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दोधारी तलवार: सैन्य सेवाओं में तालमेल के लिए थिएटर कमांड

जनरलों, एडमिरल्स और एयर मार्शल्स के होड़ भरे रिश्ते हैं। सेना और उसके असैन्य प्रमुखों के बीच भी संदेह का रिश्ता है।

Last Updated- December 10, 2024 | 11:02 PM IST
Double-edged sword: Theater commands to coordinate across military services दोधारी तलवार: सैन्य सेवाओं में तालमेल के लिए थिएटर कमांड
इलस्ट्रेशन- बिनय सिन्हा

भारत की सेना दुनिया की सबसे बड़ी सेनाओं में से एक है। इसमें करीब 14 लाख सैनिक, नौसैनिक और वायुसैनिक हैं। यह दुनिया की सबसे अनुशासित सशस्त्र सेनाओं में शुमार है और अपनी बहादुरी तथा सामरिक कौशल के लिए दुनिया भर में सराही जाती है। करीब दो सदियों तक समूचे एशिया में ब्रिटिश साम्राज्यवादी शक्ति की असली ताकत ब्रिटिश इंडियन आर्मी ही थी। प्रथम विश्व युद्ध में बेल्जियम के भीतर ईप्रा की लड़ाई में और द्वितीय विश्व युद्ध में बर्मा में भारतीय सैनिक ही हार के जबड़े से जीत छीन लाए थे।

इसके बावजूद आज तक भारत में अच्छी तरह सोच-विचारकर बनाया गया ऐसा कोई शीर्ष स्तर का प्रबंधन तंत्र नहीं है, जो युद्ध के दौरान सेना की युद्धक क्षमता में तालमेल स्थापित करे और शांतिकाल में जनता तथा सेना के बीच रिश्ते मजबूत करे। इसके बजाय जनरलों, एडमिरल्स और एयर मार्शल्स के होड़ भरे रिश्ते हैं। सेना और उसके असैन्य प्रमुखों के बीच भी संदेह का रिश्ता है।

ब्रिटिश शासकों के बांटो और शासन करो के दौर में तो यह स्वीकार्य था बल्कि अच्छा माना जाता था मगर स्वतंत्र भारत के हित अधिक मुखर प्रबंधन तंत्र चाहते थे। इनका उभार देश की पहली बड़ी सुरक्षा चुनौती के दौरान हुआ, जब 1947 में पाकिस्तान की शह पर कश्मीर में कबायली हमला हुआ था। श्रीनगर हाथ से निकलने ही वाला था कि मंत्रिमंडल ने देश के सभी नागरिक विमानों मे सैनिकों को भरकर कश्मीर ले जाने का साहसिक आदेश दे दिया। अगले दिन करीब 100 डकोटा विमान श्रीनगर पहुंचे और कबायलियों को पीछे धकेला। सरकार आजादी के पहले के शांतिवादी मानस से बाहर निकलने में कामयाब रही और युद्ध जैसे हालात में सेना का इस्तेमाल किया।

1962 में भी देश के रक्षा ढांचे की ऐसी ही परीक्षा हुई। हालांकि उससे जुड़े दस्तावेज अब तक गोपनीय ही हैं मगर दो पूर्व रक्षा सचिव उस समय हुई बैठकों को याद करते हैं, जिनमें सेना प्रमुख को अपनी मर्जी से कोई भी कदम उठाने की पूरी छूट दे दी गई थी। सेना को कभी नहीं बताया गया कि उसे क्या करना है। तत्कालीन संयुक्त सचिव एच सी सरीन द्वारा कथित तौर पर भेजे गए पत्र में सेना को निर्देश था, ‘चीनियों को बाहर निकाल दो।’ वास्तव में उनका आशय यह था कि सेना अपनी पसंद के समय पर और अपनी पसंद की जगह पर उनसे अपनी जमीन खाली करवा ले।

वरिष्ठ अफसरशाह कहते हैं कि आज अगर संकट आए और सैन्य सलाह स्पष्ट रूप से सामने रखी जाए तो उसे असैन्य सलाह पर वरीयता दी जाएगी। 2008 में मुंबई हमले के बाद अगर सशस्त्र बलों ने सामूहिक रूप से पाकिस्तान के विरुद्ध ठोस कार्रवाई की सिफारिश की होती, चाहे वह हमला हो या कराची की नाकेबंदी, तो अधिकारियों के मुताबिक उसे स्वीकार कर लिया जाता। परंतु 26/11 के हमले के दो तीन दिन बाद जब प्रधानमंत्री ने ये सवाल पूछे तो सैन्य प्रमुखों के मुंह पर ताला लगा रहा।

यह बात सेवानिवृत्त अधिकारियों से मिली उस समझ या सीख के एकदम उलट है कि सारी शक्ति राजनीतिक-अफसरशाही खेमे के पास है। वास्तव में उन घटनाओं के अध्ययन से अलग तरह के सबक मिलते हैं जहां वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों ने असैन्य आदेश को चुनौती दी या उसकी अवहेलना की। एक तरफ नौसेना प्रमुख एडमिरल विष्णु भागवत का उदाहरण है, जिन्हें 1998 में तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस ने पद से इसलिए हटा दिया था क्योंकि वह सरकार का आदेश नहीं मान रहे थे। दूसरी तरफ जनरल वीके सिंह हैं, जिन्होंने 2012 में सेना प्रमुख रहते समय तत्कालीन रक्षा मंत्री ए के एंटनी के समय में सरकार को ही अदालत में घसीट लिया था क्योंकि वह उनकी जन्मतिथि संशोधित करके उनका कार्यकाल बढ़ाने को तैयार नहीं थी। दोनों मामलों पर सरकार का रुख अलग-अलग रहा – भागवत के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई हुई मगर जनरल सिंह के सामने घुटने टेक दिए रहे। यह रुख नियमों के बजाय नेतृत्व का परिणाम था।

आजादी के आधी सदी बाद भी सैन्य-असैन्य रिश्ते बहस का विषय रहे, लेकिन कभी जोर नहीं पकड़ सके। आंशिक तौर पर ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि सेना का आकार तथा प्रभाव नौसेना और वायुसेना से बहुत बड़ा था। सन 1999 में कारगिल युद्ध के बाद से कई विशेषज्ञ समितियों ने (इनमें कारगिल समीक्षा समिति 1999, मंत्री समूह की रिपोर्ट 2001, राष्ट्रीय सुरक्षा कार्य बल 2012, जिसे नरेश चंद्र समिति कहते हैं और शेकतकर समिति 2016 शामिल है) तीनों सेनाओं के कमांडर का पद सृजित करने की सिफारिश की। चाहे वह एक पांच सितारा चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) हो या चार सितारा परमानेंट चेयरमैन चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी (पीसी-सीओसीएस)। नरेश चंद्र समिति ने बाद वाले पद की अनुशंसा की, जिससे सेना पर अफसरशाही का नियंत्रण बना रहे।

2019 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के दोबारा सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीडीएस की नियुक्ति का निर्णय लिया। उन्होंने स्वतंत्रता दिवस पर कहा, ‘भारत का रुख बंटा हुआ नहीं होना चाहिए। हमारी पूरी सैन्य शक्ति को एक होकर काम करना होगा और आगे बढ़ना होगा। तीनों सेनाओं को समान गति से आगे बढ़ना चाहिए। सीडीएस का पद बनने के बाद सेना के तीनों अंगों को शीर्ष स्तर पर प्रभावी नेतृत्व मिलेगा।’

चार महीने बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सीडीएस के पद को मंजूरी दे दी। इस चार सितारा जनरल की रैंक, वेतन आदि तीनों सेनाओं के प्रमुख के बराबर ही रहने थे। इस नियुक्ति में दो बड़े बदलाव शामिल थे। पहला, सीडीएस को एक संगठन का प्रमुख बनाया गया जिसका नाम था डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफेयर्स (डीएमए) या रक्षा मामलों का विभाग, जो रक्षा मंत्रालय के अधीन था और जिसे सेना, नौसेना तथा वायु सेना के साथ काम करना था। इससे पहले सभी सैन्य मामले रक्षा मंत्रालय देखता था, अब सचिव स्तर के सीडीएस के नेतृत्व वाले डीएमए के रूप में सेनाओं को अपनी आवाज मिली थी।

डीएमए के जरिये आने वाला दूसरा बड़ा बदलाव है 17 एकल सेवा कमानों को हटाकर उनकी जगह कम संख्या में संयुक्त/थिएटर कमांड की स्थापना। इससे तीनों सेनाओं के सामरिक लक्ष्य पाने के समन्वित प्रयासों को बढ़ावा मिलेगा। इसके लिए डीएमए का काम है, ‘कामकाज में एकजुटता लाकर संसाधनों के समुचित इस्तेमाल के लिए सैन्य कमानों के पुनर्गठन में मदद करना, जिसमें संयुक्त या थिएटर कमांड की स्थापना भी शामिल है।’ संयुक्त/थिएटर कमांड के संचालन का अहम घटक है रिपोर्टिंग चेन-यानी कौन किसके मातहत काम करेगा? थिएटर कमांडर सेना प्रमुखों को रिपोर्ट करेंगे या सीडीएस को? या फिर रक्षा मंत्री को। सीडीएस के पास इन थिएटरों का परिचालन नियंत्रण होगा या नहीं। अगर हां तो क्या एक अलग डीएमए सचिव की नियुक्ति होगी? इन सवालों को प्राथमिकता के साथ हल किया जाना चाहिए।

लंबे समय से चले आ रहे पूर्वग्रह और पक्षपात इन मसलों पर हावी हैं। आशंका है कि थिएटर कमांडर अगर सीडीएस को रिपोर्ट करते हैं तो वह सबसे शक्तिशाली सैन्य कमांडर बन जाएगा, जो लोकतंत्र के लिए खतरा हो सकता है। नौसेना और वायु सेना को भी डर है कि वे अपेक्षाकृत बड़ी थल सेना के सामने हाशिये पर चले जाएंगे।

करीब पांच साल गुजर गए हैं मगर तीनों सेनाएं अब तक नहीं समझ पाई हैं कि संयुक्त या थिएटर कमांड पर चर्चा होनी ही नहीं हैं। यह तो प्रधानमंत्री द्वारा निर्देशित ऐसा सैन्य सुधार है, जो दुनिया भर की सेनाओं ने अपनाया है। सीडीएस को अपना प्रस्ताव जल्द से जल्द सरकार को देना चाहिए जिसमें उच्च रक्षा प्रबंधन पर अहम सिफारिशें शामिल हैं।

नई व्यवस्था की रूप रेखा नजर आ रही है: सेना के जनरल के नेतृत्व में एक उत्तरी थिएटर कमांड चीन के खतरे पर नजर रखेगी। एयर मार्शल के नेतृत्व में पश्चिमी थिएटर कमांड पाकिस्तान के खतरे पर नजर रखेगी और नौसेना के एडमिरल के नेतृत्व में मैरीटाइम थिएटर कमांड समुद्री इलाकों की रक्षा करेगी। एक सामरिक सैन्य कमांड देश के परमाणु प्रतिरोध को संभालेगी। इससे अधिकतर आशंकाएं समाप्त हो जाती हैं: नौसेना को प्रायद्वीपीय इलाकों का नियंत्रण देने से सेना का आकार कम हो जाता है। वायु सेना एक सुसंगत इकाई बनी रहेगी और सेना अब भी सबसे बड़ी ताकत रहेगी तथा भारत-चीन सीमा की निगरानी जारी रखेगी

First Published - December 10, 2024 | 10:25 PM IST

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