facebookmetapixel
क्या रिटायरमेंट के लिए काफी होगा ₹1 करोड़? सही कॉपर्स का अनुमान नहीं लगा पा रहें भारतीयLIC MF ने कंजम्पशन थीम पर उतारा नया फंड, ₹5,000 से निवेश शुरू; किसे लगाना चाहिए पैसाBihar Elections 2025: PM मोदी का RJD-कांग्रेस पर हमला, बोले- महागठबंधन आपस में भिड़ेगाIIHL और Invesco ने मिलाया हाथ, म्युचुअल फंड बिजनेस के लिए ज्वाइंट वेंचर शुरूOYO Bonus Issue: शेयरहोल्डर्स के लिए खुशखबरी, ओयो ने बोनस इश्यू के एप्लीकेशन की डेडलाइन बढ़ाईAadhaar Update Rules: अब ऑनलाइन होगा सब काम, जानें क्या हुए नए बदलावMarket Outlook: कंपनियों के Q2 नतीजों, ग्लोबल रुख से तय होगी भारतीय शेयर बाजार की चालMCap: रिलायंस ने फिर मारी बाजी, निवेशकों की झोली में ₹47 हजार करोड़ की बढ़ोतरीFY26 में GST संग्रह उम्मीद से अधिक, SBI रिपोर्ट ने अनुमानित नुकसान को किया खारिजतीन महीने के बाद FPIs ने भारतीय शेयरों में डाले ₹14,610 करोड़, बाजार में लौटे निवेशक

Editorial: जलवायु मुद्दे और मौद्रिक नीति

वृद्धि और मुद्रास्फीति दोनों अपेक्षाकृत अनुकूल हैं और टिकाऊ आधार पर चार फीसदी की मुद्रास्फीति दर हासिल करने की बात बाजार प्रतिभागियों द्वारा समझी जा सकती है।

Last Updated- April 07, 2024 | 9:13 PM IST
RBI MPC Meet

भारतीय रिजर्व बैंक की इस वित्त वर्ष में मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की पहली बैठक ने किसी को चकित नहीं किया। रिजर्व बैंक के गवर्नर का वक्तव्य, मौद्रिक नीति संकल्प तथा नीति प्रस्तुत होने के बाद मीडिया के साथ संवाद में रिजर्व बैंक के अधिकारियों ने यही कहा कि एमपीसी टिकाऊ आधार पर 4 फीसदी मुद्रास्फीति दर के कानूनी अनुदेश का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध है। इस बात का स्वागत किया जाना चाहिए।

इसके परिणामस्वरूप एमपीसी ने नीतिगत रीपो दर को लगातार सातवीं बार 6.5 फीसदी के स्तर पर अपरिवर्तित रहने दिया। चूंकि एमपीसी ने चालू वर्ष में अर्थव्यवस्था के 7 फीसदी की दर से विकसित होने का अनुमान जताया है, ऐसे में यह लगातार चौथा वर्ष होगा जब कम से कम 7 फीसदी की वृद्धि दर हासिल होगी। यह केंद्रीय बैंक को पर्याप्त नीतिगत गुंजाइश मुहैया कराता है कि वह मुद्रास्फीति पर ध्यान केंद्रित करे और अवस्फीति की प्रक्रिया को पूरा होने दे।

वृद्धि और मुद्रास्फीति दोनों अपेक्षाकृत अनुकूल हैं और टिकाऊ आधार पर चार फीसदी की मुद्रास्फीति दर हासिल करने की बात बाजार प्रतिभागियों द्वारा समझी जा सकती है परंतु यह आकलन भी करना होगा कि लक्ष्य कब तक हासिल होने की संभावना है।

मौद्रिक नीति समिति का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में मुद्रास्फीति की दर औसतन 4.5 फीसदी रहेगी जो लक्ष्य से ऊपर है। एमपीसी में तथा अन्य जगह यह दलील दी गई है कि 2 फीसदी की वास्तविक नीतिगत दर वृद्धि निष्कर्षों को क्षति पहुंचा सकती है।

परंतु समिति का एक नजरिया यह भी है कि वास्तविक नीतिगत दर को मुद्रास्फीति के साथ देखा जाना चाहिए जिसके चालू वित्त वर्ष में लक्ष्य से ऊपर बने रहने की उम्मीद है। ऐसे में एमपीसी कितने समय तक रीपो दर को 6.5 फीसदी के स्तर पर बनाए रखेगी? मौद्रिक नीति रिपोर्ट भी गत सप्ताह जारी की गई थी और उसमें भी कुछ दिलचस्प संकेत हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सामान्य मॉनसून और किसी नीतिगत झटके के सामने न आने की संभावना के साथ ढांचागत मॉडल यही बताता है कि 2025-26 तक मुद्रास्फीति की दर औसतन 4.1 फीसदी रहेगी। पेशेवर अनुमान लगाने वालों का कहना है कि चालू वित्त वर्ष में नीतिगत दरों में 50 आधार अंकों की कमी आ सकती है।

वृद्धि के मोर्चे पर राहत को देखते हुए यह संभव है कि एमपीसी शायद इस बात को लेकर पूरी तरह आश्वस्त होना चाहे कि मुद्रास्फीति टिकाऊ आधार पर लक्ष्य के करीब रहेगी और उसके बाद ही वह मौद्रिक राहत की दिशा में बढ़े। मुद्रास्फीति का तय लक्ष्य हासिल करने में मुख्य समस्या खाद्य कीमतों की अस्थिरता की वजह से देखने को मिल रही है।

उदाहरण के लिए फरवरी में खाद्य मुद्रास्फीति की दर 7.8 फीसदी थी और इसने हेडलाइन दर में 70 फीसदी योगदान किया। कोर मुद्रास्फीति 3.4 फीसदी के साथ चालू श्रृंखला में निचले स्तर पर रही। खाद्य कीमतों की अस्थिरता का अनुमान लगाना हमेशा मुश्किल होता है। खासतौर पर अतिरंजित मौसम की घटनाओं को देखते हुए। हकीकत तो यह है कि खाद्य कीमतों की अस्थिरता निकट भविष्य में और मुश्किल हालात पैदा कर सकती है।

एमपीआर में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि मुद्रास्फीति और उसकी अस्थिरता दोनों समय के साथ बढ़ सकते हैं। लगातार मौसमी झटकों के चलते सख्त मौद्रिक नीति की आवश्यकता पड़ सकती है। मुद्रास्फीति संबंधी अनुमान में तब्दीली आ सकती है और केंद्रीय बैंक की विश्वसनीयता प्रभावित हो सकती है।

ऐसे में मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने के लिए उच्च नीतिगत ब्याज दर की आवश्यकता होगी और यह उत्पादन पर असर डालेगा। जलवायु मुद्दों के साथ-साथ खाद्य अर्थव्यवस्था का प्रबंधन मध्यम से लंबी अवधि में मौद्रिक नीति पर अहम असर डालेगा। फिलहाल तो ध्यान रबी के उत्पादन और मॉनसून पर रहेगा।

First Published - April 7, 2024 | 9:13 PM IST

संबंधित पोस्ट