष रहा है और इसके कारण मैं अगले साल के बारे में भविष्यवाणी करने में कुछ असहज महसूस करता हूं।
अमेरिकी बाजारों ने 2025 में लगातार ऊंचाई हासिल की हैं जबकि भारतीय बाजारों ने बेंचमार्क स्तर पर सिर्फ एक बार ऐसा किया है। क्या आप कहेंगे कि भारतीय बाजार अमेरिका से अलग हो गए हैं?
नहीं। अमेरिकी डॉलर के संदर्भ में निफ्टी लगभग 6 से 7 प्रतिशत ऊपर है। यह पूरी तरह से अच्छी वापसी है। सालाना, यह लगभग 11 से 12 प्रतिशत है। इसलिए, ऐसा नहीं है कि भारत के बाजार में गिरावट आ गई है लेकिन इसने अमेरिका और अन्य उभरते बाजारों की तुलना में कम प्रदर्शन किया है। इसके दो मुख्य कारण हैं। पहला, चीन। एक साल पहले, भारतीय फंड प्रबंधकों को डर था कि चीन फिर से निवेश योग्य बन जाएगा और ऐसा हुआ है। दूसरा, भारत में कंपनी जगत की आमदनी ने निराश किया है। सितंबर के अंत में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) कटौती लागू होने के साथ-साथ मौद्रिक सुगमता, आयकर कटौती और एक अनुकूल आधार के कारण, वित्त वर्ष 2027 में दोहरे अंकों में आय वृद्धि देखी जा सकती है। सितंबर तिमाही के नतीजों में चूक की संख्या पिछली दो तिमाहियों की तुलना में आधी है। नतीजे पेश करने वाली करीब 20 प्रतिशत कंपनियों ने अनुमानित नतीजों से कम प्रदर्शन किया है जबकि पिछली दो तिमाहियों में यह आंकड़ा लगभग 40 प्रतिशत था।
क्या 2025 में भारतीय बाजार उबाऊ थे क्योंकि जोखिम-प्रोत्साहन अनुपात दूसरी जगह अनुकूल लग रहा था, रिटर्न के लिहाज से निराशाजनक था या निवेश के अवसरों की कमी के कारण यह चुनौतीपूर्ण था?
मैं भारत का वर्णन इस साल एक बेहद उबाऊ बाजार के तौर पर करूंगा। सच कहूं तो, मैं चीन में हो रहे घटनाक्रमों पर ध्यान दे रहा हूं जिसने एक बड़ी वापसी की है। चीन ने कई उच्च-प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति दिखाई है।
क्या अमेरिकी बाजार, विशेष रूप से ‘मैग्निफिसेंट 7’ तकनीकी शेयरों के प्रदर्शन को देखते हुए, बुलबुले के करीब है?
आप बुलबुले को या तो मूल्यांकन से या तकनीकी पहलू से परिभाषित कर सकते हैं। हैरानी की बात यह है कि किसी भी पैमाने से अमेरिकी बाजार अभी तक बुलबुले वाले रुझान में नहीं है। नैस्डेक-100 अपने दीर्घकालिक रुझान से बहुत अधिक अलग नहीं दिख रहा है जो 1998–1999 के डॉट-कॉम बुलबुले के विपरीत है जो औसत से लगभग तीन मानक विचलन ऊपर था। फिलहाल यह रुझान से एक मानक विचलन से भी कम ऊपर है।
जहां तक मूल्यांकन की बात है, मैग्निफिसेंट 7 का अग्रिम कीमत-कमाई (पीई) अनुपात अगले 12 महीनों के लिए लगभग 33 गुना और अगले 24 महीनों के लिए लगभग 23 गुना है। इसके विपरीत, 1990 के दशक के बुलबुले के दौरान, प्रमुख तकनीकी शेयर लगभग 50 गुना पीई पर कारोबार कर रहे थे। ऐसे में अमेरिकी बाजार अभी तक बुलबुले वाले क्षेत्र में नहीं है।
क्या भारतीय आईटी कंपनियों द्वारा एआई में निवेश की कमी चिंता का विषय है?
नहीं, बल्कि इसका उलटा है। वैश्विक तकनीकी कंपनियों द्वारा आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) पर किया जा रहा व्यापक खर्च ही खतरा है। इस साल, शीर्ष पांच कंपनियां 375 अरब डॉलर का निवेश कर रही हैं और अगले तीन वर्षों में, लगभग 1.1 लाख करोड़ डॉलर का निवेश करेंगी जो जर्मनी के शेयर बाजार के आकार से भी बड़ा है। खतरा यह है कि ये कंपनियां पर्याप्त रिटर्न हासिल नहीं कर सकती हैं । एआई वास्तव में उत्पादकता और दक्षता लाभ के माध्यम से व्यापक अर्थव्यवस्था को लाभ पहुंचाएगा लेकिन जो कंपनियां बड़े अग्रिम निवेश कर रही हैं उन पर वास्तविक जोखिम है।
आप अगले साल भारतीय इक्विटी से कितने रिटर्न की उम्मीद करते हैं?
लंबी अवधि में मेरा मानना है कि स्मॉल और मिड-कैप वाले शेयर बेहतर प्रदर्शन करेंगे क्योंकि उनके पास बढ़ने के लिए अधिक गुंजाइश है। अगले 12 महीनों के लिए, मुझे लगभग 15 प्रतिशत रिटर्न की उम्मीद है जो वित्त वर्ष 2027 में निफ्टी के लिए लगभग 16-18 प्रतिशत की अपेक्षित आय वृद्धि से प्रेरित होगा। बाजार अपने समकालीन बाजारों के मुकाबले महंगा नहीं है और जैसे-जैसे आमदनी की रफ्तार बढ़ेगी तब पुनर्मूल्यांकन की गुंजाइश भी होगी।
अगले तीन से पांच वर्षों में भारतीय बाजारों को क्या प्रेरित कर सकता है?
भारत की दो बड़ी ताकतें हैं, इसकी आबादी और इसका ‘जुगाड़’ यानी ‘कर दिखाने की भावना’। भारत में किसी भी अन्य देश की तुलना में अधिक लोग कमाई वाले मुख्य उम्र (30-60 वर्ष) में प्रवेश कर रहे हैं और यह लाभ करीब 2060 तक बने रहना चाहिए। दूसरा कारक, जुगाड़ है जो भारत के सकारात्मक, समस्या-समाधान करने वाले रवैये को दर्शाता है जिसकी अक्सर अन्य जगहों पर कमी दिखती है।
सोने और चांदी पर आपकी क्या राय है?
ऐतिहासिक रूप से, सोने ने डॉलर में लगभग 5 प्रतिशत सालाना रिटर्न दिया है और यह मुद्रास्फीति से बचाव के रूप में कारगर है। हाल में कीमतों में वृद्धि असामान्य नहीं है, यह आंशिक रूप से भू-राजनीतिक तनाव और रूस की संपत्तियों की जब्ती के कारण है, जिसने पश्चिमी देशों की वित्तीय प्रणालियों में भरोसे को कम कर दिया है। मुझे उम्मीद है कि सोने में मामूली गिरावट आएगी और यह एक वर्ष के भीतर 4,500 डॉलर तक बढ़ने से पहले लगभग 3,500 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच जाएगा। कुछ आशावादी अनुमानों में इसके आखिरकार 6,600 डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद जताई है और मुझे लगता है कि यह संभव है।