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Editorial: रोजगार निर्माण

अन्य चीजों के समान रहते बेरोजगारी दर में गिरावट और श्रम शक्ति भागीदारी दर में इजाफा यह बताता है कि अर्थव्यवस्था में रोजगार तैयार हो रहे हैं।

Last Updated- October 10, 2023 | 10:44 PM IST
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सोमवार को जारी सालाना सावधिक श्रम शक्ति सर्वे (पीएलएफएस) के जुलाई-जून 2022-23 के आंकड़े दिखाते हैं कि समग्र बेरोजगारी की दर 3.2 फीसदी के साथ छह वर्षों के निचले स्तर पर पहुंच गई है। अन्य चीजों के समान रहते बेरोजगारी दर में गिरावट और श्रम शक्ति भागीदारी दर में इजाफा यह बताता है कि अर्थव्यवस्था में रोजगार तैयार हो रहे हैं।

हां, रोजगार की गुणवत्ता पर अवश्य सवाल खड़े हो सकते हैं। 15 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के लिए श्रम शक्ति भागीदारी की दर 2017-18 के 49.8 फीसदी से बढ़कर ताजा सर्वेक्षण में 57.9 फीसदी हो गई है। वर्तमान साप्ताहिक स्तर पर भी आंकड़ों में सुधार हुआ है। गुणवत्ता के संदर्भ में अभी काफी कुछ वांछित है।

उदाहरण के लिए गैर कृषि क्षेत्रों की बात करें तो असंगठित माने जाने वाले प्रोपराइटरी और साझेदारी सेटअप में रोजगारशुदा लोगों का प्रतिशत 2020-21 के 71.4 फीसदी से बढ़कर ताजा सर्वेक्षण में 74.3 फीसदी हो गया है। हालांकि हालात में कुछ सुधार हुआ है लेकिन करीब 60 फीसदी कर्मचारियों के पास अपने काम का कोई लिखित अनुबंध नहीं है। असंगठित क्षेत्र के रोजगार आमतौर पर छोटे उपक्रमों में हैं जहां बड़े पैमाने पर काम नहीं होता है। नतीजतन वेतन भी काफी कम होता है।

भारत में रोजगार निर्माण की बात करें तो कई दीर्घकालिक मसले हैं और ये गुणवत्ता और मात्रा दोनों क्षेत्रों में हैं। एक समस्या श्रम शक्ति में महिलाओं की कम भागीदारी की भी रही है। संयोगवश पीएलएफएस के ताजा आंकड़े उसी दिन जारी किए गए जिस दिन हार्वर्ड विश्वविद्यालय की क्लॉडिया गोल्डिन को अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा की गई।

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उन्हें यह पुरस्कार ‘महिलाओं के श्रम बाजार संबंधी परिणामों के बारे में हमारी समझ बढ़ाने’ के लिए दिया गया। पीएलएफएस के ताजा आंकड़ों के मुताबिक शहरी और ग्रामीण इलाकों की महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी को मिला दिया जाए तो वह 15 वर्ष से अधिक आयु के मामलों में 2017-18 के 23.3 फीसदी से बढ़कर 2022-23 में 37 फीसदी हो गई। वहीं ताजा सर्वेक्षण में पुरुषों के तुलनात्मक आंकड़े 78.5 फीसदी रहे।

सैद्धांतिक तौर पर देखें तो महिलाओं की भागीदारी में इजाफा उत्साहित करने वाला है लेकिन एक हालिया अध्ययन में कहा गया कि महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी दर में इजाफा मुश्किल हालात का परिणाम हो सकता है। संभव है कि महामारी के शिकार परिवारों की आय बढ़ाने के लिए बड़ी तादाद में महिलाएं श्रम शक्ति का हिस्सा बन रही हों।

ऐसे में सरकार के लिए नीतिगत चुनौती न केवल अधिक सार्थक रोजगार तैयार करना है बल्कि ऐसे हालात बनाने की चुनौती भी होगी जो श्रम शक्ति भागीदारी बढ़ाने में मददगार साबित हों। बढ़ी हुई भागीदारी से उत्पादकता और वृद्धि में इजाफा करने में मदद मिलेगी। इस संदर्भ में हालांकि प्रोफेसर गोल्डिन के योगदान में अमेरिकी इतिहास के 200 वर्षों को शामिल किया गया है, वहीं उसमें भारत समेत सभी देशों के लिए उपयोगी सबक भी हैं।

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उदाहरण के लिए उन्होंने कहा है कि आर्थिक वृद्धि अपने आप में श्रम बाजार में महिला-पुरुष अंतर को कम नहीं करती। अगर सामाजिक और संस्थागत बाधाएं महिलाओं को श्रम बाजार से दूर रखेंगे तो केवल महिला शिक्षा पर जोर देने से भी लैंगिक अंतराल स्वत: कम नहीं होगा। लैंगिक दृष्टि से रूढ़िवादी समाजों में मातृत्व भी एक बड़ी वजह है। इसके अलावा भविष्य को लेकर महिलाओं की आकांक्षाएं भी अहम भूमिका निभाती हैं।

ऐसे में भारतीय नीति निर्माताओं के समक्ष सबसे बड़ा काम है अधिक सार्थक रोजगार तैयार करना। खासतौर पर संगठित क्षेत्र में रोजगार तैयार करना जो श्रम बाजार में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने को प्रोत्साहित करें। भारत की सेवा आधारित अर्थव्यवस्था शायद इसे हासिल करने के लिए बेहतर स्थिति में है। महिला सुरक्षा समेत सामाजिक माहौल से संबद्ध मसलों को हल करने से भी श्रम शक्ति में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए अनुकूल माहौल बनेगा।

First Published - October 10, 2023 | 10:44 PM IST

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