अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) ने इस वर्ष दुनिया भर में कच्चे तेल की मांग में वृद्धि के नए अनुमान पेश किए हैं। नए अनुमानों में आगामी वर्ष में तेल की मांग वृद्धि में 3 लाख बैरल रोजाना की तीव्र गिरावट का अनुमान जताया गया है। यह पहले लगाए गए 10 लाख बैरल रोजाना की मांग वृद्धि के अनुमान से काफी कम है और संभवत: यह नीतिगत अनिश्चितता और अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की टैरिफ संबंधी घोषणाओं से उत्पन्न कारोबारी जंग की स्थिति में आर्थिक गतिविधियों के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों को दर्शाता है।
यह तेल बाजार में घटित कई अन्य घटनाओं के बीच हुआ है जिनमें तेल उत्पादकों के समूह द्वारा अगले महीने उत्पादन बढ़ाने का निर्णय भी शामिल है। बहरहाल, आईईए के नए अनुमान बाजार के लिए पूरी तरह चौंकाने वाले नहीं हैं। उच्च आपूर्ति और कम मांग के अनुमानों का असर तेल कीमतों पर बीते कुछ सप्ताहों के दौरान पहले ही नजर आने लगा था। पिछले सप्ताह एक समय कच्चा तेल 60 डॉलर प्रति बैरल की दर पर कारोबार कर रहा था। कई एजेंसियों ने आगे के लिए कीमतों के अपने अनुमान कम किए थे हालांकि कुछ का ही यह मानना था कि वह 60 डॉलर प्रति बैरल के नीचे जाएगा।
महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आईईए ने अनुमान जताया कि कई ऐसे हालात हैं जिनके चलते अगले वर्ष भी कच्चे तेल की खपत वृद्धि में धीमापन जारी रह सकता है। एजेंसी ने सुझाव दिया कि वृहद आर्थिक अनिश्चितता भी इसके लिए आंशिक रूप से जिम्मेदार है लेकिन बिजली से चलने वाले वाहनों की निरंतर मांग भी इसकी एक वजह है। कुल मिलाकर 2026 के आरंभ में 17 लाख बैरल प्रतिदिन तक अतिरिक्त उत्पादन हो सकता है जिसके लिए आंशिक रूप से कार्टेल के बाहर के देशों में होने वाला निष्कर्षण भी एक वजह है।
खाड़ी के कुछ देश और रूस अपने बजट घाटे की भरपाई के लिए उच्च तेल कीमतों पर निर्भर हैं। रूस तो अपनी सैन्य महत्त्वाकांक्षाओं के लिए भी इस पर निर्भर है और उसे आगे चलकर कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। बहरहाल, अमेरिका में उत्पादन पर असर बहुत स्पष्ट नहीं है। कुछ उत्तर अमेरिकी उत्पादक लागत के मामले में ऊपरी छोर हैं और अगर तेल कीमतें लंबे समय तक 60-65 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर बनी रहती हैं तो उनके लिए परिचालन मुश्किल हो सकता है।
इन देशों के नेताओं के सामने मुश्किल विकल्प हैं। सऊदी अरब ने कीमतों को नियंत्रित करने का प्रयास करने के बजाय उत्पादन बढ़ाने का निश्चय किया है। हालांकि इस वर्ष उनके बजट घाटे का आधार सकल घरेलू उत्पाद के 6 फीसदी के बराबर बढ़ रहा है। अमेरिकी नेतृत्व ने वृद्धि को लेकर भरोसा बहाल करने के बजाय नीतिगत अनिश्चितता बढ़ाने पर जोर दिया है। परंतु आगे चलकर उसे अपने निर्णय पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है।
भारत जीवाश्म ईंधन का विशुद्ध आयातक है और उसके लिए कच्चे तेल की कम कीमतें लाभदायक साबित हो सकती हैं। निश्चित तौर पर इससे आयात बिल कम होगा लेकिन यह याद रखना भी आवश्यक है कि यहां भी जटिलताएं हैं। बीते सालों में ईंधन सब्सिडी में भारी कमी आने के बावजूद सार्वजनिक वित्त के साथ तेल कीमतों का रिश्ता जटिल है। बाह्य खाते पर प्रभाव जटिलताओं से भरा हुआ है। आयात का मूल्य कम होगा लेकिन परिशोधित तेल का निर्यात मूल्य भी घटेगा।
कुल मिलाकर वृहद आर्थिक अनिश्चितता जिसके चलते दुनिया भर में तेल की मांग में कमी आई है, वह अन्य निर्यात की मांग भी कम करेगा। तेल आयात का कम बिल चालू खाते पर अनुकूल असर डालेगा लेकिन वैश्विक अनिश्चितता के कारण वित्तीय चुनौतियां सामने आ सकती हैं। सरकार को इस बाजार पर नजर रखनी होगी। कमजोर मांग के कारण शायद तेल कीमतों में कमी का पूरा लाभ न मिल सके। निरंतर बरकरार वैश्विक अनिश्चितता तथा वैश्विक वृद्धि पर जोखिम निकट भविष्य में नीतिगत चिंता का विषय बने रहेंगे।