अमेरिकी व्यापार नीति के कारण उत्पन्न वैश्विक अनिश्चितताओं ने आर्थिक पूर्वानुमान लगाने वालों और कारोबारी नियोजकों की जिंदगी को अत्यधिक कठिन बना दिया है। यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि तथाकथित ‘जवाबी शुल्क’ के क्रियान्वयन पर 90 दिन का स्थगन समाप्त होने के बाद वास्तव में क्या होगा? यह भी देखने वाली बात होगी कि अमेरिका कितने देशों के साथ कारोबारी समझौता कर सकेगा और किस टैरिफ दर पर? अगर अमेरिका किसी समझौते पर नहीं पहुंच पाता तो क्या वार्ता के लिए और समय दिया जाएगा? इसके अलावा चीन पर लगाए गए प्रतिबंधात्मक टैरिफ का क्या होगा? ऐसे कई अनसुलझे प्रश्न हैं जो वैश्विक वृद्धि की गति तथा अलग-अलग देशों की वृद्धि की गति निर्धारित करेंगे। इनमें से कुछ जटिलताएं अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ द्वारा मंगलवार को जारी विश्व आर्थिक परिदृश्य (डब्ल्यूईओ) के आर्थिक आकलन में भी नजर आती हैं।
डब्ल्यूईओ का अप्रैल संस्करण तीन परिदृश्य प्रस्तुत करता है। पहला है ‘संदर्भ परिदृश्य’ जो 4 अप्रैल तक की गई घोषणाओं पर आधारित है। दूसरा मार्च तक की सूचनाओं पर आधारित है और तीसरा 9 अप्रैल के बाद के मॉडल के परिदृश्य पर आधारित है जो ट्रंप शुल्क पर रोक और अतिरिक्त रियायतों के प्रभाव को मापता है। संदर्भ परिदृश्य के अधीन आमतौर पर तुलनात्मक आंकड़े इस्तेमाल किए जाते हैं। इसके मुताबिक वर्ष 2024 में वैश्विक वृद्धि 3.3 फीसदी थी जिसके 2025 में कम होकर 2.8 फीसदी रहने का अनुमान है। 2026 में इसके सुधरकर 3 फीसदी हो जाने की उम्मीद है। डब्ल्यूईओ के जनवरी अपडेट से तुलना करें तो वैश्विक वृद्धि 2025 में 0.5 फीसदी तक कम रह सकती है। अमेरिका के वृद्धि का अनुमान भी 2025 में 0.9 फीसदी कम करके 1.8 फीसदी कर दिया गया। अमेरिकी वृद्धि पूर्वानुमान में 0.4 फीसदी की कमी टैरिफ के कारण है जो अमेरिकी नागरिकों या कंपनियों को रास नहीं आएगी। चीन के लिए पूर्वानुमान में 0.6 फीसदी की कमी की गई है और 2025 में उसके 4 फीसदी की दर से बढ़ने की उम्मीद है। भारत पर इसका मामूली प्रभाव पड़ेगा। भारतीय अर्थव्यवस्था चालू वर्ष में 6.2 फीसदी की दर से विकसित होगी जो जनवरी के पूर्वानुमान से 0.3 फीसदी कम है।
बहरहाल, यह बात ध्यान देने लायक है कि आईएमएफ के ताजा पूर्वानुमान ऐसे समय पर आए हैं जब अनिश्चितता बहुत बढ़ी हुई है। यह संभव है कि वास्तविक परिणाम इन अनुमानों से काफी अलग हों। अमेरिका द्वारा टैरिफ में इजाफे का असर केवल व्यापार तक सीमित नहीं रहेगा। वैश्विक व्यापार में वृद्धि 2024 के 3.8 फीसदी से कम होकर 1.7 फीसदी रह जाने का उम्मीद है। कारोबारी झटका वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को बुनियादी रूप से बदल सकता है जो अत्यधिक जटिल है और कई दशकों में तैयार हुई है। ऐसे में संसाधनों का अपेक्षाकृत कम प्रतिस्पर्धी तरीकों से नए सिरे से आवंटन करना होगा। इससे समस्त उत्पादकता और वृद्धि प्रभावित होगी। इससे मुद्रास्फीति में इजाफा हो सकता है। अमेरिकी मुद्रास्फीति की दर के अनुमान को संशोधन करके एक फीसदी बढ़ाया गया है। इससे अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के नीतिगत विकल्प बदल सकते हैं। फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने अपनी टिप्पणियों में कहा कि टैरिफ का मुद्रास्फीतिक प्रभाव निरंतर जारी रह सकता है।
मुद्रास्फीति के मोर्चे पर अनिश्चितता लाने के अलावा अमेरिकी व्यापार नीति अमेरिकी वित्तीय बाजारों तथा डॉलर के मूल्य में भी अस्थिरता ला सकती है। ये सारी बातें पूंजी के प्रवाह को प्रभावित करेंगी और वित्तीय हालात को तंग बना सकती हैं। भविष्य में हालात किस करवट बैठेंगे इसे समझ पाना मुश्किल है लेकिन हालात इस वर्ष के आरंभ जैसे बेहतर नहीं रहेंगे। भारत की वृद्धि पर अब तक सीमित प्रभाव रहा है। बहरहाल, नीतिगत प्रबंधकों को उभरती चुनौतियों और अवसरों दोनों को लेकर सतर्क रहना होगा। फिलहाल जो हालात हैं उनमें अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार वार्ता को जल्दी अंजाम देना ही भारत के हित में होगा।