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Editorial: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का एक विशिष्ट करियर

आजाद भारत में कम ही लोग होंगे जिनका करियर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के समान लंबा, विविधतापूर्ण और प्रभावशाली रहा हो।

Last Updated- April 05, 2024 | 11:56 PM IST
Dr. Manmohan Singh will be remembered as an economic reformer, visionary leader, leaders and industry paid tribute आर्थिक सुधारक, दूरदर्शी नेता के रूप में याद आएंगे डॉ. मनमोहन सिंह, नेताओं और उद्योग जगत ने दी श्रद्धांजलि

इस सप्ताह राज्य सभा से सेवानिवृत्त होने के साथ ही पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का लंबा सार्वजनिक करियर समाप्त हो गया। डॉ. सिंह ने कई तरह से देश की सेवा की: अर्थशास्त्री, अफसरशाह, नियामक, सांसद, कैबिनेट मंत्री और प्रधानमंत्री के रूप में भी।

आजाद भारत में कम ही लोग होंगे जिनका करियर उनके समान लंबा, विविधतापूर्ण और प्रभावशाली रहा हो। जैसे-जैसे समय व्यतीत हो रहा है, इस बात की संभावना है कि केंद्रीय वित्त मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल (जब उन्होंने 1991 के आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत की) को इतिहासकार अलग से चिह्नित करेंगे।

यह उस दृष्टि से अलग होगा जिससे कि 7 रेसकोर्स में बतौर प्रधानमंत्री उनके एक दशक के कार्यकाल से अलग होगा। उस दौर में कोई अन्य अर्थशास्त्री या राजनेता भी वित्त मंत्री हो सकता था और उस समय जिस सुधार की तत्काल आवश्यकता थी उनके मानक भी व्यापक तौर पर ज्ञात ही थे और उसके लिए डॉ. सिंह की विशेषज्ञता की आवश्यकता नहीं थी। इसके बावजूद वित्त मंत्री ने जिस गंभीरता के साथ सुधारों के शुरुआती चरणों का प्रबंधन किया और बचाव किया, उसने भारत की अर्थव्यवस्था के भविष्य और उसके विकास की कहानी में विश्वास बहाल करने में बहुत अधिक सहायता की।

डॉ. सिंह के करियर की सबसे बड़ी कमजोरी को भी इस बात से महसूस किया जा सकता है कि वह राज्य सभा से सेवानिवृत्त हुए। भारत में जहां चुनावी लोकतंत्र हमेशा तकनीकी लोकतंत्र पर भारी पड़ता है और पड़ना ही चाहिए, वहां इस बात ने डॉ. सिंह के राजनीतिक प्रभाव को सीमित किया कि वह कभी जनता का सीधा समर्थन हासिल नहीं कर सके। कई लोग इसे ही 2004 से 2014 तक बतौर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के प्रधानमंत्री उनकी कमजोरी की वजह बताते हैं।

सरकार के संवैधानिक मुखिया डॉ. सिंह, पार्टी और राजनीतिक संगठन जो सोनिया गांधी को रिपोर्ट करता था, के बीच शक्ति विभाजन साफ था। यह तथ्य है कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के साझेदार चाहते थे कि सोनिया गांधी देश की प्रधानमंत्री बनें लेकिन उन्होंने इससे इनकार करके मनमोहन सिंह को चुना।

इसका मतलब यही था कि वह हमेशा उनकी राजनीतिक छाया में रहेंगे। परंतु यह भी कहना होगा कि इनकी असहमतियां कभी सार्वजनिक रूप से सामने नहीं आईं। जब सोनिया गांधी के बेटे कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के बनाए कुछ कानूनों को कैमरे के सामने फाड़ दिया तो यह अपने आप में एक स्तब्ध करने वाली घटना थी क्योंकि ऐसे विवादों का सामने आना एक दुर्लभ अवसर था।

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने गरीबी में कमी लाने, पात्रता योजनाओं के विस्तार और अधोसंरचना निवेश के क्षेत्र में जो कुछ हासिल किया उसका श्रेय शायद डॉ. सिंह को नहीं दिया जाए, खासकर यह देखते हुए कि उनके कार्यकाल के कई वर्ष ऐसे संकटों से निपटने में गुजर गए थे जो नीतिगत और प्रशासनिक पंगुता के कारण उत्पन्न हुए थे। इस पंगुता के पीछे अफसरशाही और मध्य वर्ग का असंतोष था।

बहरहाल वृद्धि के क्षेत्र में उस सरकार ने जो उपलब्धियां हासिल कीं वे मामूली नहीं थीं, भले ही उनमें पिछली सरकारों का भी योगदान हो। वैसे ही जैसे मौजूदा सरकार जो कल्याणकारी सुधारों और डिजिटल अधोसंरचना विकास को लेकर गर्व कर सकती है लेकिन इस कामयाबी का काफी श्रेय आधार जैसे नीतिगत निर्णयों को जाता है जो डॉ. सिंह के कार्यकाल में लिए गए।

आंतरिक राजनीतिक अपील के मामले में उनकी सरकार काफी कमजोर थी और उसे अपने कदमों के लिए बाहरी मंजूरी की दरकार रहती थी। परंतु दूसरी ओर इसमें भी बहुत कम संदेह था कि उस सरकार में क्षमता संपन्न लोगों, तकनीकी जानकारों और विशेषज्ञता रखने वालों का सम्मान भी था। एक अर्थशास्त्री के रूप में डॉ. सिंह का प्रशिक्षण बतौर प्रधानमंत्री उनके बहुत काम नहीं आया लेकिन अब लगता है कि उन्होंने जिस दौर में काम किया वह एक अलग दौर था।

First Published - April 5, 2024 | 11:21 PM IST

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