वैश्विक अनिश्चितता के इस दौर में भारतीय रिजर्व बैंक की छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने अनिश्चितता में और इजाफा नहीं करके बेहतर काम किया है। वित्तीय बाजारों की उम्मीद के मुताबिक ही बुधवार को एमपीसी ने एकमत होकर यह निर्णय लिया कि नीतिगत रीपो दर में 25 आधार अंकों की कटौती करके उसे 6 फीसदी किया जाएगा। उसने नीतिगत रुख को भी तटस्थ से बदलकर समायोजन वाला कर दिया।
इसका अर्थ यह है कि अगर कोई आर्थिक झटका नहीं लगा तो नीतिगत रीपो दर में और इजाफा नहीं किया जाएगा। एमपीसी अपनी आगामी बैठक में केवल नीतिगत दर में कटौती करने या यथास्थिति बरकरार रखने पर विचार करेगा। हालिया अतीत में रिजर्व बैंक द्वारा नीतिगत दरों में बदलाव और नकदी संबंधी उपायों की बदौलत इनका असर जमीन तक पहुंचने की गति में सुधार होना चाहिए।
अमेरिका द्वारा टैरिफ में भारी इजाफा किए जाने के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता तेजी से बढ़ी है लेकिन इस सप्ताह एमपीसी द्वारा लिया गया निर्णय काफी बेबाक है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की दर में कमी आई है। मोटे तौर पर ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि खाद्य मुद्रास्फीति में गिरावट आई है। उम्मीद है कि यह रिजर्व बैंक के मध्यम अवधि के 4 फीसदी के लक्ष्य के आसपास ही रहेगी।
रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष के लिए मुद्रास्फीति संबंधी अनुमान को 4.2 फीसदी से कम करके 4 फीसदी कर दिया है। वित्त वर्ष की पहली तीन तिमाहियों में मुद्रास्फीति की दर लक्ष्य से कम बनी रहने की उम्मीद है। व्यापारिक तनावों के कारण धीमी वैश्विक वृद्धि की आशंकाओं को देखते हुए और अमेरिका द्वारा चीन के आयात के लिए अपने रास्ते लगभग बंद कर लेने के कारण शेष विश्व में कीमतों पर नकारात्मक दबाव निर्मित होगा।
हाल के दिनों में कच्चे तेल तथा अन्य जिंसों की कीमत में भी काफी गिरावट आई है। अमेरिका को होने वाले भारतीय निर्यात पर उच्च टैरिफ तथा व्यापक अनिश्चितता भारत की वृद्धि पर भी असर डालेगी। रिजर्व बैंक ने वर्ष के लिए अपने वृद्धि अनुमान में 20 आधार अंकों की कमी करके उसे 6.5 फीसदी कर दिया है। अनिश्चितता को देखते हुए यह मानना उचित ही है कि वृद्धि अनुमानों को संशोधित करके कम करने के आसार अधिक रहेंगे।
भविष्य में दरों संबंधी कदमों की बात करें तो अगर यह मान लिया जाए कि मुद्रास्फीति के मौजूदा पूर्वानुमान बरकरार रहेंगे तो अधिक से अधिक 25 से 50 आधार अंकों की राहत की गुंजाइश रहेगी। बहरहाल, ये सामान्य समय नहीं है। वैश्विक अर्थव्यवस्था विश्व युद्ध के बाद के अब तक के सबसे बड़े झटके से गुजर रही है और यह कहना मुश्किल है कि हालात कब तक स्थिर होंगे और वैश्विक अर्थव्यवस्था कैसा रुख लेगी।
भारत की मौद्रिक नीति की बात करें तो घरेलू कीमतें जहां स्थिर रह सकती हैं वहीं मुद्रा पर दबाव से जोखिम उत्पन्न हो सकता है। हालांकि ताजा मौद्रिक नीति रिपोर्ट में पेशेवर पूर्वानुमान लगाने वालों ने जो अनुमान लगाए हैं वे दिखाते हैं कि चालू वर्ष में देश का चालू खाते का घाटा सकल घरेलू उत्पाद का करीब एक फीसदी होगा। हालांकि वैश्विक अनिश्चितता के बीच वित्तीय चुनौतियां बरकरार रहेंगी। ऐसे में दीर्घावधि के और पोर्टफोलियो निवेशक भी शायद अनिश्चितता को देखते हुए निवेश नहीं करना चाहें।
यह भी संभव है कि अमेरिका में मुद्रास्फीति की दर बढ़े क्योंकि टैरिफ में इजाफा किया गया है। ऐसे में फेडरल रिजर्व भी मौद्रिक नीति में अनुमानित राहत नहीं दे पाएगा। नीतिगत सख्ती की संभावना को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता है। अगर ऐसा हुआ तो भारत के लिए मुद्रा के मोर्चे पर हालात और जटिल हो जाएंगे। हालांकि रुपये का अवमूल्यन कुछ हद तक भारत को लाभ पहुंचाएगा और उच्च टैरिफ के नुकसान को थोड़ा कम करेगा। लब्बोलुआब यह है कि इस अनिश्चित माहौल में केंद्रीय बैंक को सावधानी बरतनी होगी। वित्तीय बाजारों के लिए भी यही अच्छा होगा कि वे वृद्धि पर संभावित दबाव के चलते दरों में अधिक कटौती पर दांव नहीं लगाएं।