राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के अपने तिमाही आंकड़े जारी कर दिए हैं। अप्रैल और जून 2024 के बीच की अवधि में जीडीपी की वास्तविक सालाना वृद्धि 6.7 फीसदी रही। इसे गिरावट के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि पिछली तिमाही में जीडीपी में सालाना 7.8 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई थी। जबकि पिछले वर्ष की समान तिमाही की तुलना में यह 8.2 फीसदी अधिक थी।
ताजा आंकड़े अनुमान से कम हैं क्योंकि रिजर्व बैंक ने समान अवधि में वृद्धि के 7.1 फीसदी रहने का अनुमान जताया था। यह सवाल स्वाभाविक तौर पर पूछा जाएगा कि क्या रिजर्व बैंक का 7.2 फीसदी सालाना वृद्धि का अनुमान हासिल हो सकेगा या नहीं? बहरहाल, अभी यह अनुमान लगाना बहुत आसान होगा कि हम वृद्धि की गति पूरी तरह खो चुके हैं।
आंकड़ों की गहराई से पड़ताल कुछ आशाएं जगाती है कि इन अनुमानों को हासिल किया जा सकता है। सकल मूल्यवर्धन में इजाफा हुआ है। जीडीपी के दो सबसे प्रभावी घटक जिनकी वजह से तुलनात्मक मंदी आई है, वे हैं सरकारी व्यय और कृषि। इन दोनों के लिए क्षेत्रवार मुद्दे हैं। यह चुनावी साल था और यह संभव है कि आदर्श आचार संहिता ने सरकारी व्यय को उन सप्ताहों में प्रभावित किया हो जब चुनाव प्रचार चल रहा था।
जीडीपी में सरकारी व्यय की खपत इस तिमाही में एक अंक में रह गई। अनुमान के मुताबिक अब जबकि सरकार बन चुकी है और पूरे वर्ष का बजट भी पेश किया जा चुका है तो सरकारी व्यय भी सामान्य हो जाएगा। विशुद्ध कर वृद्धि भी इस तिमाही में कम रही। इसमें सालाना 4.1 फीसदी की धीमी वृद्धि दर्ज की गई। यह आकलन 2011-12 के स्थिर मूल्यों पर किया गया। 2023-24 में समान तिमाही में यह वृद्धि 7.9 फीसदी थी।
कृषि अवश्य मॉनसून पर निर्भर है। अगस्त के महीने में हमें कुछ अतिरिक्त बारिश देखने को मिली लेकिन मौसम विभाग ने अनुमान जताया है कि सितंबर में सामान्य बारिश होगी। अच्छे मॉनसून से कृषि उत्पादन बेहतर होता है। वास्तविक डर कम बारिश का नहीं बल्कि अतिवृष्टि या मॉनसून की वापसी में देरी है क्योंकि ऐसी स्थिति में गर्मियों में बोई गई फसल प्रभावित हो सकती है।
उत्तर-पश्चिम भारत से मॉनसून की वापसी 17 सितंबर से आरंभ हो जाएगी। इसमें किसी भी देरी पर करीबी नजर रखी जाएगी। बहरहाल तेज वर्षा और जलाशयों का स्तर रबी के उत्पादन में इजाफे में मदद करेगा। चूंकि देश में घरेलू मांग के खत्म होने की संभावनाओं को लेकर गंभीर चिंताएं प्रकट की गई हैं इसलिए अंतिम निजी खपत व्यय की मजबूती भी प्रासंगिक प्रतीत होती है।
स्थिर संदर्भ में देखा जाए तो इस तिमाही में इसकी हिस्सेदारी पिछले वर्ष की समान तिमाही की तुलना में बढ़ी है। इसकी एक वजह जहां धीमा सरकारी व्यय भी हो सकता है, वहीं सवाल है कि क्या निजी मांग में गिरावट की चिंताओं को भी कम से कम एक तिमाही के लिए टाला जा सकता है।
कुछ हालिया उच्च तीव्रता वाले आंकड़े जिनमें उपभोक्ता वस्तु कंपनियों के परिणाम शामिल हैं, वे जीडीपी के आंकड़ों की विपरीत बात बताते हैं। रिजर्व बैंक का अपना उपभोक्ता आत्मविश्वास सर्वेक्षण भी ऐसे नतीजे पेश करता है जिन्हें लेकर सतर्क रहने की आवश्यकता है। व्यापक स्तर पर देखा जाए तो वृद्धि की गति में निरंतर रिजर्व बैंक को यह अवसर देगी कि वह मुद्रास्फीति पर ध्यान केंद्रित करे और इसके निरंतर चार फीसदी के स्तर के साथ समन्वित होने तक प्रतीक्षा करे।