जेपी मॉर्गन ने गत सप्ताह यह घोषणा की कि भारत सरकार के बॉन्डों को उसके उभरते बाजारों के सरकारी बॉन्ड सूचकांक में शामिल किया जाएगा। इस खबर से वित्तीय बाजारों और सरकार दोनों में काफी उत्साह देखने को मिला। इस सूचकांक में 236 अरब डॉलर की प्रबंधन योग्य परिसंपत्ति है और चूंकि इसमें भारत की हिस्सेदारी 10 फीसदी होगी इसलिए अनुमान है कि प्रक्रिया पूरी होने पर इसमें 24 अरब डॉलर मूल्य के सरकारी बॉन्ड शामिल होंगे।
यह प्रक्रिया जून 2024 में आरंभ होगी। समय के साथ इस सूचकांक द्वारा ट्रैक की जाने वाली परिसंपत्तियां भी बढ़ेंगी और फंड की आवक में भी इजाफा होगा। चूंकि भारत के सरकारी बॉन्डों को व्यापक रूप से ट्रैक किए जाने वाले सूचकांक में शामिल किया जा रहा है इसलिए यह संभव है कि ऐसे अन्य सूचकांक भी समय के साथ इसमें शामिल होना चाहेंगे। इनको शामिल किया जाना सक्रिय फंड प्रबंधकों को भी प्रोत्साहित करेगा कि वे भारत सरकार के बॉन्डों में आवंटन बढ़ाएं।
भारत सरकार के बॉन्डों की मांग में इजाफे को सैद्धांतिक रूप से देखें तो इससे सरकार की उधारी लागत कम होगी। परंतु बाजार ने इस घोषणा को लेकर बहुत अधिक उत्साह नहीं दिखाया क्योंकि पूंजी की वास्तविक आवक में अभी भी समय है। भारत सरकार के बॉन्ड पर अपेक्षाकृत कम प्रतिफल राज्यों और निकायों को भी कम लागत पर ऋण लेने का अवसर प्रदान करेगा। इसके अलावा विदेशी पूंजी की आवक में वृद्धि चालू खाते के घाटे की भरपाई करने में भी मदद करेगी।
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ऐसे में भारत सरकार के बॉन्डों को अंतरराष्ट्रीय सूचकांकों में शामिल किए जाने के कई लाभ देखने को मिल सकते हैं। चूंकि इन सूचकांकों को ट्रैक करने वाले प्रवाह का कुछ हिस्सा अपनी प्रकृति में बहुत सक्रिय नहीं है इसलिए उन्हें अधिक स्थिर माना जाता है। संभावित लाभों को देखते हुए भारत सरकार भी कुछ समय से सूचकांकों में शामिल किए जाने का प्रयास कर रही थी।
भारतीय रिजर्व बैंक ने 2020-21 के केंद्रीय बजट के उस संदर्भ के बाद भारत सरकार के बॉन्ड जारी करना शुरू किया था जिसमें कहा गया था कि कुछ श्रेणियों के बॉन्ड विदेशी निवेशकों के लिए पूरी तरह खोल दिए जाएंगे। केंद्रीय बैंक ने इन्हें अनिवासी निवेशकों के लिए पूर्ण पहुंच वाले मार्ग के तहत शुरू किया।
यद्यपि राजकोषीय घाटे की भरपाई के लिए विदेशी पूंजी जुटाने के अपने लाभ हैं लेकिन इसमें जोखिम भी हैं। यही वजह है कि भारतीय नीति निर्माताओं ने डेट बाजार को लेकर दूरी बनाए रखी। राजकोषीय घाटे की भरपाई काफी हद तक घरेलू बचत के माध्यम से हो जाती है। बढ़ी हुई विदेशी भागीदारी अनिवार्य रूप से जोखिम बढ़ाएगी।
यह बात याद रखनी होगी कि बिना सक्रियता वाली आवक भी वृहद आर्थिक अस्थिरता के दौर में काफी अस्थिर हो सकती है। इससे बॉन्ड और मुद्रा बाजार दोनों में अस्थिरता नजर आएगी और भारत के कारोबारी क्षेत्र की प्रतिस्पर्धा प्रभावित होगी। ऐसे में रिजर्व बैंक को अधिक सावधान रहना होगा और अस्थिरता से निपटने के लिए हस्तक्षेप को तैयार रहना होगा।
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व्यापक स्तर पर देखें तो अगर विचार है मुद्रा की लागत कम करना तो अधिक प्रभावी तरीका यह है कि आम सरकारी बजट घाटा कम रखा जाए। इससे घरेलू बचत की मांग कम होगी और मुद्रा की लागत में कमी आएगी और मुद्रास्फीति कम और स्थिर रहेगी। भारत में संयुक्त बजट घाटा अन्य समकक्ष देशों से अधिक है और यह विदेशी निवेश को प्रभावित कर सकता है।
विदेशी निवेशकों की बढ़ी भागीदारी के कारण बचत में विस्तार हुआ है लेकिन उसे उच्च बजट घाटे के संचालन का जरिया नहीं माना जाना चाहिए। इसके विपरीत सरकार को अधिक अनुशासन अपनाना होगा। निश्चित तौर पर विकास के इस चरण में भारत को निवेश के लिए विदेशी पूंजी की आवश्यकता होगी। हालांकि प्राथमिकता के क्रम में उसने प्रत्यक्ष इक्विटी निवेश का पक्ष लिया है क्योंकि उसके अपने अलग लाभ हैं। इस रुख में कोई भी बदलाव सोच समझकर किया जाना चाहिए।